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दिल्ली रिज की कहानी / नलिन चौहान

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दिल्ली रिज / नलिन  चौहान 


दुनिया की सबसे ऐतिहासिक राजधानियों में से एक दिल्ली का उल्लेख हिंदुओं के प्राचीन महाकाव्य महाभारत में मिलता है। इस शहर की दो प्राकृतिक विशेषताओं-रिज और यमुना नदी ने इसे सदियों से शासकों के लिए एक सुरक्षित और मनपसंद जगह बनाया। यही कारण है कि दिल्ली की हरियाली के फेफड़े की रक्षा की लड़ाई बहुत पहले ही शुरू हो गई थी। दिल्ली में पहाड़ी का भाग, दिल्ली रिज तो कभी रिज के नाम से पुकारा जाता है जो कि कभी शहर की लगभग 15 प्रतिशत भूमि पर फैला हुआ था।

यह रिज एक भूवैज्ञानिक कारक है जिसकी विशेषता यह है कि वह कुछ दूरी तक लगातार चोटी की तरह उठान पर है। दिल्ली रिज भारत की सबसे पुराने पहाड़ अरावली पर्वत श्रृंखला का उत्तरी विस्तार है जो कि गुजरात से लेकर राजस्थान और हरियाणा से दिल्ली तक विस्तार लिए हुई है। दिल्ली रिज कुल 35 किलोमीटर की दूरी तक फैली हुई है जो कि भाटी माइंस से दक्षिण पूर्व में 700 साल पुराने तुगलकाबाद तक अलग-अलग दिशाओं में शाखाओं में विभाजित है और अंत में यमुना नदी के पश्चिमी तट पर वजीराबाद के पास उत्तरी छोर तक इसका फैलाव है।

दिल्ली के इतिहास में रिज ने एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है और यहां तक कि इसका अपना प्राग इतिहास भी है। दिल्ली रिज क्वार्टजाइट चट्टानों से बनी है, जिससे पाषाण युग वाले मानव अपने औजार बनाते थे। दरअसल, पुरातत्वविदों ने दिल्ली रिज में पाषाण युग के कारखानों की खोज की है जो कि व्यापक स्तर पर औजारों के उत्पादन का साक्ष्य है। पाषाण कालीन मानव की रिज के घने वन आच्छादित क्षेत्र में भी रहगुजर थी जो कि उन्हें भोजन (कंदमूल और पशु) तथा आश्रय प्रदान करती थी। इतना ही नहीं, वहाँ पर्याप्त जल भी था और यह तथ्य आज भी उतना ही प्रासंगिक है।


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