Quantcast
Viewing all articles
Browse latest Browse all 3437

अमृता प्रीतम की वसीयत

  वसीयत


अपने पूरे होश-ओ-हवास में

लिख रही हूँ आज... मैं

वसीयत ..अपनी

मेरे मरने के बाद

खंगालना.. मेरा कमरा

टटोलना.. हर एक चीज़

घर भर में ..बिन ताले के

मेरा सामान.. बिखरा पड़ा है


दे देना... मेरे खवाब

उन तमाम.. स्त्रियों को

जो किचेन से बेडरूम

तक सिमट गयी ..अपनी दुनिया में

गुम गयी हैं

वे भूल चुकी हैं सालों पहले

खवाब देखना


बाँट देना.. मेरे ठहाके

वृद्धाश्रम के.. उन बूढों में

जिनके बच्चे

अमरीका के जगमगाते शहरों में

लापता हो गए हैं


टेबल पर.. मेरे देखना

कुछ रंग पड़े होंगे

इस रंग से ..रंग देना उस बेवा की साड़ी

जिसके आदमी के खून से

बोर्डर... रंगा हुआ है

तिरंगे में लिपटकर

वो कल शाम सो गया है


आंसू मेरे दे देना

तमाम शायरों को

हर बूँद से

होगी ग़ज़ल पैदा

मेरा वादा है


मेरा मान , मेरी आबरु

उस वैश्या के नाम है

बेचती है जिस्म जो

बेटी को पढ़ाने के लिए


इस देश के एक-एक युवक को

पकड़ के

लगा देना इंजेक्शन

मेरे आक्रोश का

पड़ेगी इसकी ज़रुरत

क्रांति के दिन उन्हें


दीवानगी मेरी

हिस्से में है

उस सूफी के

निकला है जो

सब छोड़कर

खुदा की तलाश में


बस !

बाक़ी बची

मेरी ईर्ष्या

मेरा लालच

मेरा क्रोध

मेरा झूठ

मेरा स्वार्थ

तो

ऐसा करना

उन्हें मेरे संग ही जला देना...

A tribute to Amrita Pritam


Viewing all articles
Browse latest Browse all 3437

Trending Articles