दिल्ली कितनी बार उजड़ी बसी / नलिन चौहान
मशहूर है, दिल्ली 17 बार बसी है। हिंदू काल की तीन दिल्ली, मुस्लिम काल की बारह दिल्ली और ब्रिटिशकाल की दो दिल्ली। जितनी बार दिल्ली बसाई गई उतनी ही बार-केवल ब्रिटिशकाल को छोड़कर-इसमें परकोटे या फसीलें बनाई गई।
इन फसीलों में बनाए गए दरवाजों की भी संख्या कम नहीं रही।
प्राचीनकाल में राजधानी की सुरक्षा के लिए सामरिक दृष्टि से फसील के भीतर मजबूत दरवाजे बनाए जाते थे, जिनका प्रवेश मार्ग प्रायः अंग्रेजी के 'एस'अक्षर की तरह घुमावदार होता था। दिल्ली के बहुत से दरवाजे, जो ऐतिहासिक दृष्टि से प्रसिद्ध थे, पुनर्निर्माण और विकास की योजनाओं के तहत तोड़े जा चुके हैं।
जवाहरलाल नेहरू के प्रधानमंत्रित्व में उनकी पहल पर ही आसफअली रोड के किनारे-किनारे बनी फसील का कुछ हिस्सा तोड़ने से बच गया। इसी तरह, तुर्कमान दरवाजा न केवल ध्वस्त होने से रह गया, वरन उसका जीर्णाेद्वार भी कर दिया गया।
दिल्ली के सबसे पुराने दरवाजों में, शहर के बाहर 1193 पूर्व के काल में बनाया गया निगमबोध दरवाजा है। इस दरवाजे को दिल्ली विकास प्राधिकरण ने यमुना तट को सुन्दर बनाने की योजना के अन्तर्गत जीर्णाेद्वार कर पत्थरों से बनवाया। इस पर गीता के द्वितीय श्लोक भी उत्कीर्ण किए गए जो आत्मा की अमरता को सिद्व करते हैं।
दिल्ली का अंतिम हिंदू राज-परिवार रायपिथौरा का था। इसे ही पृथ्वीराज कहते थे। पृथ्वीराज चैहान ने 1180 से 1186 के बीच रायपिथौरा का किला बनवाया। रायपिथौरा की दिल्ली के बारह दरवाजे थे, लेकिन तैमूरलंग ने अपनी आत्मकथा में इनकी संख्या दस बताई है। इनमें से कुछ बाहर की तरफ खुलते थे और कुछ भीतर की तरफ। इन दरवाजों को अब समय की लहर ने छिन्न-भिन्न कर दिया है।
यजदी के "जफरनामे"में 18 दरवाजों का जिक्र है। इनमें से कुछ दरवाजों के नाम इस प्रकार थे-दरवाजा हौजरानी, बुरका दरवाजा, गजनी दरवाजा (इसका नाम राय पिथौरा के समय में रंजीत दरवाजा था), मौअज्जी दरवाजा, मंडारकुल दरवाजा, बदायूं दरवाजा, दरवाजा हौजखास, दरवाजा बगदादी, बाकी दो दरवाजों के नाम प्रायः नहीं मिलते। ये सभी दरवाजे वर्तमान महरौली क्षेत्र में थे।
दिल्ली कितनी बार उजड़ी -बसी / नलिन चौहान दिल्ली की kahani
महरौली से तुगलकाबाद की ओर जाने वाले मार्ग पर लाडो सराय से दक्षिण हुमायूं दरवाजा था। गजनी दरवाजा या रंजीत दरवाजा 17 फुट चौड़ा था। इसमें दरवाजा उठाने या गिराने के लिए सात फुट ऊंचा पत्थर का खम्भा था, जो आज भी मौजूद है।
रायपिथौरा के किले की फसील का जो हिस्सा फतेहबुर्ज पर खत्म होता था, उसी से यह दरवाजा है। फतेहबुर्ज और सोहनबुर्ज के बीच में एक दरवाजा था जिसका अब कोई चिन्ह नहीं है। इसी क्षेत्र में अनंगपाल (हिंदूकाल की दूसरी दिल्ली बसाने वाला राजा) ताल के पास ही भिंड दरवाजा था और यहीं से थोड़े फासले पर फसील उधम खां के मकबरे पर समाप्त होती थी।