बीच राह में दिलबर / रवि अरोड़ा
पता नहीं क्यों आज़ादी के बाद से ही हम लोग बात बात पर अपने देश की तुलना पाकिस्तान से करने लगते हैं और अपनी तरक़्क़ी को पाकिस्तान के मुक़ाबले खड़ा कर अपने रहनुमाओं की जय जयकार करते हैं । यक़ीनन यह बात ठीक है कि विकास की दौड़ दोनो देशों से एक साथ शुरू की थी और अब हम कहाँ से कहाँ आ गये जबकि पड़ौसी मुल्क बहुत पीछे रह गया । मगर पता नहीं क्यों मुझे अब डर लग रहा है और आशंका हो रही है कि कहीं हम भी अब आर्थिक मोर्चे पर एक और पाकिस्तान तो नहीं बनने जा रहे ? लॉक़डाउन ने देश की अर्थव्यवस्था को जिस क़दर तोड़ा है , वह दुनिया भर में एक रिकार्ड है । आज तक किसी भी देश की अर्थव्यवस्था कभी इतना नीचे नहीं आई जितना हम तीन महीने में ही फिसल गए । यहाँ तक की पाकिस्तान भी हमसे बेहतर स्थिति में है । जनता को मूर्ख समझते हुए बेशक हुक्मरान इसे एक्ट ओफ गॉड बतायें मगर सच्चाई यही है कि यह एक्ट ओफ नहीं एक्ट ओफ फ़्रॉड था और एक तुग़लकी फ़रमान ने देश को वहीं पहुँचा दिया , जहाँ से शुरू हुए थे ।
अर्थशास्त्री कह रहे हैं कि 24 फ़ीसदी नेगेटिव जीडीपी का कारण कोरोना को बताना सबसे बड़ा झूठ होगा । हर कोई कह रहा है कि लॉक़डाउन के नाम पर जो महीनों की देश बंदी हुई जो कमोवेश आंशिक रूप से अब भी जारी है , यह सब उसी का किया धरा है । दुनिया भर में इतना लम्बा और सख़्त लॉक़डाउन कहीं भी नहीं लगा और यही वजह रही कि सबसे ज़्यादा अर्थव्यवस्था भी हमारी ही रपटी । यहाँ तक कि पाकिस्तान में भी इतना नुक़सान नहीं हुआ जितना हमारा हुआ । वहाँ कट्टरपंथियों का दबाव काम आया और नाम मात्र को ही लॉक़डाउन हुआ और उसके पालन में भी सख़्ती नहीं थी । इससे उलट हमारे यहाँ लॉक़डाउन के पालन को आम लोगों पर इतने अत्याचार हुए कि अभी भी किसी चौराहे पर पुलिस कर्मी को देख कर लोगबाग अपना रास्ता बदल लेते हैं ।
सरकार द्वारा जारी आँकड़ा 23.9 फ़ीसदी नेगेटिव जीडीपी का है मगर अर्थशास्त्री कह रहे हैं कि असली आँकड़ा इससे कहीं अधिक है । बक़ौल उनके जीडीपी में असंगठित क्षेत्र को शामिल नहीं किया जाता अतः असली सूरते हाल और भी बुरे हैं । उनका मानना है कि केवल कोरोना को ज़िम्मेदार कैसे ठहराया जा सकता है जबकि हमारी अर्थव्यवस्था तो पिछले पाँच साल से ही गिर रही है और हम 8 प्रतिशत से 4.2 पर तो पहले ही आ गए थे । उनकी मानें तो देश की अर्थव्यवस्था के पुराने दिन लौटने में अब सालों नहीं वरन दशकों लगेंगे और वह भी तब जब अर्थव्यवस्था के विशेषज्ञ इसकी कमान सम्भालें । उधर क्रेडिट रेटिंग एजेंसी तो और अधिक डरा रही है । उसका दावा तो है कि लॉक़डाउन के चलते भारत की जीडीपी नेगेटिव 45 फ़ीसदी तक आ गई है ।
पाकिस्तान से भारत की तुलना करना मुझे नहीं जँचता मगर वैश्विक संघटनों ने जो अपना आकलन जारी किया है उससे साफ़ दिख रहा है कि लॉक़डाउन का कम से कम इस्तेमाल करके भी पाकिस्तान ने क़ोरोना की बढ़ोत्तरी पर काफ़ी हद तक क़ाबू पाया और हम अपनी जनता पर डंडे बरसा कर भी दुनिया को सबसे अधिक कोरोना के मरीज़ रोज़ाना दे रहे हैं । आँकड़े कहते हैं कि बीस साल पहले हम पाकिस्तान से सात गुना बड़ी अर्थव्यवस्था थे और कोरोना से पूर्व दस गुना तक पहुँच गये थे । यहाँ तक कि हमारी अर्थव्यवस्था भी केवल कृषि आधारित न होकर उद्योग और सेवा क्षेत्र तक फैल गई थी मगर अब सभी क्षेत्र धड़ाम हो गए और कृषि ने ही जीडीपी की लाज बचाई । पाकिस्तान आज भी कृषि प्रधान देश है अतः उसका इतना नुक़सान नहीं हुआ । बेशक यह नहीं कहा जाना चाहिये कि हम फिर से कृषि आधारित अर्थव्यवस्था बनें मगर जब हमारे हुक्मरानों को उद्योग और सेवा क्षेत्रों की शर्तों व ज़रूरतों की समझ ही नहीं और हम इसी तरह रातों रात तुग़लकी फ़रमान जारी कर पूरे देश लव चक्का जाम करने की बेवक़ूफ़ियाँ करेंगे तो यक़ीनन भविष्य गाँवों में ही बचेगा । हाय ! बीच राह में लुटवा दिया दिलबर ने ।