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रवि अरोड़ा की नजर से

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 नम्बर वन की राह


रवि अरोड़ा


हालाँकि मैं हिसाब किताब में मैं थोड़ा कमज़ोर हूँ मगर इतना कमज़ोर फिर भी नहीं हूँ कि यह हिसाब न लगा सकूँ कि कोरोना के मामले में भारत दुनिया में नम्बर वन कब होगा । बेशक अभी हम दूसरे नम्बर पर हैं मगर जिस तेज़ी से हमारे देश में कोरोना के मामले रोज़ाना बढ़ रहे हैं , उस गति से शर्तिया हम अगले महीने के आख़िर तक अमेरिका को पछाड़ कर नम्बर वन होंगे । अब इसके लिये हम अपनी सरकार को दोष दें या प्रशासनिक मशीनरी को अथवा ख़ुद को मगर यह सत्य है कि कोरोना महामारी से निपटने में हम सबसे बड़े निकम्मे साबित हुए हैं । वर्तमान स्थिति यह है कि हमारे यहाँ अमेरिका से ढाई गुना तेज़ी से महामारी फैल रही है । अमेरिका में फ़िलवक़्त बासठ लाख मामले हैं और भारत 41 लाख की संख्या को पार कर गया है । चौबीस घंटे में वहाँ चालीस हज़ार नये मामले आये हैं और हमारे यह यह आँकड़ा नब्बे हज़ार को पार कर गया है । वहाँ जुलाई माह में सर्वाधिक सत्तर हज़ार मामले प्रतिदिन आ रहे थे जो अब लगातार घट रहे हैं जबकि हमारे यहाँ प्रतिदिन मामले बढ़ रहे हैं और हम जल्द ही एक लाख मामले प्रतिदिन तक पहुँचने वाले हैं । जिस गति से हम महामारी का शिकार हो रहे हैं उस हिसाब से तो साठ लाख का आँकड़ा सितम्बर माह में ही हम छू लेंगे । 


भारत के आँकड़ों को दुनिया भर में संदेह की नज़र से देखा जा रहा है और माना जा रहा है कि हमारी सरकार के आँकड़े हवा हवाई हैं । इसका आधार जुलाई माह में दिल्ली में हुआ सीरो टेस्ट भी है । उसमें 24 फ़ीसदी लोगों के शरीर में एंटी बोडी पाये गये थे । यानि दिल्ली की एक चौथाई आबादी तो दो माह पहले ही कोरोना संक्रमण की किसी न किसी रूप में शिकार हो चुकी थी । इन दो महीनों में कितनी बड़ी आबादी के शरीर में एंटी बोडी विकसित हुआ होगा, सहज अनुमान लगाया जा सकता है । ख़ैर हम अपनी सरकार के आँकड़ों को ही सही मानें तब भी इस मामले में हमारा प्रदर्शन पूरी दुनिया में सबसे अधिक ख़राब रहा है । ग़नीमत है कि प्रतिकूल मौसम, देश की कमोवेश युवा आबादी और हम भारतीयों की अन्य देशों के मुक़ाबले अधिक प्रतिरोधक क्षमता के कारण हमारे यहाँ मृत्यु दर कम है वरना हम तो कहीं के नहीं रहते । 


कोरोना संकट को लेकर भारत और अमेरिका के बीच तुलना के लिये आज दिन भर अख़बारों, न्यूज़ चैनल्स, न्यूज़ पोर्टल और दर्जनों वेब साइट्स को खंगाला मगर इस तरह की कही कोई जानकारी मुझे नज़र नहीं आई । समझ नहीं आ रहा कि जब हम कोरोना मामले में अमेरिका को पछाड़ कर शीघ्र नम्बर वन होने जा रहे हैं तब एसी ख़बरें क्यों नहीं छप रहीं ?जबकि पूरी दुनिया मे हमें लेकर एसी ख़बरें प्रकाशित हो रही हैं । हमारे यहाँ तो मीडिया को नेताओं के बयानों और फ़िल्मी दुनिया के गोसिप्स से ही फ़ुर्सत नहीं है । झूठा प्रचार किया जा रहा है कि कोरोना की वैक्सीन अब आई और तब आई । जबकि सच्चाई यह है कि अगले साल से पहले कोई वैक्सीन बाज़ार में नहीं आने वाली । जो आएगी भी उससे मानव शरीर में कितने दिन तक एंटी बोडी बनी रहेगी यह भी अभी किसी को नहीं पता । यूँ भी यह वैक्सीन शुरुआती महीनों में तो अमीर देशों से ही बाहर ही नहीं निकलने वाली । बेशक भारत में भी तीन वैक्सीन तैयार हो रही हैं मगर उन्हें लेकर भी सरकार ने कोई नीति अभी तक नहीं बनाई है और इस बात की सम्भावना भी बेहद कम है कि छः माह से पहले यह वैक्सीन बाज़ार में पहुँच जाये । 


भारत में कोरोना के 41 लाख से अधिक मामले अब तक प्रकाश में आ चुके हैं । 70 हज़ार से अधिक लोग मौत के मुँह में समा गये हैं और प्रतिदिन एक हज़ार लोग इससे मर रहे हैं । यह हालात तो तब हैं जब इस महामारी का पीक अभी आना है और इसकी दूसरी लहर भी शेष है । कुल मिला कर अपनी तो आपको यही सलाह है कि किसी सरकार-वरकार के भरोसे न रहें और अपना ख़याल ख़ुद रखें । सरकार के वश में यह महामारी होती तो उसने इसे अप्रैल माह में ही निपटा दिया होता ।


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