*गुदड़ी के लाल-लाल बहादुर 'शास्त्री'*/ दिनेश श्रीवास्तव
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कायथ कुल जन्मे मगर, कठिनाई विकराल।
बाल्य-काल थी साधना, थे 'गुदड़ी के लाल'।।-१
गांधी जी के साथ ही, प्रगट हुए थे 'लाल'।
दोनो ने ही इस देश मे,अद्भुत किये कमाल।।- २
'शास्त्री जी'के नाम से,जाने जाते 'लाल'।
लालबहादुर ने किया,ऊँचा भारत- भाल।।- ३
लालबहादुर नाम था,काम किए ज्यों संत।
सच्चे सीधे थे सरल,लोभ-लालसा अंत।।- ४
सच्चे सीधे थे मगर, 'लाल'बने थे काल।
युद्ध हुआ जब 'पाक'से, पूछो उससे हाल।।-५
त्राहि-त्राहि करके भगा, कहाँ 'पाक'को ठौर?
'ताशकंद'का राह था,नहि उपाय था और।।-६
'जय-जवान'नारा लगा,'जय- किसान'का घोष।
अमर कथन इस 'लाल'का,अब भी देता तोष।।-७
कृश-काया थी 'लाल'की,उन्नत उनका भाल।
लघु शरीर होते हुए,पाए हृदय विशाल।।-८
ताशकंद में ही हुआ,इस सपूत का अंत।
बार-बार मिलता नहीं,ऐसा कोई संत।।-९
सदा बढ़ाए देश का, लालबहादुर शान।
'भारत रत्न'प्रदान कर,दिया देश ने मान।।-१०
यदि उनके आदर्श को,धारण करो 'दिनेश'।
प्राणवान भारत बने,विश्व गुरू हो देश।।-११
दिनेश श्रीवास्तव
ग़ाज़ियाबाद
[10/2, 11:04] DS दिनेश श्रीवास्तव: वीर छंद आधारित गीत
*गांधी*
पावन परम पुजारी थे वे,सत्य अहिंसा से था प्यार।
धन्य धरा भारत की अपनी, जहाँ लिए गांधी अवतार।।
राम-नाम का धुन थे गाते, और नहीं था मन में द्वेष।
पीर-पराई देख हृदय में,जिनके होता अतिशय क्लेश।
आत्मसंयमी वीर बहुत थे,लिए लकुटिया कर में धार।
धन्य धरा भारत की अपनी, जहाँ लिए गांधी अवतार।।
अंग्रेजी शासन का देखो,कमर दिया था जिसने तोड़।
सात समंदर पार भगे वे,डरकर भारत को वे छोड़।।
नहीं ढाल या तलवारें थी,गए अहिंसा से वे हार।
धन्य धरा भारत की अपनी,जहाँ लिए गांधी अवतार।।
भारत की यह भूमि वही है,दिखे अहिंसा अब चहुँओर।
लूट-मार व्यभिचार बहुत है,मचा रहा हिंसा है शोर।।
नहीं बेटियाँ यहाँ सुरक्षित,मचा हुआ है हाहाकार।
धन्य धरा भारत की अपनी,जहाँ लिए गांधी अवतार।।
घूम-घूम यह देश जहाँ पर,गांधी ने बाँटा था प्यार।
नारी का सम्मान बढ़ाया,मगर आज सुनिए चित्कार।
हिंसा-प्रतिहिंसा का सागर,जहाँ हिलोरें पारावार।
धन्य धरा भारत की अपनी,जहाँ लिए गांधी अवतार।।
दुखिया दीन 'दिनेश'पड़ा है,मन में लिए निराशा घोर।
चारो ओर अँधेरा छाया,होगा फिर से कब तक भोर।।
गांधी के पथ पर चलने को, होना होगा अब तैयार।
धन्य धरा भारत की अपनी, जहाँ लिए गांधी अवतार।।
दिनेश श्रीवास्तव
ग़ाज़ियाबाद