गांधी का प्रताप और एक अनुभव / मनोज कुमार
आप जीवन भर बहुत अच्छा लिखते हैं। बोलते भी प्रभावी हैं लेकिन यह सब कुछ किसी की जिन्दगी में परिवर्तन ना ला सके तो सब बेकार। आपकी यही कोशिश किसी एक का भी मन बदल दे तो लिखना बोलना ही नहीं, स्वयं की सार्थकता साबित होती है।
आज गांधी के पुण्य से मुझे यह अवसर मिला जब हज़ारों किलोमीटर दूर रहने वाले मेरे प्रिय विवेक मणि त्रिपाठी ने बताया कि मुझसे मिलने से पहले वे गांधी से सहमत नहीं थे लेकिन मेरी संगत में आते ही ना केवल गांधी विचार को पढ़ना शुरु किया बल्कि आज वे गांधी के अनुयायी बन गए हैं । उन्हें गांधी के प्रति आसक्ति मेरे संपादन में प्रकाशित शोध पत्रिका "समागम"से जुड़ने और पढ़ने के बाद हुई। समागम का अनुराग हमेशा से गांधी विचारों के प्रति रहा है और अनुज के विचार जान कर सन्तोष हुआ कि मेरे प्रयासों से एक युवा की सोच में ही नहीं, बल्कि उनके साथ एक पीढ़ी की सोच में परिवर्तन आया। उन्हीं के शब्दों में गांधी सच में महमानव हैं जिन्हें पढ़कर मेरे जीवन में महत्वपूर्ण बदलाव आया है ।
बापू, तुमने मेरे प्रयासों को सार्थक किया। आभारी हुँ और कृतज्ञ भी।
टीम समागम की ओर से गांधी जयंती की हार्दिक शुभकामनाएं