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कपिलदेव का कोई जवाब नहीं

 घर में कपिल देव / विवेक शुक्ला 

आप मथुरा रोड से मटका पीर को पार करके खूबसूरत सुंदर नगर में दाखिल होते हैं। फिजाओं में बड़े भव्य बंगलों के बगीचों में लगे फूलों की खुशबू आपका स्वागत करती है। 


इधर देर रात के वक्त शेरों,चीतों और अन्य जंगली जानवरों की आवाजें सन्नाटे में खलल डालती हैं। बेशक यहां कोई जंगल नहीं है। पर सुंदर नगर से सटा है देश का सबसे बड़ा चिड़ियाघर। इसी सुंदर नगर में ही है कपिल देव का आशियाना। 


इधर हजारों करोड़ों रुपए का कारोबार करने वाले उद्योगपति, नामवर वकील,नेता, डिप्लोमेट वगैरह रहते हैं। पर किसी का भी कद और म्यार कपिल देव जितना बुलंद नहीं है। कपिल देव के सामने सब बौने हैं।


 वे यहां 1984 में अपने शहर चंडीगढ़ को छोड़कर आ गए थे। वजह ये थी कि तब चंडीगढ़ से दिल्ली की सिर्फ एक फ्लाइट हुआ करती थी। दिल्ली में क्रिकेट के खेलने के सिलसिले में बार-बार आना होता था। सड़क के रास्ते से आने के बाद खेलना आसान नहीं होता था। कपिल देव के लिए चंडीगढ़ के अपने संयुक्त परिवार को छोड़ना मुश्किल था। 


पर कोई विकल्प भी नहीं था। दिल्ली में इतने साल गुजारने के बाद भी कपिल में छोटे शहर के संस्कार और नैतिकताएं बची हैं। वे उन्हें बहुत प्रिय हैं। वे अपने पास आने वालों को विदा करने के लिए  उसकी कार तक छोड़ने अवश्य जाते हैं।  ये कपिल देव का अंदाज है। 


पिछले दिनों वे अस्वस्थ हुए तो सारा देश उनके लिए दुआएं मांग रहा था। आखिर उन्होंने देश को आनंद और गौरव के अनगिनत लम्हें दिए हैं। अब वे वापस अस्पताल से घर आ गए हैं। वे घर नहीं होते तो घर से कुछ ही दूर दिल्ली गॉल्फ कोर्स में होते हैं।


चंडीगढ़ के पुराने दोस्तों के कुक्कू और बाकी सबके कपिल पाजी का घर सच में बहुत सगना वाला है।

ये नहीं हो सकता कि वे शाम को घर में हों और उनसे उनका कोई दोस्त मिलने ना आए। जो घर आएगा उसे पंजाबी डिशेज मिलेंगी।


 बिना डिनर किए बगैर उसे जाने की इजाजत नहीं होती। कपिल देव ने अपनी बीजी मतलब मम्मी से इस परम्परा को देखा-सीखा था। कपिल अतिथि देवो भव में यकीन करते हैं। जब तक बीजी थीं तो वह भी इधर ही रहती थीं। कपिल देव ने बीजी की उनके अंतिम दिनों में श्रवण कुमार की तरह सेवा की थी। 


बीजी के संसार से जाने के बाद अब चंडीगढ़ जाना भी कम ही हो पाता है। अब वे दिल्ली  के हो चुके हैं। उन्होंने दिल्ली के अराजक ट्रैफिक को स्वीकार कर लिया है। उन्हें दिल्ली में घटती हरियाली और लगातार बनते कंक्रीट के जंगल परेशान करते हैं।


उन्हें  गॉल्फ, बिजनेस और कमेंट्री के बाद जब फुर्सत मिलती है तो वे पत्नी रोमी और पुत्री अमिया के साथ खान मार्किट या बंगाली मार्किट का चक्कर लगा लेते है। ये दोनों जगह उनके दिल के करीब हैं। बंगाली मार्किट के बाबर रोड में तो उनका दफ्तर भी था।


 कपिल देव  सत्तर के दशक के शुरू से दिल्ली में लीग क्रिकेट खेलने आने लगे थे। तब और अबकी दिल्ली बहुत बदल चुकी है। पर इस दौरान उनके दोस्त नहीं बदले हैं।  वे एक बार किसी को अपना बना लेते हैं,तो फिर उससे जीवनपर्यंत का रिश्ता रखते हैं।   


लेख आज 29 अक्टूबर को nbt मेँ छपी  है ।


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