#मेवाड़_का_इतिहास_भाग_22
#महाराणा_रायमल्ल_के_इतिहास_का_भाग_2
(इन महाराणा के समय लगभग सभी लड़ाईयाँ इनके पुत्र पृथ्वीराज के नेतृत्व में ही लड़ी गई जिस वजह से उनका वर्णन ज्यादा किया जाएगा)
महाराणा रायमल्ल ने अपने ज्येष्ठ पुत्र कुंवर पृथ्वीराज को मेवाड़ का सेनापति घोषित किया।
कुंवर पृथ्वीराज - ये अपने तेज तर्रार मिज़ाज व बहादुराना बर्ताव के कारण इतिहास में उड़णा राजकुमार या उड़न पृथ्वीराज के नाम से प्रसिद्ध हुए इस समय पूरे राजपूताने में महाराणा से ज्यादा चर्चे कुंवर पृथ्वीराज के रहते थे ये बड़े उग्र स्वभाव के थे इन्होंने मेवाड़ के हित में कई लड़ाईयाँ लड़ीं बनवीर इन्हीं कुंवर पृथ्वीराज का दासीपुत्र था।
कुंवर पृथ्वीराज एक स्थान से दूसरे स्थान पर जिस तीव्रता से पहुँचते थे और दुश्मन पर जिस तीव्र वेग से आक्रमण करते थे उसके कारण उस वक्त उन्हें लोग उडणा (उड़ने वाला) पृथ्वीराज कहने लगे थे मुंहता नैंणसी ने अपनी ख्यात में लिखा है कि पृथ्वीराज ने एक दिन में टोडा और जालौर जो एक दूसरे से 200 मील के अंतर पर है धावा किया और तब से वे उड़न पृथ्वीराज कहलाये।
गयासुद्दीन को पिछली हार बर्दाश्त न हुई और उसने दोबारा मेवाड़ पर हमला किया।
यह सुन कुंवर पृथ्वीराज ने अपना दल एकत्रित किया नीमच में जा पहुंचे और वहां 5000 सवार एकत्रित कर देपालपुर पहुँच उसे लूट लिया और वहां के हाकिम को मार डाला इस आक्रमण के समाचार सुन कर सुल्तान गयासुद्दीन और तेजी से आगे बढ़ा।
गयासुद्दीन ने अपने सेनापति मलिक जफ़र खां के साथ मेवाड़ के मुल्क को बर्बाद करना शुरु किया व कोटा, भैंसरोड, सोपर वगैरह इलाकों में थाने मुकर्रर किए।
कुंवर पृथ्वीराज ने गयासुद्दीन की फौज को मांडू तक खदेड़ दिया और मांडू के पास खैराबाद नाम के इलाके को लूटकर तबाह किया।
इस लड़ाई में कुंवर पृथ्वीराज के घोड़े का नाम परेवा था व कुंवर संग्रामसिंह (सांगा) के घोड़े का नाम जंगहत्थ था।
मांडू के बादशाह गयासुद्दीन ने महाराणा रायमल्ल के पास दोस्ती का प्रस्ताव लेकर अपने एक खैरख्वाह को भेजा
महाराणा रायमल्ल उस मुलाज़िम से बड़ी ही नम्रता से बात कर रहे थे तभी कुंवर पृथ्वीराज ने ये देखा तो महाराणा से बोले हुकुम क्या मुसलमानों से इतनी अज़ीज़ी के साथ बात करते हैं ?
ये सुनकर वह मुलाज़िम उसी वक्त उठकर बादशाह गयासुद्दीन के पास पहुंचा और सारा हाल कह सुनाया
गयासुद्दीन ने मेवाड़ पर चढाई की महाराणा रायमल्ल ने भी कुंवर पृथ्वीराज के नेतृत्व में फौज भेजी कुंवर पृथ्वीराज ने महाराणा को वचन दिया कि आज किसी भी हाल में मैं गयासुद्दीन को बन्दी बनाकर आपके पास लाऊंगा।
दिन भर की लड़ाई के बाद कोई नतीजा नहीं निकला और रात होने पर दोनों फौजें अपने-अपने डेरों में चली गई कुंवर पृथ्वीराज ने अपना वचन पूरा करने के लिए चालाकी से रात के वक्त 500 मेवाड़ी बहादुरों के साथ बादशाही डेरों पर हमला कर दिया।
कई दुश्मनों को मारने के बाद कुंवर पृथ्वीराज ने गयासुद्दीन को बन्दी बना लिया बन्दी बनाकर जब कुंवर चित्तौड़ दुर्ग में जाने लगे तो बादशाही फौज ने उनको चारों तरफ से घेर लिया।
कुंवर पृथ्वीराज ने गयासुद्दीन से कहा कि अगर ज़िन्दा रहना है तो बेहतर होगा कि कुल बादशाही फौज पीछे हट जावे
तब गयासुद्दीन ने फौज को पीछे हटने का हुक्म दिया।
कुंवर पृथ्वीराज गयासुद्दीन को चित्तौड़ ले आए महाराणा रायमल्ल ने महीने भर बाद दण्ड (जुर्माना) लेकर गयासुद्दीन को छोड़ दिया।
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(पोस्ट लेखक --: रॉयल राजपूत अज्य ठाकुर गोत्र भारद्वाज पंजाब जिला पठानकोट गांव अंदोई)