एक नजर
भगतसिंह ने अपने एक महत्वपूर्ण लेख में जुलाई 1928 में ‘किरती‘ में नेहरू को लेकर अपने तार्किक विचार रखे हैं। उन्हें नेहरू का यह तर्क बेहद पसंद आया जिसमें उन्होंने कहा था ‘‘प्रत्येक नौजवान को विद्रोह करना चाहिए। राजनैतिक क्षेत्र में ही नहीं बल्कि सामाजिक, आर्थिक और धार्मिक क्षेत्र में भी। मुझे ऐसे व्यक्ति की कोई आवष्यकता नहीं जो आकर कहे कि फलां बात कुरान में लिखी हुई है। कोई बात जो अपनी समझदारी की परख में सही साबित न हो उसे चाहे वेद और कुरान में कितना ही अच्छा क्यों न कहा गया हो, नहीं माननी चाहिए।‘‘ भगतसिंह के अनुसार यह एक युगान्तरकारी विचार है। धार्मिकता के लबादे में लिपटे हुए विचारों की सान पर चलकर क्रांति नहीं हो सकती-ऐसा नेहरू का तर्क रहा है। इसलिए भगतसिंह ने नेहरू के इस कथन का दुबारा उद्धरण दिया। ‘‘वे कहते हैं कि जो अब भी कुरान के जमाने के, अर्थात 1300 बरस पीछे के अरब की स्थितियां पैदा करना चाहते हैं या जो पीछे वेदों के जमाने की ओर देख रहे हैं उनसे मेरा यही कहना है कि यह तो सोचा भी नहीं जा सकता कि वह युग वापस लौट आयेगा, वास्तविक दुनिया पीछे नहीं लौट सकती, काल्पनिक दुनिया को चाहे कुछ दिन यहीं स्थिर रखो। और इसीलिए वे विद्रोह की आवश्यकता महसूस करते हैं।‘‘
विनोद कोचर जी के वाल से