आज देश के जनजातियो के बारे में बात करते है | सबसे पहले हम गोंड जनजाति के बारे में चर्चा करेंगे |
गोंड --
भारत की प्रमुख और सबसे बड़ी जनजाति है | मध्यप्रदेश तथा छतीसगढ़ में गोंड जाती का सर्वाधिक प्रसार है | जनजातीय बहुल राज्य , मध्य प्रदेश में गोंडो की सघत बस्ती बैतूल , होशंगाबाद , छिन्दवाडा,बालाघाट , शहडोल ,मण्डला,सागर , दमोह में है | मध्यप्रदेश के विन्ध्य और सतपुडा पर्वत श्रृखला के जंगलो में नर्मदा नदी के उद्गम अमरकंटक से लगाकर भड़ोच - गुजरात में उसके समुद्र में मिलने तक के पुरे रास्ते में और छतीसगढ़ में विशेष रूप से बस्तर , कांकेर ,दन्तेवाडा,रायपुर , धमतरी बिलासपुर ,कोरबा , सरगुजा , कोरिया , दुर्ग कवर्धा आदि क्षेत्र में गोंड जनजाति की कोई न कोई शाखा अवश्य निवास करती है | मध्य प्रदेश के अतिरिक्त गोंड महाराष्ट्र , अंदर प्रदेश , बिहार , उड़ीसा , कर्नाटक , पश्चिम बंगाल , गुजरात और उत्रर प्रदेश में भी रहते है |
गोंड तेलगु भाषा के शब्द कोंण्ड का अपभ्रंश मन जाता है | तेलगु में कोंण्ड शब्द का अर्थ वन आच्छादित पर्वत है | मध्य प्रदेश में गोंडो के कुछ एतिहासिक साक्ष्य मिलते है | प्राचीन समय में इस क्षेत्र का एक बड़ा भूभाग गोंडवाना कहलाता था | इनके मिथकों में अनेक गोंड गढ़ों व राजाओं के जिक्र व पुरातात्विक रूप से मिले साक्ष्यो के आधार पर यह मत बनता है किएक समय गोंड समुदाय का बड़े हिस्से में साम्राज्य था | होंडो की उअत्प्त्ति कहाँ से हुई , इसको लेकर भिन्न - भिन्न मत है | कुछ का मानना है कि वे द्ख्सिं से इस तरफ आये , जबकि अन्य कुछ विद्वान् अमरकंटक के अथवा नर्मदा के क्षेत्र को इस जनजाति का भी उद्गम क्षेत्र मानते है | गोंडी भाषा को आधार माने तो इनके दक्षिण से इस तरफ आने की ही बात स्पष्ट होती है | गोंडी द्रविड़ भाषा परिवार का हिस्सा है | हालांकि मध्यप्रदेश में रहने वाले गोंड प्राय: गोंडी नही है छ्तिस्ग्धि भाषा का प्रयोग करते है | अलग - अलग अंचलो में रहने वाले कई उपशाखाओ के नाम से जाने जाते है और यदि एक ही नाम है , तब भी इनके रहन - शान में बहुत फर्क होता है | मण्डला में गोंड बड़ी किसानी के साथ जुड़े होने के कारण राजगोंड कहलाते है | गोंड राजाओं तथा ब्दादेव की गाथा गाने वाले परधान गोंड , एक जगह से दूसरी जगह डेरा डालकर नाचने - गाने वाले भिम्मा , धोबा , कोइला भूता लोहा गलाने वाले अगरिया भी इस क्षेत्र में मिलते है | गोंड घर की दीवारों को स्त्रिया मिटटी तथा रंगो से सजाती है , जिन्हें नाह डोरा कहते है | दीवारों के साथ - साथ नील , गेरू , छुई मिटटी , कालिख आदि से फर्श पर भी ढींगलगाई जाती है , जिसे ढिंगना कहते है | डिन्डोरी जिले एक गाँव पाटनगढ़ के परधान गोंड चित्रकार श्री जनगढ़ सिंह को चित्रों की एक ख़ास शैली विकसित करने का श्री जाता है | गोंड समुदाय कथाओं , मुहावरों , पहेलियो के साथ साथ नृत्य - गीत का भी अत्यंत शौक़ीन होता है , करमा सिला , रीना ददरिया सुआ इनके प्रमुख गीत है , जिन्हें स्वांग गम्मत या तमाशा कहते है |