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इंदिरा गांधी, 12 विलिंगडन क्रिसेंट

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 इंदिरा गांधी, 12 विलिंगडन क्रिसेंट/ विवेक  शुक्ला 

 लुटियन दिल्ली के इस बंगले को बाहर से देख कर यकीन नहीं होता कि इस छोटे से बंगले में कभी श्रीमती इंदिरा गांधी रही होंगी। ये है 12 विलिंगडन क्रिसेंट ( अब मदर टेरेसा मार्ग)। इंदिरा गांधी इसमें 1977 में शिफ्ट हुई थीं। कांग्रेस को लोकसभा चुनावों में पराजय मिली। वह प्रधानमंत्री नहीं रहीं। तब उन्हें 12 विलिंगडन क्रिसेंट का सरकारी बंगला मिला था।

 

कहने वाले कहते हैं कि कायदे से उन्हें जनपथ,कृष्ण मेनन मार्ग या राजाजी मार्ग में सरकारी आवास मिलना चाहिए था। 12 विलिंगड़न क्रिसेंट का बंगला निश्चय ही पूर्व प्रधानमंत्री के कद के इंसान को नहीं मिलना चाहिए था।


 तवलीन सिंह ने अपनी किताब ‘दरबार’ में लिखा है कि श्रीमती गांधी के साथ 12 विलिंगडन क्रिसेंट में उनके पुत्र राजीव गांधी, उनकी पत्नी सोनिया गांधी और बच्चों राहुल और प्रियंका के साथ-साथ  संजय गांधी अपनी पत्नी मेनका गांधी के साथ शिफ्ट हुए थे। प्रधानमंत्री बनने से पहले ही श्रीमती इंदिरा गांधी 1 सफदरजंग रोड के बंगले मं रहा करती थी। उन्हें 1 सफदरजंग रोड का सरकारी आवास तब अलॉट हो गया था जब वह लालबहादुर शास्त्री की कैबिनेट में आईं थीं। हालांकि प्रधानमंत्री बनने के बाद उन्हें 11 अकबर रोड भी मिल गया था ताकि वहां पर उनका दफ्तर बन सके।

 

इंदिरा गांधी के नए घर में मुख्य रूप से उनके जीवंतपर्यंत निजी सचिव रहे आर.के धवन रोड आते थे।श्रीमती इंदिरा गांधी ने 12 विलिंगडन क्रिसेंट में बहुत कष्ट भरे दिन देखे। इधर उन्हें सीबीआई ने गिरफ्तार किया। यहां पर रहते हुए वह निराश रहने लगी थीं। उनके मन में कहीं ना कहीं सियासत से दूरी बनाने के भी विचार आते थे। हालांकि जानकार दावा करते रहे हैं कि  उन्हें संजय गांधी से बहुत ताकत मिलती था। संजय गांधी अपनी मां को राजनीति में बने रहने के लिए कहा करते थे। सत्ता से दूर जाने के बाद इंदिरा गांधी राजधानी के सप्रु हाउस और विभिन्न दूतावासों में होने वाले अति सामान्य सामाजिक कार्यक्रमों में भी भाग लेने चली जातीं थीं। उस दौर में उनका जीवन किसी आम इंसान कीतरह से गुजर रहा था।

 

बहरहाल, जनता पार्टी में कलह और टूट के बाद देश में फिर से 1980 में लोकसभा चुनाव हुए। इस बार कांग्रेस को विजय मिली और वह फिर से देश की प्रधानमंत्री बनीं। इसके साथ ही इंदिरा गांधी 1, सफदरजंग रोड में वापस लौट गईं। 12 विलिंगड़न क्रिसेंट आगे चलकर डा. एम.ए,गिल को भी मिला जब वे खेल और युवा मामलों के मंत्री बने। वे कहा करते थे कि  वे जब भी अपने बंगले के बगीचे में टहलते हैं तो उनके जेहन में इंदिरा गांधी की छवि आ ही जाती है।

  उदासी1सफजरजंग रोड की

श्रीमती इंदिरा गांधी की 31 अक्तूबर 1984 को हत्या हो जाती है। उसके बाद 1 सफदरजंग रोड को स्मारक में तब्दील कर दिया जाता है। इधर दिन भर में कुछ पर्यटक पहुंचते हैं।  कुछ गुब्बारे और पर्यटन से संबंधित किताबें बेचने वाले मायूस से ही खड़े मिल जाते है। इधर इंदिरा गांधी के वे खून से सने कपड़े भी रखे हैं,जो उन्होंने अपनी हत्या के वक्त पहने हुए थे।


इधर आकर बहुत कष्ट होता है। एक दौर में जिधर चहल-पहल रहती थी वहां पर अब गिनती के ही लोग पहुंचते हैं। यहां पर इंदिरा गांधी के जीवन से जुड़े दुर्लभ चित्र भी देखने को मिलते हैं।


यहां पर आपको कोई 31 अक्तूबर,1984 के घटनाक्रम की विस्तार से जानकारी देना वाला मिल जाएगा। वह बताएगा कि  उस मनहूस दिन तुगलक रोड थाना प्रभारी राजेन्द्र प्रसाद को वायरलेस से सुबह करीब साढ़े 9 बजे पता चला कि इंदिरा जी को उनके सुरक्षाककर्मियों ने ही गोली मार दी है। ये सूचना मिलते ही वे घटनास्थल पर भागे। उन्होंने हादसे के चशमदीद गवाह और दिल्ली पुलिस के हेड कांस्टेबल नारायण सिंह के बयान के आधार पर दिन में 11.30 बजे के बाद एफआईआर लिखी। 


एफआईआर को लिखा गया एम्स में जहां पर इंदिरा गांधी को गोली लगने के बाद इलाज के लिए लेकर जाया गया था। मूल रूप से चमोली के रहने वाले नारायण सिंह इंदिरा गांधी  1, सफदरजंग रोड में 1980 से ड्यूटी कर रहे थे। उन्होंने ही बताया था कि किस तरह से बेअंत सिंह और सतवंत सिंह ने इंदिरा जी पर गोलियों की बौछार की थी।  उस समय वहां पर इंदिरा जी के सचिव आर.के.धवन, दिल्ली पुलिस के एसीपी दिनेश चंद्र भट्ट और कुछ और अधिकारी मौजूद थे।  इंदिरा गांधी की हत्या के कुछ समय के बाद यहां के एसएचओ राजेन्द्र प्रसाद का तबादला हो गया था। उधर, नारायण सिंह सन 2006 में दिल्ली पुलिस से रिटायर होने के बाद वापस चमोली चले गए थे।


19 नवंबर 2020 को लोकमत में पब्लिश लेख के अंश।


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