हीर रांझा के वंशज और लव जिहाद / रवि अरोड़ा
उनके नाम के साथ उपनाम के तौर पर लिखे ‘ अरोड़ा ‘ शब्द के कारण मैं हक़ से कह सकता हूँ कि दामोदर दास अरोड़ा मेरे पूर्वज रहे होंगे । वही दामोदर दास जो संयुक्त पंजाब के झंग शहर के बाशिंदे थे और उन्होंने ही सबसे पहले झंग की एक किवदंती पर क़िस्सा ए हीर-रांझा लिखा था । कहते हैं कि हीर भी झंग की रहने वाली थी । इस क़िस्से को बाद में वारिस शाह व मियाँ मोहम्मद बक्श जैसे कवियों ने भी लिखा और मनमोहक गायन शैली के साथ घर-घर पहुँचाया । केवल हीर-रांझा ही क्यों पंजाब की धरती पर ऐसी दर्जनों कहानियाँ जन्मी जो आज भी प्रेम की मिसाल के तौर पर याद की जाती हैं । उनमे से सोहनी-महिवाल, सस्सी-पुन्नू और मिर्ज़ा-साहिबा जैसी कई कहानियाँ तो लोकगीतों के माध्यम से हमारी संस्कृति में सदा सदा के लिए रच-बस गई हैं । पंजाब के इतर भी देखूँ तो देश-दुनिया में ऐसी कहानियाँ भरी पड़ी हैं । हज़ारों नई कहानियाँ भी जन्म ले रही हैं और प्यार के दुश्मनों से टक्कर लेती हुई परवान चढ़ने के जतन कर रही हैं । बेशक आधुनिकता के इस दौर में वक़्त बदला है मगर फिर भी हालात नहीं बदले । पहले प्यार पर घरवालों और समाज का पहरा होता था मगर अब उस पर राज्य का नया पहरा भी आ जुड़ा है । यह नया पहरा हालाँकि लव जिहाद को रोकने के नाम पर आ रहा है मगर काम यह भी प्यार के दुश्मन यानि हीर के चाचा क़ैदो जैसा ही करेगा ।
बेशक केंद्र में बैठी भाजपा सरकार ने अभी अपने पत्ते नहीं खोले हैं मगर उसकी राज्य सरकारों मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, हरियाणा और कर्नाटक से इस मंशा के क़ानून बनाने की तैयरियाँ शुरू हो गई हैं । वैसे इस पर कोई बात नहीं कर रहा कि अंतरधार्मिक विवाहों में अड़चन डालने की इस जुगत की आख़िर ज़रूरत क्यों पड़ रही है ? यदि विवाह के नाम पर ज़बरन धर्म परिवर्तन कराया जा रहा है तो आईपीसी की धारा 493 के तहत कार्रवाई क्यों नहीं की जा रही ? इस सख्त धारा में तो दस साल की सज़ा का प्रावधान है । सवाल यह भी है कि समाज में लव जिहाद जैसा वाक़ई कुछ हो रहा है तो उसके आँकड़े राज्य सरकारें क्यों नहीं बता रहीं ? पूछा तो यह भी जाना चाहिये कि लव जिहाद के क़ानून को लेकर जिस तरह के प्रतिबंधों की बात चल रही है , क्या वह हमारे संविधान के अनुच्छेद 14 व 21 का उल्लंघन नहीं होगा जो हमें धर्म अथवा जाति के आधार पर किसी भी भेदभाव से मुक्त करता है ? प्रश्न तो यह भी है कि इस नये क़ानून के बाद स्पेशल मेरिज एक्ट 1954 का क्या होगा जो कहता है कि विवाह के लिये धर्म बदलने की कोई आवश्यकता नहीं है ।
एक तरफ़ तो सुप्रीम कोर्ट कहता है कि अंतर्जातीय व अंतरधर्मिक विवाहों को प्रोत्साहन दिया जाना चाहिये । इसके लिये ज़िला स्तर पर कमेटियाँ बनाने की बात भी वह कहता है । इसी के अनुरूप कई राज्य सरकारें ऐसे लोगों को प्रोत्साहन राशि भी देती हैं मगर वहीं इस तरह का क़ानून बनाया जा रहा है । इस क़ानून के बाद हर अंतरधर्मिक विवाह लव जिहाद की नज़र से देखा जाएगा और इसके लिये विवाह के इच्छुक जोड़े को ज़िला प्रशासन के समक्ष एक महीने पहले आवेदन करना होगा । नये क़ानून में जब दोषी पाये जाने पर अधिकारी को भी सज़ा का प्रावधान होगा अतः कोई अधिकारी भला इसकी अनुमति फिर क्यों देगा ?
370 का मुद्दा ख़त्म, राम मंदिर विवाद का पटाक्षेप, एनआरसी और सीएए के क़ानूनी झमेले के बाद भगवा ब्रिगेड के हाथ आख़िर वह टोटका लग ही गया है जो उसकी पहली पसंद यानि मुल्क में हिंदू-मुस्लिम की विभाजन रेखा को और चौड़ा करने का काम करेगा । चलो जाने दीजिये , उनका टोटका उन्हें मुबारक मगर मुझे तो फ़िक्र उन युगल जोड़ों की हो रही है जो इस क़ानून के लागू होने के बाद या तो ऑनर किलिंग का शिकार होंगे अथवा पंजाब की प्रेम कथाओं की तरह आत्महत्या कर लेंगे । मुझे भला ऐसी चिंता हो भी क्यों न , आख़िर हूँ तो मैं भी हीर-रांझा के लेखक दामोदर दास अरोड़ा का वंशज ही ।