अहमद पटेल नहीं रहे।
1991 से उनसे बहुत प्रगाढ़ सम्बंध थे। लिखते हुए, टीवी चैनलों पर डिबेट में कई बार मैंने उनकी तीखी आलोचना की लेकिन अन्य नेताओं के विपरीत, उन्होंने कभी मन में गांठ नहीं पाली। हाँ, फोन पर यह जरूर कहते थे- "तुम को गलतफहमी है कि कांग्रेस मैं ही चला रहा हूँ। अरे यार मैं सिर्फ मेसेज पास ऑन करता हूँ। तुम तो पार्टी की वर्किंग समझते हो। मैडम के डिसीजन होते हैं, मैं सिर्फ उनको रिलेटेड जनरल सेक्रेटरी को पास ऑन कर देता हूँ, उनकी बात मैडम तक पहुंचाता हूँ। चल आ जा सैटरडे को नौ बजे के बाद।"यह उनके रटे रटाये वाक्य थे।
जब 23, विलिंग्डन क्रिसेंट पहुंचो तो दो घण्टे से कम इंतजार नहीं करना पड़ता था। खैर, गलती उनकी नहीं होती थी, मुलाकाती ही इतने होते थे। अपनी किस्मत कि अगर बीच में कमरे से बाहर किसी को छोड़ने आ गए, मुझ पर नजर पड़ गयी, तो कहते-"अरे कब आये, आ जाओ। "फिर मिलते तो कोई शिकायत नहीं। बल्कि इस बारे में चर्चा भी नहीं करते थे कि मैंने क्या लिखा। हंसी मजाक, इधर उधर की बात। कुछ पूछो तो घुमा फिराकर इशारों में बता देते थे, आप को समझना आता हो तो ठीक। वरना वो जिस पोजिशन में थे, उनसे पार्टी की अंदरूनी खबर निकाल लोगे, यह कल्पना भी मूर्खता थी। संकेतों को पकड़ लो। फिर उनके करीबी पदाधिकारियों से डिटेल ले लो। खबर मिल जाती थी।
काँग्रेस में सोनिया गांधी के अध्यक्ष बनने से हटने और फिर बनने तक अहमद भाई ही आंख, नाक, कान रहे। यह भी सत्य है कि उन्होंने जिसे चाहा वही पार्टी में कोई पद पा सका, जिसे बर्फ में लगाया, उसको गांधी परिवार चाहकर भी मदद नहीं कर सका। अभी विस्तार से लिखने का मौका नहीं है।
अहमद पटेल बेहद मृदुभाषी, मिलनसार और सचमुच में चाणक्य थे। यह सत्य है कि राहुल गांधी से उनकी पटरी नहीं बैठी। राहुल के अध्यक्ष पद सम्हालने के बाद अहमद भाई किनारे लग गए थे। राहुल के बजाय प्रियंका उनकी राय को हमेशा से ही ज्यादा महत्व देती रही थी। मैंने जितेंद्र प्रसाद को भी नरसिंहराव के राजनीतिक सचिव के तौर पर सर्वशक्तिमान देखा और जब सोनिया ने उन्हें हाशिये पर डाला तो वह टूट गए थे। यही कुछ अहमद भाई के साथ भी हुआ। राजनीति का यह पहलू बड़ा दर्दनाक होता है। जब बरसों तक आपके बंगले के बाहर दर्जनों गाड़ियां, सैकड़ों लोग एक मिनट मुलाकात के लिए तरसते हैं। फिर आपके शक्तिहीन होते ही खास चमचे भी मुँह फेर लेते हैं। बहुत विरले लोग ही होते हैं जो इस हाल को झेल पाते हैं। अर्जुन सिंह, शीला दीक्षित भी कुछ हद तक इसी उपेक्षा से टूटे। मानसिक तनाव का स्वास्थ्य पर बुरा असर पड़ता है।
नरेंद्र मोदी सरकार के आने के बाद से अहमद पटेल गाहे बगाहे राजनीतिक बदले के खेल में निशाने पर थे। स्वाभाविक ही था। सोनिया गांधी के या मनमोहन सिंह सरकार के दस साल के कार्यकाल के सभी राज केवल वही जानते थे। कोयला घोटाले, हेलीकॉप्टर सौदे और अन्य कई मामलों में उन्हें लपेटने के लिए जांच एजेंसियों ने शिकंजा कसा हुआ था। इस वजह से भी वह जबरदस्त तनाव में थे। जाहिर है, इससे भी स्वास्थ्य पर प्रतिकूल असर पड़ा। कोरोना ने कसर पूरी कर दी। दुनिया छोड़ गए। और छोड़ गए संकट में फंसी पुत्रमोह में परेशान सोनिया गांधी को, अकेली।
अलविदा अहमद भाई। एक शानदार पारी खेली। अल्लाह आपको पनाह में ले।
इन्ना लिल्लाही व इन्ना इलैही राजिऊन💐🙏🏼