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रेणु : एक विरल वनस्पति / भारत यायावर

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 रेणु  : एक विरल वनस्पति !

          

       भारत यायावर


इस सृष्टि में कितने तरह के जीव- जन्तु हैं और वनस्पतियों की संख्या  ! अब तक  खोजने की प्रक्रिया जारी है! रेणु भी विरल वनस्पतियों की खोज में  लगे रहते थे । जब कोशी नदी पर डैम बनाया जा रहा था और वृहद् स्तर पर  नहरों का निर्माण किया जा रहा था , तब कोशी प्रोजेक्ट की एक काॅलोनी ही फारबिसगंज के पास बस गई थी ।उसमें एक बंगाली डाक्टर राय चौधरी काम करते थे । वे विरल वनस्पतियों की खोज में लगे रहते थे । उनको विश्व के दुर्लभ पेड़-पौधों  की अदभुत जानकारी थी ।रेणु जी  से उनकी  पाइरिथ्रम नामक पौधे पर अक्सर बातें  हुआ करती थी ।


पाइरिथ्रम वह दुर्लभ वनस्पति है,  जिसकी गंध से मच्छर, कीट- पतंगे  दूर भागते हैं ।रेणु जी के पिताजी  और दोनों छोटे भाई मलेरिया से काल-कवलित हो चुके थे । इसलिए उन्होंने इस खोज के बाद विदेश से बहुत मुश्किल से यह पौधा मँगवा कर अपने घर में लगवाया था । उसके बाद उनके घर मलेरिया से किसी की मृत्यु नहीं हुई । विरल वनस्पतियों की खोज में लगे रहने वाले राय चौधरी को जब उन्होंने सुझाव दिया कि यदि इस पौधे को वराह क्षेत्र में  बहुतायत में  उगाया जाए , तो कोशी के जल में उसके फूल और पत्तियों के घुल-मिल जाने पर पूरेअँचल से मलेरिया का प्रकोप दूर हो जाएगा । राय चौधरी ने वराह क्षेत्र में यह प्रयोग किया और वह सफल रहा ।

कीटनाशक गुण के कारण ही इसे पाइरिथ्रम कहते हैं । 'मैला आँचल 'के प्रकाशन के बाद रेणु जी ने अपने घर के सामने अनेक दुर्लभ पौधों को न जाने कहाँ-कहाँ से खोज कर लगाया था । अपने इलाके के बंज़र ज़मीन पर पेड़ लगाने का सपना लेकर वे 'परती:परिकथा 'लिखकर उन्होंने अपने छोटे भाई को इन शब्दों में  समर्पित किया :


                         भैया महेन्दर,

                         तुम नहीं रहे, तुम्हारी कल्पना साकार हुई है!

                         सिमराहा की सपाट धरती पर

                         हज़ारों पेड़ लग गए हैं ।

                                                 -- भैया


महेन्द्र रेणु जी का सबसे छोटा भाई था । कुशाग्र बुद्धि और प्रतिभाशाली!  रेणु जी  अपनी तरह- तरह की खोजपरक बातें  उसे सुनाया करते थे । उसकी भी  प्रबल इच्छा थी कि सिमराहा की सपाट धरती पर पेड़ लगें और हरियाली का आगमन हो! 1950 में वह दिवंगत हो गया । चूंकि वह इस जगत को छोड़कर चला गया,  इसलिए रेणु से भी वरिष्ठ हो गया ।इसीलिए रेणु जी ने भैया महेन्दर कहा । घर में सभी उसे महेन्द्र की जगह महेन्दर ही कहा करते थे और वह रेणु जी को सदैव भैया ही कहा करता था । रेणु की खोज पूरी हुई ।विरल वनस्पतियों की खोज में लगे रहने वाले राय चौधरी ने जब रेणु के वनस्पतियों के ज्ञान को देखा तो कहा-- तुम स्वयं एक विरल वनस्पति हो!


रेणु  की रचनाशीलता  में  ज्ञान के इतने विविध विषयों और रूप समाहित हैं कि उन्हें देखकर आश्चर्य होता है । पशु-पक्षियों,  पेड़- पौधों, मछलियों,कुत्तों, कारों, मिट्टी, फसलों,  कई-कई भाषाओं,  मनुष्य के अनेकानेक रूपों और उनकी मानसिकता,  अनेक शास्त्रों,  साहित्य की जातीय परम्परा आदि का उनका  ज्ञान हतप्रभ कर देता है । संगीत,  चित्रकला और कविता के मर्मज्ञ!


इस मैले आँचल में  ऐसे साधक को देखकर  सहसा आश्चर्य होता है और आश्चर्य होना स्वाभाविक भी है ।


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