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फेसबुक लेखन पर नया नज़रिया / जगदीश्वर चतुर्वेदी

फेसबुक  लेखन 

जीवन में कमीनापन पसंद नहीं करते तो फेसबुकलेखन में कमीनापन कैसे मान लें। कमीनेपन की लेखन में कोई जगह नहीं है। कमीनापन असभ्यता है। लेखन का काम है कमीनेपन को नंगा करना, न कि कमीनापन करना।


फेसबुक  कल्चर स्वस्थ कल्चर बने और इसे फेक होने से यथासंभव बचाएं।यह कम्युनिकेशन का बड़ा माध्यम है । फेसबुक पर ज्यादा से ज्यादा यथार्थवादी-मानवीय और सरल बनें।तर्क करें , पंगे न करें। नई बातें लिखें ,अपमान न करें। आलोचना लिखें,गाली न दें या हेयभाषा न लिखें। यह नया कम्युनिकेशन है और इसका शास्त्र अभी रचा जाना है।


जिस तरह समाज में मूर्खों की कमी नहीं है ,वैसे ही फेसबुक पर भी बिना बुलाए चले आते हैं। जिस तरह समाज में फंडामेंटलिस्ट और अविववेकवादी हैं, फेसबुक पर भी हैं।  फेसबुक को समृद्ध करने का तरीका है मूर्खों और अविवेकवादियों को उनके हाल पर छोड़ दिया जाय। अविवेकवादी-फंडामेंटलिस्ट  किसी भी दल में हो सकते हैं। हम उनको पहचानें और छोडें।


लोकतांत्रिक कल्चर है विपक्ष के साथ बैठना और आलोचना करना। "हेट " ,"निंदा "या "घृणा"को कभी पास न फटकने देना। अपना यही फेसबुक पर उसूल है। मोदी हो या फंडामेंटलिस्ट हों या कांग्रेसी हों हम इनको पसंद नहीं करते, फिर भी ये लोग समाज में हैं तो इनकी हरकतों की बार बार आलोचना करते हैं।आलोचना करना लोकतंत्र में जीना है। यह विरोधी को गले लगाना नहीं है।


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