द्विवेदी युगीन कविता के सशक्त हस्ताक्षर बालकृष्ण शर्मा ‘नवीन’ जी की आज जयंती है| उन्होंने ब्रजभाषा प्रभाव से युक्त खड़ी बोली हिन्दी में काव्य रचना की| अपलक, क्वासि, उर्मिला, कुंकुम, रश्मिरेखा आदि उनकी प्रतिनिधि रचनाएँ हैं| साहित्य और शिक्षा के क्षेत्र में उनके अवदान के लिए उन्हें में पद्मभूषण सम्मान से सम्मानित किया गया| उनको सादर नमन|
हम तो ओस-बिंदु सम ढरके
आए इस जड़ता में चेतन तरल रूप कुछ धर के!
क्या जाने किसने मनमानी कर हमको बरसाया
क्या जाने क्यों हमको इस भव-मरुथल में सरसाया
बाँध हमें जड़ता बंधन में किसने यों तरसाया
कौन खिलाड़ी हमको सीमा-बंधन दे हरषाया
किसका था आदेश कि उतरे हम नभ से झर-झरके?
आज वाष्प वन उड़ जाने की साध हिये उठ आई
मन पंछी ने पंख तौलने की रट आज लगाई
क्या इस अनाहूत ने आमंत्रण की ध्वनि सुन पाई
अथवा आज प्रयाण-काल की नव शंख-ध्वनि छाई
मन पंछी ने पंख तौलने की रट आज लगाई
क्या इस अनाहूत ने आमंत्रण की ध्वनि सुन पाई
अथवा आज प्रयाण-काल की नव शंख-ध्वनि छाई
लगता है मानो जागे हैं स्मरण आज अंबर के।