*कौन सी शान कैसा किसान ..!!*
शर्मा जी अपने शहर के कितने बड़े बिजनेसमैन है यह उस क्लब की फीस जान कर पता किया जा सकता है जिसकी मेम्बरशिप उन्होंने ले रखी हैं. उनकी श्रीमती जी की वीकली किट्टी पार्टी का जितना खर्च है अगर इसकी जानकारी इनकम टैक्स वालों को हो जाए तो छापा मारने के लिए काफी है. उनकी पार्टी में अब कोकटेल को लीगल पेय मान लिया गया है. ताश को बगैर पैसे लगाए खेलने को पिछड़ेपन की निशानी माना जाता है. रचनात्मकता के नाम पर कौन कितनी महंगी साड़ी पहन कर आता है की परख की जाती है. खाने के नाम पर इतनी रेंज मंगा ली जाती है कि खाने वाला कितना पेट में डालता है उससे ज्यादा उसकी शान इस बात से झलकती है कि वह कितना डस्टबिन में फेंकता है.
सामने टीवी कम होम थियेटर टाइप की कोई चीज़ चल रही है. एम् टीवी और बिंदास जैसे संस्कारिक चैनल उस पार्टी के माहौल में चार चाँद लगा रहे है. तभी किसी का हाथ धोखे से रिमोट पर पड़ जाता है और उसके हाथ न्यूज़ चैनल चलाने के पाप से रंग जाते हैं. गनीमत थी कि मस्ती के टॉप गियर में झूमते लोगों ने इस दुर्घटना का संज्ञान नहीं लिया. अभी विज्ञापन जारी थे. घोषित रूप से छोटा सा ब्रेक अघोषित रूप में पूरे पांच मिनट बाद ख़तम हुआ. बैक ग्राउंड म्युज़िक के साथ ब्रेकिंग न्यूज़ से खबर शुरू हुई. “अपनी मांगों के लिए प्रदर्शन कर रहे कई किसान कड़कड़ाती ठण्ड से मरे ..!!” छनछ्नाते म्यूजिक के साथ चल रही खबर से सबका ध्यान टीवी के कार्यक्रम के साथ हुई छेड़खानी पर गया. उस समय सबकी हालत उन देवताओं के जैसी ही थी जिनके यज्ञ में राक्षस लोग मांस –मंदिरा डाल कर व्यवधान पैदा कर दिया करते थे.
मिसेज़ शर्मा भी उन लोगों में से थी जिनके लिए न्यूज़ देखना किसी आपदा से कम नहीं होता है. उन्होंने अपने ब्यूटी पार्लर किये हुए मुंह को मेकअप की बलि देते हुए छत्तीस कोनो में कन्वर्ट किया. फिर बगल की मिसेज वर्मा से लगभग आक्रोशित स्वर में कहा-‘समझ में नहीं आता इन मुए किसानो को प्रदर्शन वगैरह करने का टाइम कहाँ से मिल जाता है , फालतू में मरने चले गए ?’ मिसेज वर्मा जो लगभग उन्ही की प्रजाति की महिलाओं का प्रतिनिधित्व कर रही थी ,उनसे भी बुरा मुंह बनाकर बोली-‘सही कहा मिसेज़ शर्मा आपने यहाँ देखिये वर्मा जी को सांस लेने की फुर्सत नहीं मिल पाती है , कितनी मुश्किल से पिछली बार दस दिनों की सिंगापुर ट्रिप कर पाए थे .’
उनके तल्ख़ तेवर में अपना योगदान करते हुए मिसेज़ शर्मा बोल पड़ी–‘वही तो मैं कह रही हूँ पता नहीं कितनी मांगे रहती हैं इनके पास , न जाने कहाँ से ले आते हैं इतनी मांगे. मेरे बेटे को देख लो साल में सिर्फ एक बार ही बाइक बदलने की मांग करता है बेचारा. मुझे ही देख लो पिछले करवा चौथ में महज पांच लाख की ज्वेलरी में ही मान गयी थी. समझ नहीं आते ये किसान हम लोगों से कुछ सीखते क्यों नहीं ? आये दिन उनकी क़र्ज़ की वजह से आत्महत्या करने की ख़बरें आया करती हैं. यहाँ बंटी के पापा ने अपनी मर्सिडीज़ क़र्ज़ लेकर ही तो खरीदी है मजाल है ज़रा सी टेंशन ले.’ उनके इस कृषि दर्शन से प्रभावित होकर मिसेज़ वर्मा अपनी खाने से सजी हुई प्लेट को डस्टबिन में डालते हुए अपने फिगर कांसेस होने का दावा करते हुए बोली-‘सही कहा जी आपने आज किसान के लिए सरकार चाहे जितनी सुविधाए दे दें लेकिन इनका रोना कम नहीं होता है.’ चलिए छोडिये कहाँ हम इन किसानो के चक्कर में अपनी किट्टी बर्बाद कर रहे हैं ..ओये ज़रा एम् टीवी लगा डांस –वांस हो जाए .’
अलंकार रस्तोगी