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सत्ता और राजनीति / चित्रगुप्त

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 सत्ता और राजनीति

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लोकतंत्र का एक फायदा तो है कि  कोई बिना काम नहीं रहता। जो खाली रहता है सरकार की बुराई करने में लग जाता है। वहीं सरकार तो ठहरी बहरी उसने कुछ सुनना तो है नहीं। कुछ भी बोलो क्या फर्क पड़ता है और अगर सुन भी लिया तो क्या बिगाड़ लेगी। आप ठहरे स्वतंत्र आदमी... और आपकी सारी स्वतंत्रता सिर्फ और सिर्फ आपके काम न करने पर निर्भर करती है। आपने जैसे ही कोई काम किया आपकी स्वतंत्रता खतरे में पड़ जाएगी। इसलिए बातें कुछ भी और कैसी भी कीजिये पर जब करने का मौका आये हाथ बांधकर बैठ जाइए। क्योंकि बैठे बिठाए अपनी स्वतंत्रता पर बट्टा काहे को लगाना। कुछ भी कहीं भी गलत दिखे तो दोषारोपण के लिए सरकार है ही। 


इन सबसे इतर पक्ष विपक्ष का खेल.... इससे तो राम ही बचाएं। सत्ता का विपक्ष पर हाय हाय और विपक्ष का सत्ता पर जबसे आंखे देखने लायक हुई जारी ही है।


फलाने जब सरकार में थे तब वो भी कुआं खुदवाना चाहते थे। हालांकि इसके पीछे उनका मकसद जन सरोकार था या कुछ और इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि बिल पास होने से पहले ही इसका सारा ठेका उन्होंने अपने साले और बहनोई को आवंटित कर दिया था।  


फिलहाल बात बिल की तो वो जैसे तैसे बिल तो ले आये लेकिन 'ढिमकाने'जो कि उनके विपक्ष में थे इसके खिलाफ जनता की अदालत में पहुंच गये। उन्होंने जनता को इसके नुकसान के बारे में बताया कि कैसे उनके मवेसी औऱ बच्चे उस कुएं में गिरकर मर जाएं बस इसी मकसद से फलाने ने सरकार में होने का फायदा उठाया है और ये बिल लेकर आ गये हैं। इतनी सीधी और सरल बात जनता के समझ में भला कैसे नहीं आती? देखते ही देखते जनता जाग गई और वो फलाने की सरकार के खिलाफ विद्रोह पर उतर आयी। 


फलाने चूंकि सरकार में थे इसलिए जनता में पक रही खिचड़ी की कुलबुलाहट को सुन नहीं पाये और उनकी सरकार जय सियाराम हो गई। 


ढिमकाने की जोड़ तोड़ काम आई अगली सरकार उनकी बनी। उनके कूचे में भी खुशियां मनाई गईं। सरकार चल गई। पर सरकार चलाने के लिए बहुत कुछ और भी करना पड़ता है इस बात का एहसास उन्हें अब हुआ। जिस कुएं को मुद्दा बनाकर उन्होंने फलाने की सरकार गिराई थी अब उनपर उसे खुदवाने का दबाव आने लगा। राज्य में पानी की किल्लत होने लगी। जिससे विदेशी व्यापारियों का आना कम हो गया तब उन्हें एहसास हुआ कि राज्य में कुओं की जरूरत मवेशियों और बच्चों को डुबाकर मारने के इतर पानी पीने के लिए भी होती है। 


रातों रात ठेके पास हुए और कुओं की खुदाई शुरू हो गई। लेकिन फलाने जो खुद सरकार में होते समय कुओं के लिए मरे जा रहे थे अब उसी के विरोध में धरने पर उतर आये थे। 


#चित्रगुप्त


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