चढ़ते सूरज के उपासक / डॉ अतुल चतुर्वेदी
वो जीवन भर धूप की तलाश में रहे । कभी गलती से छांह मिल भी गयी तो उन्होने उसे त्यागने में पल भर भी विलंब नहीं किया । दुष्यंत के शेर – कहीं धूप की चादर बिछा के बैठ गए ...को उन्होने अपने जीवन का फलसफा बना लिया था । लेकिन ऐसी-वैसी शाम को कभी भी सिरहाने नहीं लगाया । शामों को पढ़ने और भांपने का उन्हें व्यापक अनुभव था । शाम ढलने से पहले ही वो बंदे के जीवन से किनारा कर लेते । वे सिर्फ रंगीन शामों के चश्मदीद गवाह रहे , ढलती शामों के साक्षी कभी नहीं । सुरमई और दिलकश शामें उनकी कमजोरी थीं लेकिन मनहूस शामों से उनको घृणा थी । यूं कहें तो वे सच्चे सूर्योपासक ठहरे । उगते और चढ़ते सूर्यो के आगे दंडवत करने में उन्होने कभी परहेज नहीं किया । बल्कि कई बार तो श्रद्धा का जल लेकर उसमें भरपूर चाटुकारिता की रोली मिलायी । और इस तरह अपने जीवन के दिनमान ठीक करते रहे । सूर्य ज्योतिष के अनुसार पिता का कारक है इसलिए उन्होने ऐसे सूरजों को अपना बाप बनाने में भी कभी संकोच नहीं किया ।
उनकी फटकार भी खायी और नखरे भी उठाए । उनसे हित भी साधे और पीठ पीछे उनकी कुप्रशस्ति भी गायी । इन दिनों सर्दी फिर शबाब पर है । धूप की तलाश की जद्दोजेहद जारी है । धूप का एक टुकड़ा भी मयस्सर नहीं है मल्टीस्टोरी में । हाथ-पैर गल जाते हैं और घुटने दर्द करने लगते हैं धूप के शिशु के पीछे भागते भागते । लेकिन क्या मजाल कि धूप के किसी टुकड़े का एक बोसा भी आपकी देह को नसीब हो जाए । विटामिन डी की कमी के मारे ये लोग विटामिन डी थ्री की गोलियां लील लील के अपनी इम्यूनिटी बढ़ा रहे हैं । धूप है कि रूठ के छोटे बच्चे की तरह कभी बालकनी और कभी छज्जे की मुंडेर पर जा बैठी है । हमारे धूपोपासक जी कहते हैं – धूप का मतलब है ऊर्जा ...आपको दूसरे की ऊर्जा को रेडिएशेन या कंडक्शन से कैसी भी ग्रहण करना है । आप उसके संपर्कों के अवशोषण से ही ऊर्जावान बन सकेंगे । ऐसे कटियामार संबंधी हम सबके जीवन में होते हैं अलबत्ता । वो हंसते हुए बोले – मैं तो परम ऊर्जा अवशोषक ठहरा और मेरी ब्लैक बॉडी इसमें और सहयोगी भूमिका निभाती है । मैंने पूछा – तो क्या अपनी ऊर्जा का क्या आप अचार डालेंगे ? खुद को कर बुलंद इतना ...मैंने शेर उनकी ओर उछाल दिया । वो जैसे प्रतीक्षा में ही थे , सहज होते हुए कहने लगे – सूरज हर कोई नहीं हो सकता । अधिकांश लोग तो क्षुद्र ग्रह के मानिंद ही होकर रह जाते हैं । सूरज के प्रकाश के रास्ते में भी भ्रष्टाचार और भाई भतीजावाद , क्षेत्रीयतावाद की ऊंची अट्टालिकाएं हैं ।
मैं तो सदा धूप-छांह का खेल खेलता रहा हूं । धूप देख कर बंदे से पींगे बढ़ा लेता हूं और काम निकल जाने पर सींगें निकाल लेता हूं । मेरे मरखनी आचरण को देख कर फिर कोई पास भी नहीं फटकता । जीवन ऐसी चालाकियों से भरी यात्रा ही है और क्या । अचानक उनके अंदर का विचारक जाग्रत हो गया था । बड़बड़ाने लगे – जैसे आज शुद्ध हवा और पानी का कारोबार हो रहा है वैसे ही एक दिन ताजी और खुशनुमा धूप महंगे दामों पर मिलेगी । मद्धम धूप के चार्जेज कम होंगे और शाम ढली धूप रियायती दामों पर गरीबों के नसीब में भी बमुश्किल होगी । मल्टीनेशनल कंपनियां सन फेस्टिवेल का आयोजन किया करेंगी । सूरज भी बाजारी ताकतों का गुलाम हो जाएगा एक दिन ।
मैं उनकी सूरजमुखी चेतना को प्रणाम कर खिसकने वाला ही था कि हाथ में एक विजिटिंग कार्ड थमाते हुए वो बोले – लो , इनसे मिल लेना । तुमने मेरी बहुत सेवा की विपरीत से विपरीत मौसम में ...ये इस एरिये के बड़े उद्योगपति हैं बल्कि यूं कहें अपने समय के छोटे-मोटे पोर्टेबल सूर्य हैं । इनके चरण पकड़ लो तिर जाओगे । इनकी कृपा के चंद फोटान ही तुम्हारे जीवन का समस्त अंधियारा दूर कर देंगे और साथ ही विपन्नता के कीटाणु भी मर जायेंगे । मैं उनको विस्मित नेत्रों से निहार रहा था । मुझे लगा एक वो सूर्यपुत्र थे वचन के पक्के और एक ये हैं स्वार्थ में आकंठ निमग्न ।