मोक्ष हासिल करने के लिए / मुकेश नेमा
मोक्ष हासिल करने के लिये ऐसे अलग अलग क़िस्म के अनुष्ठान ,प्रावधान ,विधियाँ ,परम्परायें ,मौजूद है हमारे देश मे ,कि उन्हें जानकर बाक़ी दुनिया मुँह बाये हैरान हो सकती है ,जैसे जैन मुनि केशलोचन करते हैं ,वस्त्र त्याग कर पैदल चलते है ,एक समय ,जितना भी मिले उतना भोजन करते है ! बीमार होने पर अस्पताल नहीं जाते ,नागा साधु भी कुछ ऐसे ही हैं ,सुना है ब्रह्मचर्य के प्रति ऐसा भीषण आग्रह होता है इनका कि नागा सम्प्रदाय मे दीक्षित होने के पहले शिश्न तोड़ा जाना एक अनिवार्य प्रक्रिया है ! शैव अघोरी साधुओं के श्मशान मे अपनी भैरवी के साथ चिता तापने के क़िस्से भी सुने गये हैं ! साधुओं का ,भूखा रहना ,काँटों पर सोना और आग मे तपना ,खुद को कोड़े मारने जैसी बाते भी आप सभी की देखी सुनी होगीं ! और फिर मोहर्रम के जूलूस भी हैं ! खुद को घायल करते ,हुसैन को पुकारते लोगों की भीड़ ! ये सब परमात्मा से मिलने की गुहारे भर हैं !
दरअसल इन सभी बातों के पीछे जो अवधारणा है वह यह है कि शरीर को कष्ट देना ,मन को निर्मल कर सकता है ! और निर्मल मन वालों से परमात्मा प्रेम करता है ,मरने के बाद उन्हें इस पापी दुनिया मे वापस नहीं भेजता ! अपने पास ही रोक लेता है ! बताने जैसी ख़ास बात यह है कि परमात्मा का प्रेम हासिल करने के इन तरीक़ों मे ग्वालियर का बाशिंदा होना भी शामिल है !
अधमरे ग्वालियर वालों की साँस बारहों महीने रूक रूक कर चलती है ! यहाँ की हाड कँपाऊँ ठंड ,यहां की गर्मियों मे चलने वाली लू कब आपको परमात्मा की देहरी पर ले जाकर खड़ा कर दे कोई भरोसा नहीं ! ऐसे मे भगवान भी ग्वालियर वालो से उनके मर जाने पर सहानुभूति से पेश आते है ! वे जानते है कि ग्वालियर वाले एक बार मे ही पर्याप्त भुगत चुके ! इसके अलावा उन्हें ये भी पता है कि ग्वालियर वाले इतने बवाली हैं कि उनका दुबारा पैदा ना होना ही ठीक है !
जब तक इस शहर मे जीते रहते है आप ,खुद को कष्ट देते रहते है ! इस भीषण दुर्दशा मे भगवान के अलावा और कोई याद नहीं आता ,इस तरह आपकी आत्म शुद्धि ऑटोमैटिक होती रहती है ! और आप अपने आप परमात्मा के लाड़ले होते जाते हैं ! यदि आपको मेरी इस बात का भरोसा ना हो तो जब भी मरें ,इसकी तस्दीक़ कर लें ! स्वर्ग के गेट पर लगी लाईन मे आपको अपने आगे कोई ग्वालियर वाला ही खड़ा मिलेगा ! खैर आपका तो नहीं पता मुझे ,पर मैं अगली बार पैदा नहीं होने वाला ,इस बात पर मुझे पूरा यक़ीन है !
मुकेश नेमा