कुण्डलिया- *मुरादनगर की घटना*/ दिनेश श्रीवास्तव
*सरकारी तंत्र*
(१)
*भ्रष्टाचारी तंत्र का,एक अनूठा खेल*।
*लिंटर गिरा धड़ाम से,सामग्री बेमेल* ।।
*सामग्री बेमेल,हुआ रिश्वत का खेला*।
*मरे लोग चौबीस,उठा है आज झमेला*।।
*कहता सत्य दिनेश,तंत्र सारा सरकारी*।
*घुसखोरी में लिप्त,बना है भ्रष्टाचारी*।।
(२)
*ठेकेदारी का हुआ,जब सत्ता से मेल*।
*सामग्री निर्माण में,तब तब होता खेल*।।
*तब तब होता खेल,मिलावट भारी होती*।
*मरते हैं फिर लोग,और जनता तब रोती*।।
*करता विनय दिनेश,तंत्र सुधरे सरकारी*।
*बंद करो उत्कोच,जहाँ हो ठेकेदारी*।।
(३)
*योगी- मोदी देखिए,कैसा है यह तंत्र*।
*इनको भी कुछ दीजिये,ऐसा कोई मंत्र*।।
*ऐसा कोई मंत्र,तंत्र सुधरे सरकारी*।
*हो उत्कोचन बंद,सँभल जाएँ अधिकारी*।।
*पूछे आज दिनेश,व्यवस्था कब तक होगी*।
*सुधरेगा कब तंत्र,बताओ मुझको योगी*।।
(4)
*बोलो मोदी कुछ यहाँ, अपने मन की बात*।
*गई जान चौबीस की,कौन लगाया घात*।।
*कौन लगाया घात, मौन को तोड़ो अपने*।
*कर दो अब तो बंद,दिखाना दिन में सपने*।।
*सत्ता-भ्रष्टाचार,गाँठ को अब तो खोलो*।
*करता विनय दिनेश,आज तुम मन की बोलो*।।
*दिनेश श्रीवास्तव*
*ग़ाज़ियाबाद*