मुसलमान मुंबई के
साउथ मुंबई में ताज होटल के पीछे कोलाबा को देखते हैं। एक से बड़े एक शो-रूम,रेस्तरां, कॉफी शॉप और बड़ी कंपनियों के दफ्तर। किसी यूरोप के देश का हिस्सा लगता है कोलाबा। यूरोपीय अंदाज की इमारतों की भरमार है यहां। पारसी खूब रहते हैं।
इधर ज्यूलरी और दूसरे अनेकल शो-रूम मुसलमानों के हैं। ये इनके ऊपर लगे बोर्डों को पढ़कर समझ आ जाता है। ये जगह गेटवे ऑफ इंडिया से बिल्कुल करीब में है।
अब जुहू चलें। जुहू बीच पर हिजाब पहने मुसलमान लड़कियों का वॉलीबाल खेलना सामान्य बात है। दिल्ली से मुंबई गए किसी शख्स को ये छवियां अपनी तरफ खींचती हैं।
क्या आपने दिल्ली में कनॉट प्लेस, साउथ एक्सटेंशन, राजौरी गॉर्डन या करोल बाग में किसी मुसलमान का बड़ा सा ज्वैलरी शो-रूम देखा है? अगर किसी ने देखा हो तो बताइये। मैंने तो नहीं देखा।
मुंबई में जुहू,कोलाबा,बांद्रा से लेकर कलीना और कुर्ला के फीनिक्स मार्किट सिटी मॉल में मुसलमानों की दर्जनों दुकानें और शो-रूम देखे।
साफ समझ आ गया कि दिल्ली का मुसलमान, जिसमें यूपी और बिहारी मुसलमान शामिल हैं, बहुत अलग हैं मुंबई वालों से। दिल्ली की बाबू मानसिकता सबको नौकरी करने के लिए प्रेरित करती है। मुंबई का मिजाज बिजनेस का है। उसका असर सारे मुंबईकरों पर होता है।
टाइम्स आफ इंडिया के सीनियर एडिटर और मित्र Mohammed Wajihuddin जी बिहार से हैं। गुजरे 20-25 वर्षों से मुंबई में हैं। वे बता रहे थे कि मुंबई में खोजा, मेमन और बोहरा मुसलमान के खून में बिजनेस करना है। ये नौकरी के बजाय बिजनेस करना पसंद करते हैं। ये सब मोटा बिजनेस करते हैं।
मुंबई में ही है सिप्ला फार्मा कंपनी। ख्वाजा अब्दुल हामिद ने 1935 में अंधेरी में अपनी सिप्ला की पहली फैक्ट्री लगाई थी। उसमें 4 जुलाई,1939 को महात्मा गांधी खुद आए थे। गांधी जी ने हामिद से कहा था कि वे जीवन रक्षक दवाओं पर लगातार शोध करें। सिप्ला अब देश की चोटी की फार्मा कंपनी है। अरबों रुपये का सालाना कारोबार है। सिप्ला के मौजूदा चेयरमेन वाई.के.हामिद कॉरपोरेट इंडिया का बेहद खास नाम है।
इसी मुंबई में ही 1960 में स्थापित हो गई Wockhardt pharmaceutical भी । इसकी मैन्यूफैक्टकिंग यूनिट भारत से बाहर ब्रिटेन,आयरलैंड, फ्रांस, अमेरिका में भी है। इसके चेयरमेन हबील खुराकीवाला फिक्की के भी चेयरमेन रहे हैं।
मुंबई ने यूपी वाले अबू आजमी को भी इतने मौके दिए कि वे भी कम से कम एक हजार करोड़ रुपए के साम्राज्य के तो मालिक हैं। उनकी बड़ी सी बिल्डिंग कोलाबा में है।
मुंबई के मुसलमान गुजराती, कोंकणी और मराठी भी बोल रहे हैं। आप मरीन ड्राइव पर शाम को बोहरा मुसलमानों को टहलते हुए गुजराती में बात करते हुए देख सकते हैं। ये टोपी भी अलग- अलग तरह की पहनते हैं। बोहरा मुसलमानों की टोपी ऊंची होती है। हाजी अली दरगाह में उर्दू सुनाई देती है। इधर लगे बोर्डो में गुजराती और हिन्दी भी पढ़ी जा सकती है।
मुंबई में हिजाब पहनकर महिलाएँ लक्जरी कारें चला रही हैं। इनकी पहचान का हिस्सा है बुर्का और हिजाब। इन्हें आप जुहू के वेज रेस्तरां जैसे शिव सागर में डोसा या वड़ा पाव के साथ इंसाफ करते हुए भी देख सकते हैं।