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Channel: पत्रकारिता / जनसंचार
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अख़बार कहता हैँ

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तेरी बुराइयों* को हर *अख़बार* कहता है,

और तू मेरे *गांव* को *गँवार* कहता है   //


*ऐ शहर* मुझे तेरी *औक़ात* पता है  //

तू *चुल्लू भर पानी* को भी *वाटर पार्क* कहता है  //


*थक*  गया है हर *शख़्स* काम करते करते  //

तू इसे *अमीरी* का *बाज़ार* कहता है।


*गांव*  चलो *वक्त ही वक्त*  है सबके पास  !!

तेरी सारी *फ़ुर्सत* तेरा *इतवार* कहता है //


*मौन*  होकर *फोन* पर *रिश्ते* निभाए जा रहे हैं  //

तू इस *मशीनी दौर*  को *परिवार* कहता है //


जिनकी *सेवा* में *खपा*  देते थे जीवन सारा,

तू उन *माँ बाप*  को अब *भार* कहता है  //


*वो* मिलने आते थे तो *कलेजा* साथ लाते थे,

तू *दस्तूर*  निभाने को *रिश्तेदार* कहता है //


बड़े-बड़े *मसले* हल करती थी *पंचायतें* //

तु  अंधी *भ्रष्ट दलीलों* को *दरबार*  कहता है //


बैठ जाते थे *अपने पराये* सब *बैलगाडी* में  //

पूरा *परिवार*  भी न बैठ पाये उसे तू *कार* कहता है  //


अब *बच्चे* भी *बड़ों* का *अदब* भूल बैठे हैं //

तू इस *नये दौर*  को *संस्कार* कहता है  //


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