जीवन का आनंद
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सिकन्दर उस जल की तलाश में था, जिसे पीने से मानव अमर हो जाते हैं.!
दुनियाँ भर को जीतने के जो उसने आयोजन किए, वह अमृत की तलाश के लिए ही थे !
काफी दिनों तक देश दुनियाँ में भटकने के पश्चात आखिरकार सिकन्दर ने वह जगह पा ही ली, जहाँ उसे अमृत की प्राप्ति होती !
वह उस गुफा में प्रवेश कर गया, जहाँ अमृत का झरना था, वह आनन्दित हो गया !
जन्म-जन्म की आकांक्षा पूरी होने का क्षण आ गया, उसके सामने ही अमृत जल कल - कल करके बह रहा था, वह अंजलि में अमृत को लेकर पीने के लिए झुका ही था कि तभी एक कौआ
जो उस गुफा के भीतर बैठा था, जोर से बोला, ठहर, रुक जा, यह भूल मत करना...!’
सिकन्दर ने कौवे की तरफ देखा!
बड़ी दुर्गति की अवस्था में था वह कौआ.!
पंख झड़ गए थे, पँजे गिर गए थे, अंधा भी हो गया था, बस कंकाल मात्र ही शेष रह गया था !
सिकन्दर ने कहा, ‘तू रोकने वाला कौन...?’
कौवे ने उत्तर दिया, ‘मेरी कहानी सुन लो...मैं अमृत की तलाश में था और यह गुफा मुझे भी मिल गई थी !, मैंने यह अमृत पी लिया !
अब मैं मर नहीं सकता, पर मैं अब मरना चाहता हूँ... !
देख लो मेरी हालत...अंधा हो गया हूँ, पंख झड़ गए हैं, उड़ नहीं सकता, पैर गल गए हैं, एक बार मेरी ओर देख लो फिर उसके बाद यदि इच्छा हो तो अवश्य अमृत पी लेना!
देखो...अब मैं चिल्ला रहा हूँ...चीख रहा हूँ...कि कोई मुझे मार डाले, लेकिन मुझे मारा भी नहीं जा सकता !
अब प्रार्थना कर रहा हूँ परमात्मा से कि प्रभु मुझे मार डालो !
मेरी एक ही आकांक्षा है कि किसी तरह मर जाऊँ !
इसलिए सोच लो एक बार, फिर जो इच्छा हो वो करना.’!
कहते हैं कि सिकन्दर सोचता रहा....बड़ी देर तक.....!
आखिर उसकी उम्र भर की तलाश थी अमृत !
उसे भला ऐसे कैसे छोड़ देता !
सोचने के बाद फिर चुपचाप गुफा से बाहर वापस लौट आया, बिना अमृत पिए !
सिकन्दर समझ चुका था कि जीवन का आनन्द उस समय तक ही रहता है, जब तक हम उस आनन्द को भोगने की स्थिति में होते हैं!
इसलिए स्वास्थ्य की रक्षा कीजिये !
जितना जीवन मिला है,उस जीवन का भरपूर आनन्द लीजिये !
दुनियां में सिकन्दर कोई नहीं, वक्त सिकन्दर होता है..।
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