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अयोध्या : कुछ सुनी अनसुनी कथाएं

विवेक शुक्ला 

अयोध्या विवाद को हिन्दू-मुस्लिम मसले के रूप में ही देखा जाता रहा है। पर इस सारे प्रकरण से सिख भी जुड़े रहे हैं। इस पहलू की अभी तक अनदेखी ही हुई है या यह कहे कि यह पक्ष सही से सामने नहीं आया है।

बाबा नानक ने भी सन 1510-11 के बीच अयोध्या में राम जन्म मंदिर के दर्शन किए थे। वरिष्ठ पत्रकार प्रभाकर कुमार मिश्र ने अपनी हाल ही में प्रकाशित पुस्तक ‘एक रुका हुआ फैसला’ में दावा किया है कि ‘बाबा नानक अय़ोध्या में बाबर के आक्रमण ( सन 1526) से पहले आए थे।...  बाद में नौवे, गुरु तेग बहादुर जी और दसवे गुरु, गुरु गोबिन्द सिंह जी ने भी श्रीराम मंदिर के दर्शन किए थे।’

 161 साल पहले विवादित ढांचे के अंदर सबसे पहले घुसने वाला व्यक्ति एक निहंग सिख था। कोर्ट के फैसले में 28 नवंबर 1858 को दर्ज एक एक शिकायत का हवाला दिया गया है जिसमें कहा गया है कि ‘इस दिन एक निहंग सिख फकीर सिंह खालसा ने विवादित ढांचे के अंदर घुसकर पूजा का आयोजन किया। 20नवंबर 1858 को स्थानीय निवासी मोहम्मद सलीम ने एक एफआईआर दर्ज करवाई जिसमें कहा गया कि ‘ निहंग सिख, बाबरी ढांचे में घुस गया है, राम नाम के साथ हवन कर रहे है।’ (पेज 33)।

यानी राम मंदिर के लिए पहली एफआईआर हिन्दुओं के खिलाफ नहीं, सिखों के खिलाफ दर्ज हुई थी।

अब जरा सोचिए कि ये निहंग सिख पंजाब से कितना लंबा सफर तय करके अयोध्या तक पहुंच गया होगा।


 अब‘एक रुका हुआ फैसला’ को इसलिए पढ़ने की जरूरत है ताकि इस विवाद के कई नेपथ्य में रहे पहलुओं से रू ब रू हुआ जा सके। उदाहरण के रूप में अगर रामलला को इस केस में पक्ष कार नहीं बनाया गया होता, तो फैसला अलग हो सकता था।

 ‘ यह जानना दिलचस्प है कि रामलला को पक्षकार बनाने के पीछे तत्कालीन राजीव गांधी सरकार में गृह मंत्री बूटा  सिंह की महत्वपूर्ण भूमिका थी ।... जब राम मंदिर  आंदोलन जोर पकड़ने लगा और तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने ताला खुलवा दिया, तो बूटा सिंह ने शीला दीक्षित के जरिए विश्व हिन्दू परिषद के नेता अशोक सिंघल को संदेश भेजा कि हिन्दू पक्ष की ओर से दाखिल किसी मुकदमे में जमीन का मालिकाना हर नहीं मांगा गया है और इसलिए उनका मुकदमा हारना लाजमी है। ’


सुप्रीम कोर्ट ने अयोध्या में राम मंदिर बनाने का रास्ता साफ कर दिया है। अब सुप्रीम कोर्ट का फैसला आए हुए भी एक साल से ज्यादा हो रहा है। इस दौरान मंदिर के निर्माण को लेकर खबरें आती रही हैं। देखाजाए तो अयोध्या में मंदिर मस्जिद विवाद ख़त्म हो गया है। पांच अगस्त को अयोध्या में मंदिर का भूमिपूजन कार्यक्रम सम्पन्न हुआ। उसमें

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी शामिल हुए थे।

 सेंट्रल बिल्डिंग रिसर्च इंस्टीट्यूट (सीबीआरआई) रुड़की, आईआईटी मद्रास और लार्सन एंड टूब्रो के इंजीनियर मिट्टी की जांच करके मंदिर निर्माण का काम शुरू कर चुके हैं।

इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद मस्जिद बनाने के काम में भी तेज़ी आई है।सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद अयोध्या के पास धन्नीपुर गांव में ही यूपी सरकार ने सुन्नी वक़्फ़ बोर्ड को मस्जिद बनाने के लिए पांच एकड़ ज़मीन दी है। मतलब जिस विवाद ने देश को धार्मिक आधार  पर बांट दिया था अब वह थम चुका है।


 निश्चित रूप से इस विवाद के कारण देश को बहुत नुकसान हुआ। अब देश फिर कभी  इतने गंभीर विवाद से दो-चार ना हो। अयोध्या मामले का एक बेहद शानदार पक्ष यह रहाकि सुप्रीम कोर्ट में मुस्लिम पक्ष की तरफ से पैरवी मौजूदा पाकिस्तान के पंजाब  में पैदा हुए और इलाहाबाद में पढ़े राजीव धवन कर रहे थे। क्या यह सामान्य बात है? राजीव धवन ने इस केस को लड़ने के लिए मुस्लिम पक्ष से एक भी पैसा नहीं लिया था।

 इस तरह के अनेक रोचक  किस्सों और लाजवाब गद्य

 ने ‘एक रुका हुआ फैसला’ को सच में पठनीय बना दिया है। Prabhakar Mishra ने सुप्रीम कोर्ट में जब अय़ोध्या मामले की सुनवाई चल रही तब उसे रोज कवर किया था।‘   वे कभी भी किसी पक्ष की तरफ झुकते नजर नहीं आए ।


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