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रज़िया के लिए सज्जाद जहीर का एक प्रेमपत्र

सज्जाद जहीर का एक उल्फत पैगाम  रज़िया के नाम ''


सज्जाद जहीर एक ऐसे प्रगतिशील शायर जो अदब और अदीब की दुनिया का नायाब हीरा - उनके लिखे पत्र को पढ़ रहा था सोचा आज आपको उनके लिखे पत्र को साझा करु - कबीर




सज्जाद जहीर : प्रगतिशील लेखक संघ के मुंशी प्रेमचन्द जी के साथ मूल संस्थापको में से एक है . पाकिस्तान कम्युनिस्ट पार्टी के भूतपूर्व मंत्री , जिन्हें 1947 के बाद भी जेल की चहारदीवारी के भीतर साँसे लेनी पड़ी :


सेन्ट्रल जेल 16 नवम्बर 1947


मेरी प्राण प्यारी ,


इस हफ्ते मुझे तुम्हारे तीन ख़त मिले | एक में परेशानी और गुस्सा , दूसरा बहुत मीठा व प्यारा और तीसरा रंज से भरा | एक उत्तर लिखने बैठता हूँ , तो साकार तुम मेरी आँखों के आमने सामने घुमने लगती हो | जैसी तुम असल में हो , वैसी ही यहाँ हो ; यानी कभी -- कभी बड़े गुस्से में मुझसे खफा और मेरी तरफ से मन में तरह -- तरह के शकूक और तोहमत और कभी , बस क्या कहूँ कैसी नरम , अच्छी , मीठी रसीली ! तुम्हारी ही दिल लुभाने वाली बाते और मेरी नजरो में बस रही है ! लेकिन सिर्फ तुम ऐसी होती , तो मुझे कितनी मायूसी होती ! तुम्हारी सूरत जो मेरे दिल में बसी है वे सब विशेषताए रखती है , जो ब्रम्हा , विष्णु व शिव की विशेषताए है | यानी निर्माण , पालन , और विनाश | मेरा मन तुमको तरह - तरह के रूपों में देखता है और हर तरह से तुम्हारी पूजा करना चाहता है और करता है | बेगम जान ! आपसे सिर्फ यह इल्तिजा है कि इन देवताओं के बुलंद मर्तवे का इस्तेमाल करके -- कही मेरे साथ वैसा न करना , जैसा शिवजी ने कामदेव के साथ किया था . जांति हो , क्या हुआ था ? शिवजी किसी बड़ी तपस्या में बरसों से लगे थे | कामदेव ! यानी इश्क के शरीर देवता ने इनके ताप को तोड़ना चाहा | बाहर की मस्त हवाए खुशबुओ और हुस्न तमाम अश्को के साथ वह उनके सामने आकर अपने करिश्मे दिखाने लगा | आखिर शिवजी ने गुस्से में आकर अपनी तीसरी आँखे खोल दी और ये बेचारे कामदेव जलकर राख हो गये | लेकिन यह न समझना कि इसके बाद कामदेव हमेशा के लिए खत्म हो गये |उनका जिस्म बेशक जल गया , पर अब उन्होंने बेजिस्म होकर इंसानों के दिल में जगह कर ली | तो जानेमन ! जरा होशियार ! अब आप अपनी पालन व निर्माण वाली विशेषताए ज्यादा इस्तेमाल किया कीजिये , नही तो मेरी मुहब्बत आपके दिल को चैन न लेने देगी ! तुम कहती होगी कि इनको हो क्या गया है , जो ऐसी बहकी बहकी बाते कर रहे है ? लेकिन सचमुच , आज तो जैसे कुछ हो ही गया है ! यह साल का अच्छा महीना , गुलाबी जाड़े ठंठी राते , खुशगवार दिन नीला आसमान और फिर तन्हाई ! यह जुदाई हसरतो का खून है ! तुम इतनी दूर कि ख्याल भी वह तक न पहुचे ! और दिल है कि बस हर पल तुमको -- तुमको और बार -- बार तुमको चाहता है ; पुकारता है ढूढता है , लेकिन तुम्हारी आवाज तक नही सुन पाटा ! इस भयानक सन्नाटे में गश्त लगाने वाले की आवाज ही बार -- बार सुनाई देती है और मायूसी और गहरी हो जाती है |


प्यारी , असल में बात यह है कि यह अजीब जगह है ! इंसान पर अजीब असरदार तरीके से असर डालती है | सहज -- सहज गौर व फ़िक्र की ताकत जैसे टूटने -- सी होने लगती है | हम हँसते -- बोलते , लिखते पढ़ते है , लेकिन सतही तौर पर | जिन्दा रहने के लिए ; जिन्दगी में उम्मीद व उमंग को कायम रखने के लिए , आपनी रूह की सारी ताकत इस्तेमाल करनी पड़ती है | उफ़ , यह मनहूस मरघट ! हाँ , यहाँ से रिहाई कभी न कभी जरुर होगी | मगर जख्म कभी न भरेगे , जिन्होंने दिमाग को मफलुज , दिल को साकत और रूह को मुर्दा कर दिया है | 

आजकल यहाँ सियासी कैदियों में बराबर छूटने के चर्चे हो रहे है | इसीलिए लिखने पढने का कोई संजीदा काम मुमकिन नही है | बस , सिर्फ हल्के हल्के नाबिल पढता हूँ | अजीब जिन्दगी है ! तुमसे कब मुलाक़ात होगी या जाड़े भी यू ही गुजर जायेगे ? ..........


तुम्हारी आँखों व लबो , सबसे प्यार ! 

--------------- तुम्हारा चाहने वाला 

--------- सज्जाद जहीर


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