Quantcast
Channel: पत्रकारिता / जनसंचार
Viewing all articles
Browse latest Browse all 3437

गांधीजी और दक्षिण अफ्रीका / राकेश थपलियाल

$
0
0

 राकेश थपलियाल

वरिष्ठ पत्रकार

sports.rakesh@gmail.com


तीस जनवरी को महात्मा गांधी की पुण्यतिथि पर दुनियाभर में उन्हें श्रद्धांजलि दी जाती है. इनमें ज्यादातर भारतीय मूल के लोग ही होते हैं. लेकिन एक देश ऐसा भी है, जहां उन्हें भारतीय मूल के लोगों से ज्यादा उसी देश के मूल वासी सिर्फ श्रद्धांजलि ही नहीं देते, बल्कि उनसे माफी भी मांगते हैं. इस देश का नाम है दक्षिण अफ्रीका. यहां बैरिस्टर मोहन दास करमचंद गांधी ने वकालत करने के साथ ब्रिटिश हुकूमत के अत्याचारों को चुपचाप सहने के बजाय उनके खिलाफ लोगों को एकजुट होकर आंदोलन करने का पहला पाठ पढ़ाया था.

दक्षिण अफ्रीका के ईस्ट लंदन शहर में यह बात मुझे कुछ अजीब लगी थी, जब लगभग सत्तर बरस के एक व्यक्ति ने मुझसे कहा था, ‘जब गांधी जी की मृत्यु हुई, तो हम सार्वजनिक रूप से शोक व्यक्त करने के लिए एकत्रित नहीं हो सके थे. उस समय दक्षिण अफ्रीका में ब्रिटिश राज था और हम डर गये थे कि अगर हम घरों से बाहर निकल कर शोक सभा करेंगे, तो हमें मारा-पीटा जायेगा और जेल में डाल दिया जायेगा. इस बात का मलाल हमें आज भी है कि जिस महान व्यक्ति ने हमारे लिए इतना कुछ किया, उसकी याद में हम मिलकर आंसू भी नहीं बहा सके. हमें उस दिन हिम्मत दिखानी चाहिए थी. इस कायरता के लिए हम खुद को कभी माफ नहीं कर पायेंगे.’

दक्षिण अफ्रीकी लोग गांधी का इस बात के लिए बड़ा अहसान मानते हैं कि उन्होंने सिखाया कि गलत बातों का विरोध करना चाहिए. वहां के अनेक अश्वेत नागरिक गांधी के योगदान को याद करते हुए कहते हैं, ‘हमें अंग्रेजों के आदेशों का विरोध करना नहीं आता था. हमें तो जो वे कहते थे, हम चुपचाप जुल्म सहते हुए भी करते थे. वे महात्मा गांधी ही थे, जिन्होंने हमें सिखाया कि अंग्रेजों का जो आदेश आपके हित का न हो, उसका विरोध करो, लेकिन यह विरोध पूरी तरह से अहिंसक होना चाहिए.

भले ही अंग्रेज कितना भी अत्याचार करें.’ मैंने दक्षिण अफ्रीका में बिताये कई सप्ताह के दौरान केप टाउन, डरबन, पोर्ट एलिजाबेथ, ईस्ट लंदन आदि तमाम शहरों में लोगों से बात करने पर यही पाया कि गांधी वे पहले व्यक्ति थे, जिन्होंने दक्षिण अफ्रीका के अश्वेतों को अंग्रेजों के खिलाफ पहला कदम रखना सिखाया था. नेल्सन मंडेला दक्षिण अफ्रीका की आजादी के लिए कई बरस कैद में रहे, लेकिन दक्षिण अफ्रीकी गांधी को उनसे भी बड़ा दर्जा देते हैं, क्योंकि गांधी के पदचिन्हों पर चलते हुए ही मंडेला ने स्वतंत्रता आंदोलन को धार दी थी.

डरबन से लगभग एक सौ किलोमीटर दूर स्थित उपनगर पीटरमारित्जबर्ग के रेलवे स्टेशन पर बैरिस्टर मोहन दास करमचंद गांधी ने महात्मा बनने की दिशा में पहला कदम उठाया था. इसी ‘गांधी स्टेशन’ के प्लेटफॉर्म पर 1893 में गांधी जी को रेलगाड़ी के प्रथम श्रेणी के डिब्बे से टिकट होने के बावजूद इसलिए धक्का मारकर बाहर फेंका गया था क्योंकि वे अश्वेत थे. गांधी को जिस प्लेटफॉर्म पर गिराया गया था, वह रेलवे पुल पार करने के बाद है, लेकिन गांधी के चाहनेवालों को वहां तक जाने में कष्ट न हो, इसलिए प्लेटफार्म संख्या एक पर ही सारी यादगार चीजों को रखा गया है.

उस घटना के बाद गांधी ने तय किया था कि अब वे दक्षिण अफ्रीका में ही रहकर अत्याचारी ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ आंदोलन करेंगे और दक्षिण अफ्रीकी अश्वेतों को अंग्रेजों की दमनकारी नीतियों के खिलाफ जागृत करेंगे. यही वजह है कि स्टेशन के प्रतीक्षा कक्ष में गांधी की तस्वीर के नीचे लगी पीतल की पट्टी पर लिखा है- ‘भारत ने हमें बैरिस्टर मोहन दास करमचंद गांधी दिया था, लेकिन हमने भारत को महात्मा गांधी दिया.’

दक्षिण अफ्रीका के स्वतंत्रता आंदोलन में गांधी के योगदान के बारे में उस देश में आठ-दस साल की उम्र के बच्चों से लेकर सत्तर साल के बुजुर्ग तक उनकी प्रशंसा करते मिले, चाहे वे अफ्रीकी मूल का अश्वेत रहे हों या ब्रिटिश मूल के गोरे अंग्रेज. लगभग पचास वर्ष के एक दक्षिण अफ्रीकी ने कहा, ‘गांधी जी ने हमें आजादी की राह दिखायी. हमारे लिए संघर्ष किया, उन्हें हम कैसे भूल सकते हैं! हम उन्हें बहुत प्यार करते हैं. हमारे बच्चे भी उनके बारे में बहुत कुछ जानते हैं.’

उस व्यक्ति ने यह भी बताया कि स्कूलों में महात्मा गांधी के बारे में पढ़ाया जाता है और हम भी अपने बच्चों को उनके बारे में बताते रहते हैं. डरबन शहर में सबसे ज्यादा भारतीय मूल के लोग हैं. उनकी भावनाओं को ध्यान में रखते हुए 2009 में यहां एक सड़क का नाम ‘महात्मा गांधी रोड’ रखा गया था, लेकिन इससे वहां के भारतीय काफी नाराज हैं क्योंकि यह सड़क पहले ‘पॉइंट रोड’ के नाम से जानी जाती थी और वहां अवैध हथियारों की खरीद, ड्रग्स और वेश्यावृति का धंधा खुलेआम चलता है.

मैने भी इस सड़क को वैसा ही पाया, जैसा बताया गया था. यह देखकर मुझे तीन दशक पुराने दिन याद आ गये, जब शराब की दुकानों के बाहर रखे कागज के लिफाफों पर गांधी की उक्ति होती थी- ‘शराब शरीर और आत्मा दोनों का नाश करती है.’ मैं डरबन में यह देखकर हैरान था कि जो महान व्यक्ति जिंदगी भर नशे के खिलाफ लड़ता रहा, उसके नाम की सड़क नशे और दूसरी बुराइयों का बड़ा अड्डा है. पर इसमें दो राय नहीं कि दक्षिण अफ्रीका के लोग गांधी के योगदान को कभी भुला नहीं पायेंगे. यह गांधी दर्शन की खूबी ही है कि हत्या के 73 साल बाद भी बच्चे, बूढ़े और जवान इस साबरमती के संत को दिल से सलाम करते हैं.

Posted By : Sameer Oraon

Published Date

Viewing all articles
Browse latest Browse all 3437

Trending Articles



<script src="https://jsc.adskeeper.com/r/s/rssing.com.1596347.js" async> </script>