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उस्ताद बिस्मिल्लाह खाँ

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 उस्ताद बिस्मिल्लाह खाँ का नाम भारत में शहनाई का एक पर्यायावाची है, इन्हें भारत में अब तक जन्मे सबसे बेहतरीन शास्त्रीय संगीतकारों में से एक माना जाता है। इस महान संगीतकार का जन्म बिहार के डुमराँव में 21 मार्च 1916 को हुआ था। बिस्मिल्लाह खाँ ने बिहार के डुमराँव रियासत में दरबारी संगीतकारों का एक वंश चलाने के लिए अपनी वंशावली की नींव रखी। बिस्मिल्ला खाँ को उनके चाचा अली बख्श ‘विलायतू’ से शिक्षा मिली, जो अपने आप में एक प्रतिष्ठित शहनाई वादक थे।


भारतीय शास्त्रीय संगीत में शहनाई को बहुत ही महत्व दिया गया और इस बदलाव का श्रेय अकेले बिस्मिल्लाह खाँ को ही जाता है। उन्होंने 15 अगस्त 1947 को दिल्ली में लाल किले पर शहनाई वादन किया, जो इनके सबसे ऐतिहासिक प्रदर्शनों में से एक है। उन्होंने 26 जनवरी 1950 को भारतीय गणतंत्र दिवस के अवसर पर भी अपनी शहनाई का प्रदर्शन किया।


अपने प्रदर्शन के साथ उन्होंने पूरे विश्व के दर्शकों का मन मोह लिया। वह अल्लाह और सरस्वती दोनों के उपासक थे। दो प्रमुख स्थानों वाराणसी शहर और गंगा नदी ने उनके जीवन पर काफी गहरा प्रभाव डाला। अपने जीवन में उन्होंने कई पुरस्कार और सम्मान प्राप्त किये थे। इनको 1956 में संगीत नाटक आकादमी अवार्ड, 1961 मे पद्म श्री, 1968 में पद्म भूषण और 1980 में पद्म विभूषण से सम्मानित किया गया था।


भारतीय शास्त्रीय संगीत के इस गुरू को 2001 में भारत के सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न से सम्मानित किया गया। उस्ताद बिस्मिल्लाह खाँ ने कन्नड़ फिल्म ‘सन्नादी अपन्ना’ में डॉ. राजकुमार के चरित्र में अपन्ना के लिए शहनाई वादन किया। इसके अलावा, इन्होंने सत्यजीत रे की फिल्म ‘जलसागर’ और हिन्दी फिल्म ‘गूँज उठी शहनाई’ में अपनी शहनाई की भूमिका निभाई। 21 अगस्त 2006 को उनका निधन हो गया। केन्द्र सरकार ने उनके निधन पर एक दिन का राष्ट्रीय शोक घोषित किया था।


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