ओपी नैयर का पूरा नाम ओंकार प्रसाद नैयर है। नैयर के बारे में कहा जाता है, वह संगीत और जिंदगी दोनों को अपनी शर्तों पर जीते थे। अक्खड़पन और सादगी ओपी नैयर की पहचान थी
ओपी नैयर के करियर की शुरुआत 1952 में हुई। नैयर को उनके पहले गाने के लिए 12 रुपए मिले। नैयर ने इसके बाद एक-एक कर हिट गाने देना शुरू किया। उनके गानों को लोग इस कदर पसंद करने लगे कि वह फिल्म में म्यूजिक देने के लिए 1 लाख रुपए तक चार्ज करने लगे।
वहीं इस दौर में वह सबसे ज्यादा पैसे लेने वाले संगीतकार बन गए थे। इस बीच ओपी नैयर और गुरु दत्त की दोस्ती होती है। भारतीय फिल्म संगीत के चाहने वालों के बीच ओपी नैय्यर ऐसे म्यूज़िक डायरेक्टर के तौर पर याद किए जाते हैं, जिन्हें लोकप्रिय संगीत रचने में महारत हासिल थी। ओपी नैय्यर ने 50 और 60 के दशक में इतने कामयाब गीत कंपोज़ किए है कि उन्हें किसी लिस्ट में समेटना मुमकिन नहीं है…उनके गाने उड़े जब-जब ज़ु्ल्फें तेरी, ये देश है वीर जवानों का, लेके पहला पहला प्यार, बाबूजी धीरे चलना आज भी लोगों के दिलों मे बसते हैं।
ओपी नैयर का विवादों से भी खासा नाता रहा है। लता मंगेशकर के साथ उनके विवाद के किस्से काफी मशहूर हैं। दरअसल ओपी नैयर ने तय किया की वह कभी भी लता मंगेशकर के साथ काम नहीं करेंगे। ओपी नैयर ने हमेशा कहा कि लता जी की आवाज में पाकीजगी थी। उन्हें शोखी की जरूरत थी, जो आशा भोसले या शमशाद बेगम की आवाज में ज्यादा थी। ओपी नैयर ने इस दौर में बड़े दुश्मन बनाए। मोहम्मद रफी से भी उनकी अनबन हुई। दरअसल नैयर हर काम समय पर करना पसंद करते थे, एक दिन नैय्यर को एक गाना रफी के साथ रिकॉर्ड करना था।
नैयर रफी साहब का इंतजार कर रहे होते हैं लेकिन रफी साहब समय से एक घंटा लेट पहुंचते हैं। नैयर इस बात को लेकर रफी से काफी झगड़ा करते हैं। दोनों की यह लड़ाई लगभग तीन साल तक चलती है। एक दिन रफी साहब अचानक नैयर के घर पहुंच जाते हैं। नैयर रफी को उनके घर पर देखकर भावुक होकर गले लगा लेते हैं और दोनों फिर से साथ हो जाते हैं। 28 जनवरी 2007 को ओपी नैयर दुनिया से रुखसत हो गए, लेकिन बीच के इन करीब 81 साल में उन्होंने किया, उसे संगीत जगत हमेशा याद रखेगा।
Source -Amarujala
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