अखबारों की भाषा / शिवनारायण
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माननीयों की करतूत से बिहार शर्मसार होगा, पर हम तो अखबारों की भाषा से शर्मसार हैं !
जब हम छात्र थे,तो शिक्षक अच्छी भाषा सीखने के लिए अखबार पढ़ने की सलाह देते थे। क्या यही सलाह आज के छात्रों को दिया जा सकता है? अब देखिए,आज के दैनिक भास्कर के पहले पेज के मुख्य हेडिंग में ही व्याकरणिक दोष किस कदर मुंह चिढ़ा रहा है!
'माननीयों! आपकी करतूत से बिहार शर्मसार'। इस हेडिंग का दोष देखें। हिंदी व्याकरण में संबोधन के तीन नियम बताए गए हैं--(१)आकारांत एकारांत में बदल जाता है।जैसे, माता--माते!,पिता--पिते! आदि। (२)ईकारांत इकारांत में बदल जाता है।जैसे,सखी--हे सखि! आदि। (३)ओं या यों से अनुस्वार हट जाता है।जैसे,भाइयो एवं बहनो,मुझे वोट दीजिए! आदि।
आप समझ सकते हैं कि इन नियमों के आलोक में यहां 'माननीयो'पर अनुस्वार नहीं होगा। परंतु व्याकरण के नियमों से हिंदी अखबारों को क्या लेना ?
हिंदी अखबारों में भाषाई दोष आम बात हो गई है।एक समय था जब भाषा की साधना पत्रकारिता का मूल हुआ करती थी और इसी कारण पत्रकारिता और साहित्यकारिता (हिंदी सेवा) में अंतर नहीं किया जाता था।पर अब ?
भाषा की साधना का पत्रकारिता में आज कोई अर्थ नहीं रह गया है।इस कारण संपादक का मान भी नहीं रहा। हिंदी के अखबार भी अपराध, राजनीति आदि तक ही संकुचित हो कर रह गये। पहले ८ पेज के 'आर्यावर्त'को पढ़ने में घंटे भर का समय लग जाता था,जबकि आज २८-२८ पेज के अखबार २० मिनट में निबट जाते हैं।
आज की पत्रकारिता में आया यह अंतर उसका ह्रास है या विकास,इसपर अलग अलग राय हो सकती है, किंतु यह तो मानना ही पड़ेगा कि आज भी तत्त्वत: या अंतत: भाषा की साधना ही अच्छी पत्रकारिता का मूल्य है ! अखबारों द्वारा इस ओर भी ध्यान दिया जाना चाहिए!👌✌️🙏
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