इतिहास को समेटता 'सरस्वती'का नया अंक
अपनी ऐतिहासिकता को पुनर्जागृत और नये सिरे से पारिभाषित करते हुए 'सरस्वती'का नया अंक जनवरी-मार्च 2021(युग प्रवर्तक सम्पादक:महावीर प्रसाद द्विवेदीपुनर्नजागरण ,प्रधान संपादक:देवेन्द्र शुक्ल,प्रबन्ध निदेशक:सुप्रतीक घोष) आज ही मिला।इस अंक ने उस विश्वास को पुख्ता किया है कि अब हम उस बारीक तार से जरूर जुड़े रहेंगे जो कल हमारा अतीत था-गौरव और दर्प से लबरेज।जिस पर हमें हर काल में नाज था,रहेगा।
यह अंक उन रामानन्द चट्टोपाध्याय(चटर्जी) की पवित्र स्मृति को समर्पित है जो भारतीय पत्रकारिता की उस परम्परा के अग्रदूत थे जो उज्ज्वल थी,अप्रतिम थी,अद्वितीय थी,असाधारण थी।जिसने हिंदी पत्रकारिता की अस्मिता को पहचान दी।यही पहचान आज उसकीं पूंजी है।
रामानन्द चटर्जी इतिहास का वह उजला कालखण्ड हैं जो आज गायब होती सम्पादक की सत्ता को सम्मान सहित सुरक्षित रखे रहे।तब हिंदी पत्रकारिता में न साख का संकट था,न विश्वास का।'प्रवासी'(1901),'मॉडर्न रिव्यू'(1917) और 'विशाल भारत' (1928)के मालिक रामानन्द चटर्जी सम्पादक की स्वतंत्रता,उसके विवेक के प्रबल पक्षधर थे।वे अपने संपादक बनारसीदास चतुर्वेदी की बेहद इज्जत करते थे।यही वजह थी कि हिन्दू महासभा के सूरत अधिवेशन की कोई खबर 'विशाल भारत'में नहीं छपी तो मालिक ने विनम्रतापूर्वक संपादक से पूछा भर।संपादक ने साफ साफ कहा,'वह आपकी विचारधारा हो सकती है,प्रतिबद्धता हो सकती है पर मेरी नजर में खबर नहीं।'यह भी कि जब उनके अपनों ने रामानन्द जी से कहा,'आपके अखबार में आपकी खबर नहीं?'तब उस बड़े आदमी ने दो टूक लहजे में कहा,'संपादक के विवेक पर मुझे कभी कोई संदेह न था,न है।'
यह था हमारा इतिहास।इसी इतिहास पुरुष पर केंद्रित है यह अंक।इस इतिहास पुरुष पर जिसे गांधी 'ऋषि'कहते थे शंकरी प्रसाद,कृपाशंकर चौवे, रामबहादुर राय, जयश्री पुरवार,आरती स्मित के सारगर्भित लेख हैं।
पुण्य स्मरण,कविताएं,कहानी,ललित निबन्ध,गजल,भाषा चिंतन,अनूदित कविताएं,इतिहास व पुरातत्व व डॉ उषारानी राव की पुस्तक चर्चा सहित इस अंक में वह सामग्री है जो आज के दौर में बहुत जरूरी है।
ऐसा अंक जो फिर जाग्रत करता है इतिहास के एक जरूरी नायक की यश गाथा।