मुन्नाभाई से लेकर पीके तक मैंने और हिरानी ने विधु विनोद चोपड़ा को हर बार तीन से चार बार नैरेशन दी
अभिजात जोशी।।
विधु विनोद चोपड़ा का विजन अच्छी फिल्में बनाने का रहा है। खासकर ऐसी फिल्में जो लोगों का मनोरंजन तो करे ही, उन्हें अच्छे विचार भी प्रदान करे। पूरा परिवार देख सके उसे। साथ ही फिल्म लिखते वक्त जमीर न बेचना पड़े। साथ ही लेखनी में एक नागरिक की हैसियत से भी सोच रिफ्लेक्ट होनी चाहिए। उन्होंने मुझे बर्गमैन के तीन बड़ी कमाल की बातें शेयर की थीं। पहला यह कि लेखक का प्राथमिक काम मनोरंजन मुहैया करवाना है। आप कितनी भी उम्दा बातें करें, मगर बहुत जरूरी है कि वह मनोरंजक होनी चाहिए।
दूसरा यह कि एंटरटेन करने के लिए आप को अपना जमीर न बेचना पड़े। मतलब यह कि आप को बतौर लेखक और नागरिक जो बात बोलनी है, वही आप बोलें। यह नहीं कि दर्शकों को जो बात पसंद है, उसी तरह का मैनिपुलेशन किया जाए।
तीसरी चीज यह कि अपनी हर फिल्म इस कदर लिखें कि वह आप की आखिरी फिल्म हो। उन्होंने समझाया था कि लोग मुंबई इसलिए आते हैं कि उन्हें पैसे कमाने हैं या फिर उनके पास फलाने स्टार की डेट्स हैं। वैसे लोगों की नेक्स्ट पिक्चर कभी बनती नहीं, क्योंकि वो खो जाते हैं। लिहाजा उन्होंने कहा था कि हर पिक्चर कुछ यूं लिखो कि गर मर भी जाएं तो कोई गम न हो। इन सबसे झलकता है कि विधु विनोद चोपड़ा बहुत बड़े विजनरी हैं।
उनके साथ कई रोचक मुलाकातें हैं। वह सिलसिला 26 साल पहले शुरू हुआ था। दो मुलाकातें एकदम से याद आती हैं, जिनसे उनका टेंपरामेंट जाहिर होता है। मैं जब पहले पहल मुंबई आया था, तब तक विधु विनोद चोपड़ा '1942: ए लव स्टोरी’, 'परिंदा’ आदि बना चुके थे। उनका गुस्सा बड़ा मशहूर था इंडस्ट्री में। मैं बच्चा सा रायटर था। विधु विनोद चोपड़ा बड़े डायरेक्टर। मैं उनके घर की तीसरी मंजिल पर लिखता था और वहीं रहता भी था। वो वहां पर आते थे 11 और साढ़े 11 बजे के बाद। वो नोटिस करते थे कि मुझसे गीजर ऑन रह जाता था। उस पर वो कहते कि भइया ये गीजर बंद कर देना, कहीं फट जाएगा। उन्होंने अच्छी तरह से समझाया। मैंने तय किया कि इसका ध्यान रखना है। पर दूसरे दिन भी गीजर ऑन छूटा रह गया। उस दिन जैसे ही वो हाथ धोने आए कि मुझे याद आया कि गीजर तो ऑफ किया ही नहीं। मैं दौड़ा दौड़ा स्विच ऑफ करने गया। पर उन्होंने तब भी नहीं किया। तीसरे दिन भी हालांकि गीजर ऑफ नहीं कर पाया। उस दिन उन्होंने खुद बंद कर दिया। चौथे दिन मैंने ध्यान रखते हुए गीजर बंद कर दिया। पर उस दिन उन्होंने मुझे कहा कि गीजर बंद कर दिया कर। मैं अवाक। मैंने उन्हें कहा भी कि मैंने बंद कर दिया था। इस पर उन्होंने कहा, ’मैं जानबूझकर यह कहा, क्योंकि तुम यह कर सकते हो। वरना पहले तो मुझे यही लगता था कि तुम कर ही नहीं सकते। तो उस दौरान नहीं टोकता था। पर अब कह रहा हूं, क्योंकि ख्याल रख सकते हो इसका।’ इस पर मुझे हंसी भी आई। महसूस हुआ कि उनका क्या खूब नजरिया है जिंदगी को लेकर।
फिर उसके 14 साल बाद जब मैं उनकी 'ब्रोकन हॉर्सेज’ लिख रहा था तो एल्बुकर्की में मेरा प्लेन लैंड किया। एक डेजर्ट है बड़ा। वहां से निकल के मैं सांतापे पहुंचा। रात के एक बजे थे। उनके एसोसिएट ने मुझे कमरा दिखाया होटल में। वहां देखा तीन सिंगल मॉल्ट थी पड़ी। एसोसिएट ने कहा कि एक 21 साल पुरानी है तो दूसरी 30 साल पुरानी स्कॉच। मैंने पूछा भी कि ये तीनों किसलिए हैं। उनके एसोसिएटों का जवाब था कि जिस लेवेल का ये सीन लिखेगा, उस लेवेल की दारू इसे दो। यह तरीका है उनका जीने का।
वो कोई दिन ऐसा खाली नहीं देते। कुछ न कुछ वो वहां से लेते ही हैं। यह एक अनूठी बात लगती है उनकी मुझे। 20 साल उनके साथ का सफर बड़ा अच्छा रहा। सब मस्ती भरे दिन रहे। साथ ही सदा एक्सिलेंस की खोज भरे दिन रहे। अच्छा सिनेमा बनाओ। दर्शकों के अच्छे रिएक्शन लेते रहो। इन सबसे बेटर रायटर बनते रहोगे।
विधु विनोद चोपड़ा अपनी स्टडी में स्टोरी सुनना पसंद करते हैं। रूम में सही किस्म की लाइटिंग होनी चाहिए। एसी सही होना चाहिए। तकरीबन 45 सालों से वो फिल्म मेकिंग में हैं वो। तो वो पूरा 45 सालों के तजुर्बे से सुनते हैं। मैं और हिरानी उन्हें दो से तीन बार कहानी सुनाते हैं। फिर तय होता है। मेरे ख्याल से मुन्नाभाई से पीके तक विधु को तीन से चार बार नैरेशन की थी। गानों में उनका खास योगदान रहता है। फिल्म एडिट पर जाती है तो उस वक्त भी वो ऑब्जर्व करते हैं। तो यह योगदान होता है उनका।