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कवि प्रदीप

 

राष्ट्रकवि 'प्रदीप 'जिनकी लेखनी से अंग्रेज़ भी भयभीत थे..

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पंडित जवाहर लाल नेहरू जी के साथ कवि प्रदीप



देश को अंग्रेज़ो की चुंगल से आज़ाद करने में जितनी भूमिका देशभक्तो और क्रांतिकारियों की रही उतनी ही बड़ी भूमिका लोगो में देश भक्ति का जज़्बा जगाने में राष्ट्रभक्त कवियों की भी रही वर्ष 1940 में भारतीय स्वतंत्रता संग्राम अपने चरम पर था देश को स्वतंत्र कराने के लिय छिड़ी मुहिम में 'कवि प्रदीप 'भी शामिल हो गए और इसके लिये उन्होंने अपनी कविताओं और रचनाओं का बखूबी का सहारा लिया अपनी कविताओं के माध्यम से प्रदीप देशवासियों में जागृति और जोश पैदा किया करते थे उन्होंने फ़िल्म ‘बंधन’ (1940) के लिए भी गीत लिखा फ़िल्म 'बंधन'में उनके लिखे सभी गीत लोकप्रिय हुए, लेकिन ‘चल चल रे नौजवान...' के बोल वाले गीत ने आजादी के मतवालों में एक नया जोश भरने का काम किया उस समय स्वतंत्रता आन्दोलन अपनी चरम सीमा पर था और हर प्रभात फेरी में इस देश भक्ति के गीत को गाया जाता था। इस गीत ने भारतीय जनमानस पर जादू-सा प्रभाव डाला था। पंडित जवाहर लाल जी ने उनसे मिलकर खुद बताया था की उनकी बेटी इंदिरा प्रभात फेरियों में 'चल-चल रे नौजवान'गाकर अपनी 'वानर सेना'की परेड कराती थीं यह राष्ट्रीय गीत बन गया था सिंध और पंजाब की विधान सभा ने इस गीत को राष्ट्रीय गीत की मान्यता तक दे दी ये गीत विधानसभा में गाया जाने लगा। बाद में अभिनेता बने सोशलिजम विचारधारा के बलराज साहनी उस समय लंदन में थे उन्होने किसी तरह अपने प्रभाव का इस्तेमाल कर इस गीत ‘चल चल रे नौजवान..'को लंदन बी.बी.सी. से प्रसारित कर दिया। फिर क्या भारत में ब्रिटिश हकूमत में तहलका मचना स्वाभिक था प्रदीप ब्रिटिश हकूमत के निशाने पर आ गए


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किस्मत (1943) ने कलकत्ता के एक ही सिनेमा घर रॉक्सी  में चार वर्ष तक चलने का रिकार्ड बनाया


चालीस के दशक में राष्ट्रपिता महात्मा गांधी का अंग्रेज़ सरकार के विरुद्ध ‘भारत छोड़ो आंदोलन’ जब अपने चरम पर था अपने धारदार गीतों को प्रदीप ने अंग्रेज़ो की ग़ुलामी के ख़िलाफ़ आवाज़ बुलंद करने के हथियार के रूप मे इस्तेमाल किया और उनके गीतों ने अंग्रेज़ों के विरुद्ध भारतीयों के संघर्ष को एक नयी दिशा दी ........ 1943 में प्रदर्शित फ़िल्म ‘किस्मत’ में प्रदीप के लिखे गीत ‘आज हिमालय की चोटी से फिर हमने ललकारा है, दूर हटो ए दुनिया वालों हिंदुस्तान हमारा है’ अंग्रेजी हकूमत पर सीधा प्रहार था यह गीत इस कदर लोकप्रिय हुआ कि सिनेमा हॉल में दर्शक इसे बार-बार सुनने की ख्वाहिश करते थे और फ़िल्म की समाप्ति पर दर्शकों की मांग पर इस गीत को सिनेमा हॉल में दुबारा सुनाया जाने लगा। ब्रिटिश हकूमत अलर्ट हो गई उन्होंने फिल्म 'किस्मत 'के इस गीत पर प्रतिबंध लगा दिया और फिल्म के निर्माता बॉबे टाकीज़ के ज्ञान मुखर्जी को अपनी फिल्म सेंसर करने वाली सम्बंधित ज्यूरी के सामने पेश हो कर सफाई देने को कहा और कवि प्रदीप के क्रांतिकारी विचार को देखकर अंग्रेज़ी सरकार द्वारा उनकी गिरफ्तारी का वारंट निकाल दिया अब गिरफ्तारी से बचने के लिये कवि प्रदीप को कुछ दिनों के लिए भूमिगत रहना पड़ा वे कई महीनो तक वेश बदल कर अपने मित्रो और जानने वालो के पास जगह बदल बदल कर रहे ज्ञान मुखर्जी ने बड़ी चतुराई से काम लिया वो ब्रिटिश को ये विश्वास दिलवाने के कामयाब रहे की ये गाना तो जापानियों को ब्रिटिश हकूमत से दूर रखने की बात करता है ये द्वितीय विश्वयुद्ध का दौर था और जापान ब्रिटेन के खिलाफ युद्ध लड़ रहा था आखिर फिल्म और गाने से प्रतिबंध हट गया इसके साथ ही फ़िल्म ‘किस्मत’ ने बॉक्स आफिस के सारे रिकार्ड तोड़ दिए। इस फ़िल्म ने कोलकाता के एक सिनेमा हॉल रॉक्सी में लगातार लगभग चार वर्ष तक चलने का रिकार्ड बनाया प्रदीप जी ने अपने गाने या कविताओं में कभी भी उर्दू भाषा का प्रयोग नही किया, जबकि अन्य गीतकारों का मानना था कि उर्दू के बिना कोई गीत नही लिखा जा सकता, लेकिन प्रदीप जी हिंदी में ही अपने गीत लिखते रहे शुद्ध हिंदी के मुहावरों के साथ जीवन के गहन गूढ़ रहस्यों को सरलता से कह जाना उनकी विशेषता थी


ऐ मेरे वतन के लोगों, जरा आंख में भर लो पानी' साठ के दशक में चीनी आक्रमण के समय लता मंगेशकर द्वारा गाया गया था। यह गीत कवि प्रदीप द्वारा ही लिखा गया था जब हिंदुस्तान धोखे से हुए चीनी आक्रमण से आहत था और इस पीड़ा से निकलने की कोशिश कर रहा था ये गीत तब ही रचा गया जिसे शायद ही कोई हिन्दुस्तानी भूल सके इस गीत के कारण 'भारत सरकार'ने कवि प्रदीप को ‘राष्ट्रकवि’ की उपाधि से सम्मानित किया था पहली बार इस गीत को 26 जनवरी 1963 में दिल्ली में लता मंगेशकर ने गाया था सामने बैठे थे प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरु.....जब गीत खत्म हुआ तो जितने भी लोग वहाँ पर मौजूद थे उनकी आंखें नम थी और इनमें प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू भी शामिल थे..... लेकिन इस गीत को पहले पुरुष आवाज़ों यानी मो. रफ़ी और मुकेश के नाम तय हो चुके थे आखिर में लता मंगेशकर से इस गीत को गवाने की बात हुई, लेकिन यह एक पुरुष प्रधान गीत था, इसलिए इसमें कुछ लाइनें जोड़ दीं, क्योंकि इसे 26 जनवरी को दिल्ली में गाया जाना था.

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26 जनवरी 1963 को दिल्ली में लता मंगेशकर ने इस गीत को गाया था

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अपने परिवार के साथ कवि प्रदीप
बेहद सादा जीवन जीने वाले प्रदीप ख़ुद इस गीत को लेकर इतने भावुक थे कि उन्होंने इसकी रॉयल्टी को सैनिकों की विधवाओं के कल्याण के लिए देने का फ़ैसला किया लेकिन लाल फीताशाही का शिकार प्रदीप जी का ये गीत भी हुआ प्रदीप जी को पता चला कि इस गाने की रॉयल्टी विधवाओं को नहीं मिल रही है, तो वे बहुत दुखी हुए थे.प्रदीप को गीत की रॉयल्टी सैनिकों की विधवाओं तक पहुंचाने के लिए अदालत का दरवाज़ा खटखटाना पड़ा और इसमें उनकी जीत भी हुई

कवि प्रदीप ने जीवन के हर रंग, हर रस को शब्दों में उतारा, उनकी लेखनी से निकला हर गीत जीवन दर्शन समझा जाता था लेकिन उनके देशभक्ति के तरानों की बात ही कुछ अलग थी इस बात का अंदाज़ा आप इस बात से लगा सकते है की 1970 में जब देश के महान् शोमैन फ़िल्मकार राजकपूर की महत्वाकांक्षी फ़िल्म 'मेरा नाम जोकर' (1970) बॉक्स ऑफिस पर बुरी तरह पिट गई तो राजकपूर साहेब गहरे अवसाद में चले गए दर्शकों को उनकी यह लंबी और दार्शनिकता से भरपूर फ़िल्म नहीं भाई राजकपूर ने इस पर पानी की तरह पैसा बहाया था। वे फ़िल्म के अफसल होने पर दु:खी और उदास रहने लगे इसी समय उन्हें कई वर्ष पूर्व प्रदीप का गाया और नियतिवाद पर लिखा एक चमत्कारिक गीत 'कोई लाख करे चतुराई, करम का लेख मिटे ना भाई' की याद आई। उसका रिकॉर्ड मंगवा लिया उन बुरे दिनों में यह गीत राजकपूर का बहुत सहारा बना। इस गीत के प्रभाव से राजकपूर को अपने मन को नियंत्रण में करने की कला आ गई राजकपूर ने ये बात कही बार कही है की इस गीत की वजह से वो गहरे अवसाद से निकल सके .......आज केवल राजनिति और सत्ता का स्तुतिपाठ कर अवार्ड लेने वाले कवियों की भरमार में से कोई भी 'प्रदीप 'नहीं है ....कहते है की उन्होंने अपने समय से आगे के गीत लिखे समाज की बिगड़ती दशा को देखकर उनका लिखा एक गीत आज भी प्रासंगिक है ....

                    "देख तेरे संसार की हालत क्या हो गई भगवान कितना बदल गया इंसान।"


                                                   

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