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शिमला की चिड़िया से बतकही

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 मित्रो । शिमला की एक सुबह । सैर करने निकला तो नन्ही काली चिड़िया ने चहचहाते पूछ लिया -मजे में हो न । कैसा लगा इस बार आकर यहां ? मैंने भी जवाब में कहा - नमस्कार । तुम्हें फुदकते देखकर मन खुश हो गया । कल नवल प्रयास के संस्थापक विनोद प्रकाश गुप्ता के प्रेरणा उत्सव में जैसे युवा व नन्हे कवियों को देखकर हुआ था । 

-कुछ सीख भी मिली ? 

चिड़िया ने एक रिपोर्टर की तरह मुझे कुरेदा । 

-हां , जिंदगी का हर पल कोई न कोई सीख देता ही है । यह सीखा कि अब उम्र के उस पडाव पर हूं , जहां दूसरों को पुरस्कृत होते देख खुलकर ताली बजा सकूं और सच्चे व खुले दिल से बधाई दे सकूं । मैंने हर रचनाकार को बधाई दी भी । सच , उम्र के इस पड़ाव पर लेने की नहीं बल्कि देने की खुशी महसूस करनी चाहिए । मेरी दादी बचपन से सिखाती रही :  लेना नहीं , देना सीखो । 

वाह । कुछ और भी बताओ । 

चिड़िया तो बिल्कुल मेरी तरह पूरी रिपोर्टर की भूमिका में आ चुकी थी । सुखद । आज तक मैं ही रिपोर्टर की भूमिका में रहा । आज मुझसे भी कोई सवाल पूछ रही है । 

-कार्यक्रम के बाद गैस्ट हाउस लौट रहा था । लोकल बस स्टैंड पर कार वाले की इंतजार कर रहा था । तभी बैठा तो कुछ दूरी पर बैठी महिला ने पूछा -पहचाना ?

मैंने सोचा कि यहां शिमला में कौन हो सकती हैं ? इतने आत्मविश्वास से सवाल करने वालीं ? मैंने न में सिर हिलाया । 

उन्होंने कहा कि भाई साहब,  याद कीजिए कितनी बार मिले हैं हम ? मैं मिसेज राजन् । 

-ओह । भाभी जी । नमस्कार । बहुत सालों बाद । अचानक इस तरह मिलने पर पहचान नहीं पाया ।

-भाई साहब , हिसार में ही रहते हो ?

-जी । 

-अब भी रिपोर्टर हो ?

-जी नहीं । छोड दिया । 

-अब भी लिखते हो या कोई और काम करते हो ?

मैं चौंका । कभी किसी लेखक या रिपोर्टर से यह सवाल बडा अजीब लगता है न ?  लेखक या रिपोर्टर सारी उम्र लगाकर जिस जगह पहुंचा कि उसे यह पूछा जाए कि अब कोई नया रास्ता चुना या नहीं ? बडा रोचक भी लगा ।

- भाई साहब, मैं भी लेखन में बहुत रूचि रखती रही । खाना खाते समय भी एक नजर किसी कहानी को पढ रही होती । खुद लिखा भी पर इस पड़ाव पर आकर लगा कि लेखक बाहर कुछ और तथा घर में कुछ और होते हैं ।

-यह सुनकर तो बहुत हैरान हुए होंगे ? नन्ही चिड़िया ने फिर मेरा रोल निभाया । मैं अबकि हंस दिया ।

-भाई साहब । लेखक उन किरदारों के प्रति जो मुर्दा हैं , बडे चिंतित होकर कथा कहानी किस्से लिखते हैं लेकिन अपने ही आसपास के लोगों को उपेक्षित करते हैं । ऐसे दोहरे चरित्र को देखकर मूड ऑफ हो गया । बस । अब नहीं लिखती । पढती भी नहीं ।

तब तक थकी हारी मेरी पत्नी और बेटी भी पहुंच गयी थीं और यह बात उन्होंने भी सुनीं और मुस्करा दीं , मेरी ओर देखकर ।  जैसे उनके दिल की बात मिसेज राजन् ने कह दी हो  इतने में मिसेज राजन् की बस आ गयी । वे बाॅय करतीं उसमें सवार हो गयीं 

एक सवाल पीछे छोड़कर । लेखकों के लिए । 

चिड़िया उड गयी । मुझे मंथन करने का अवकाश देकर । बहुत हो गया। बताओ , कैसा लगा शिमला? जवाब आप भी दीजिए ।


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