उम्मीदों का दीपक सदा जलते रहना चाहिए / विजय केसरी
विपरीत परिस्थितियों को अनुकूल वही बना सकता है , जो गिरकर भी फिर से उठ कर चलना जानता है। जब से यह सृष्टि अस्तित्व में आई, कितनी बार सृष्टि पर प्रलय आया। क्या सृष्टि ने चलना बंद किया ? जवाब है, नहीं । अगर सृष्टि अपनी गति रोक देती तो आज हम सब व यह विश्व ही ना होता । इस गति के पीछे सृष्टि की जिजीविषा ही है। समय की तरह सृष्टि भी गतिमान है। समय किसी का इंतजार करता नहीं है। बस ! समय आगे की ओर बढ़ता ही चला जाता है । पीछे सिर्फ यादें ही रह जाती हैं। समय एक पल के लिए भी यादों की ओर देखता तक नहीं है। फिर हम और आप यादों के भवर में उलझी क्यों रहते हैं ? जो बीत गई सो बात गई। याद करने मात्र से यादें वापस नहीं आ सकती। समय की तरह मजबूत और गतिमान बने। जो सामने है , उसका मुकाबला पूरी शक्ति के साथ करें। समस्याएं हर की जीवन में आती हैं। इतिहास बताता है कि समस्याएं भी सदा के लिए रुकती नहीं। वह भी आगे बढ़ जाती है। फिर आप भूतकाल और यादों के भवर में क्यों उलझे रहते हैं ? जीवन बहुत मधुर है। इससे मधुर ही रहने दे। अपनी नकारात्मकता सोच से इसकी मधुरता के मधुरपन को कभी मिटने ना दे। कोरोना - कोरोना से डरे नहीं । इसका मुकाबला करें। सरकारी गाइडलाइन का पालन पूरी ईमानदारी के साथ करें। इसके बावजूद भी कोरोना हो जाता है , उसका डंटकर मुकाबला करें । पूरे धैर्य, संयम,आत्मबल और औषधि के साथ उसका मुकाबला करें ।जीत आपकी ही होगी । ऐसा मन में पक्का विश्वास रखें।
सदा सकारात्मकता के साथ रहें। नकारात्मकता को पास फटकने भी ना दें। सकारात्मक चिंतन मनुष्य के जीवन में उर्जा पैदा करती है। मन में सदा उम्मीदों का दीपक जलते रहना चाहिए। उम्मीद ही जीवन की जिजीविषा को मजबूत बनाती है।
धीरज ऐसी प्राणवायु है कि बड़े से बड़े संकटों का सामना बड़े ही यतन से कर लेता हैं। जिनमें जितना धैर्य विद्यमान होता है , वह उतने ही शक्ति के साथ संकट का मुकाबला करने में सक्षम होता है।
एक संत कवि ने लिखा , 'धीरे धीरे रे मना धीरे सब कुछ होय, पानी गिरे सौ घड़ा ऋतु आए फल होय।'
धीरज व धैर्य संकट से मुकाबला करने का सबसे कारगर अंतर्मन की शक्ति है। यह सच है कि कोरोना की दूसरी लहर ने देश में मेडिकल इमरजेंसी ला दी है। संकट की कालीमा घनी है। लेकिन जीने की आस कभी भी कमतर नहीं होनी चाहिए ।और ना ही टूटनी चाहिए। मानवीय जीवन में ऐसी परेशानियां आती रहेगी और जाती रहेगी। अंतर्मन की जिजीविषा कभी भी टूटनी नहीं चाहिए । यह सोच सभी व्यक्तियों के अंदर होनी चाहिए। इस बात को मैं एक उदाहरण के साथ रखना चाहता हूं।
एक 85 वर्षीय मां को उनका बेटा - बहु और दमाद -बेटी अस्पताल की सीढ़ियों पर छोड़ कर चले गए । कोरोना से संक्रमित मां सीढ़ियों पर बैठी अपने परिवार को जाते देखते रही । अब कल्पना कीजिए उस मां कर क्या बीता होगा ? बेटा - बहू और दमाद - बेटी को मां से शारीरिक तौर पर दूर जरूर रहना चाहिए था । लेकिन मां को अपने मन से दूर नहीं करना चाहिए था। यह चारों से बड़ी भूल हुई थी।
लेकिन मां ने जिंदगी की आस नहीं छोड़ी नहीं । वह सीढ़ियों से चढ़कर अस्पताल के बेड तक पहुंची ।
डॉक्टरों और नर्सों की सेवा से कुछ ही दिनों में कोरोना संक्रमण से मुक्त हो गई। आज मां के चेहरे पर मुस्कान है। अगर मां अपना धैर्य खो देती ? डर जाती तब क्या होता ? इसे आप अंदाजा लगा सकते हैं ।
मां, बेटा - बहू और दामाद - बेटी की अंतर्मन की पीड़ा को समझती हैं । अस्पताल से वापस घर आकर मां ने चारों को माफ कर दिया। यह मां की ममता होती है। मां ने कितनी आसानी से अपने परिवार के सदस्यों की गलतियां माफ कर दी । फिर आप सब माफी करने में देर क्यों कर रहे हैं ? क्षमा ने अंतर्मन की बड़ी शक्ति छुपी हुई होती है।किसी की गलतियों पर आप क्षमा कर कमजोर नहीं होते बल्कि आप और ऊर्जावान बनते हैं।
आप किसी से भी मिलें, मुस्कुराकर मिलें। किसी बात को लेकर तुरंत परेशान ना हो। धैर्य रखें और बातों को गहराई से समझें। नकारात्मक बातों से बचें। हंसने , मुस्कुराने और हंसाने के लिए खुद को लालायित रखें।
आज की बदली परिस्थिति में सकारात्मकता की सभी को जरूरत है। आज के हालात पर मनोवैज्ञानिक चिकित्सकों का कहना है कि टेलीविजन पर प्रसारित होने वाले नकारात्मक समाचारों से दूर रहें। नकारात्मकता की बातों से भी दूर रहें। ऐसी पुस्तकें पढ़ें जिससे आपका आत्मबल बढ़े। धार्मिक पुस्तकों को पढ़ें । वीर रस की कविताएं पढ़ें। कुछ क्रिएटिव करें। व्यस्त रहे। प्राणायाम एवं ध्यान करें । बेफिक्र रहें। देखिए जीवन में कितनी शांति आ जाती है।