'बुद्ध ने जगत को प्रेम करने का संदेश दिया / विजय केसरी
'दैनिक 'आवाज' (26.05.2021)
राजकुमार सिद्धार्थ का गौतम बुद्ध के रूप में रूपांतरण होना कोई साधारण सी घटना नहीं थी। अपितु प्रचलित धारा को एक नई दिशा देने की खोज थी। राजकुमार सिद्धार्थ के पिता महाराज शुद्धोधन को जब यह जानकारी हुई थी कि यह बालक जब राजा बनेगा तो एक महान राजा बनेगा। अगर एक धर्म उपदेशक बनेगा तो महान धर्म उपदेशक होगा। यह जानकर उनके पिता को खुशी जरूर हुई थी । लेकिन कहीं ना कहीं उनके मन में यह डर भी बैठा हुआ था कि अगर राजकुमार सिद्धार्थ धर्म उपदेशक बना तो कपिलवस्तु के राज सिंहासन पर कौन बैठेगा ? इसलिए राजा शुद्धोधन ने राज गुरुओं से राजकुमार सिद्धार्थ को सनातन धर्म शास्त्र सहित भारतीय जीवन दर्शन की शिक्षा दिलवाई थी। एक राजकुमार के लिए जो राज प्रशिक्षण हुआ करता था, उससे बढ़-चढ़कर राजकुमार सिद्धार्थ को दिया गया था।
राजकुमार सिद्धार्थ बाल काल से ही तिक्ष्ण बुद्धि के थे । वे अन्य लोगों की अपेक्षा कुछ अलग सोचा करते थे। बचपन से ही उनका स्वभाव जिज्ञासु का था । उनके पिता शुद्धोधन ने कम उम्र में ही उनकी शादी राजकुमारी यशोधरा से कर दी थी । ऋतु के हिसाब से राजकुमार सिद्धार्थ के लिए तीन -तीन महलों की व्यवस्था की गई थी । विलासिता की सारी सामग्रियां उनके लिए इन तीनों महलों में मौजूद थीं। ताकि राजकुमार सिद्धार्थ का मन वैराग्य की ओर ना भटके । लेकिन होनी को कुछ और ही मंजूर था । एक दिन अचानक नगर भ्रमण करते हुए राजकुमार सिद्धार्थ को एक बूढ़े व्यक्ति से मुलाकात हो गई थीं । फिर एक बीमार व्यक्ति से मुलाकात हो गई थी। इसके पश्चात एक मृत व्यक्ति की शव यात्रा पर उनकी नजर पड़ गई थी । इन दृश्यों का उनके मानस पटल पर बहुत ही गहरा प्रभाव पड़ा था । राजकुमार सिद्धार्थ का मन दिव्य ज्ञान की खोज निरंतर करता रहता था।
विलासिता की सारी वस्तुएं उन्हें तुच्छ लगती थी।
राजकुमार सिद्धार्थ ने जवानी से बुढ़ापा होना, व्यक्ति का रोगी होना, फिर अंत में संसार से उसकी विदाई की गुत्थियों को सुलझाना चाहते थे। वे जितना इसे सुलझाना चाहते थे। उलझते चले जा रहे थे । उन्होंने मन बना लिया कि इन महलों में रहकर, राजकुमारी यशोधरा और पुत्र राहुल के साथ विलासिता पूर्वक जीवन जीकर दिव्य ज्ञान की खोज करना नामुमकिन था । इसलिए वे एक रात राजकुमारी यशोधरा, राहुल एवं परिवार के अन्य सदस्यों को छोड़कर जंगल की ओर गमन कर गए थे । जंगल में तो वे दिव्य ज्ञान की खोज में आ गए थे। यहां भी उन्हें वर्षों भटकना पड़ा था। लंबी तपस्या के बावजूद जिस दिव्य ज्ञान की खोज में बुद्ध ने वैराग्य धारण किया था, वह अभी भी कोसों दूर था। इसी भटकाव में उनका आगमन बोधगया हुआ था । यहां उन्होंने लंबी साधना की थी । एक रात उन्हें दिव्य ज्ञान की प्राप्ति हुई थी। उनके चेहरे पर खुशी की लकीरें खिल गई थी । ज्ञान प्राप्त होने के पश्चात उनके मन में उठते प्रश्नों का जवाब मिल गया था ।अब वे राजकुमार सिद्धार्थ से गौतम बुद्ध बन चुके थे।
गौतम बुद्ध के संबंध में हमारे मनिषियों का कथन है कि वे भगवान विष्णु के अवतार थे । इस संदर्भ में बहुत अधिक जानकारियां उपलब्ध नहीं है । श्रुति के आधार पर यह बातें स्थापित की जाती रही हैैं। राजकुमार सिद्धार्थ अगर महल में रह जाते, तब उनके मन में उठते प्रश्नों का निराकरण संभव नहीं था। वे कपिलवस्तु के सुविख्यात महाराज जरूर बन जाते । लेकिन गौतम बुद्ध के रूप में उनका रूपांतरण नहीं हो पाता । उनकी फकीरी ने उन्हे राज सिंहासन से बड़ा सिंहासन प्रदान किया था।
दिव्य ज्ञान प्राप्त होने के बाद गौतम बुद्ध अपने शिष्यों के बीच अपनी बातें रखनी प्रारंभ कर दी थी। उनके ही आदेश पर उनके शिष्य भिक्षुओं ने भारत सहित विश्व के कई देशों में बुद्ध धर्म का प्रचार किया था ।गौतम बुद्ध के संदेशों में भारतीय दर्शन की ही पूट मिलता है। भारतीय दर्शन से अलग उन्होंने कुछ भी नया नहीं कहा था । गौतम बुद्ध ने प्रेम , सत्य और अहिंसा को मानवीय जीवन का सबसे बड़ा आधार कहा था। उन्होंने जगत के सभी प्राणियों से प्रेम करने की बात कही थी । उन्होंने किसी से भी घृणा ना करने की बात कही थी । आज की बदली परिस्थिति में जहां चंहुओर रक्तपात मचा हुआ है। आज बुद्ध के विचार पर चलकर संसार को रक्त पात से बचाया जा सकता है । उन्होंने जगत के सभी प्राणियों से प्रेम करने की बात कही थी। अर्थात मनुष्य का मनुष्य से प्रेम। मनुष्य का सभी पशु पक्षियों से प्रेम की बात निहित है। प्रेम से दूसरे के दिल को जीता जा सकता है। गौतम बुद्ध ने जगत के किसी भी प्राणी को दुख नहीं देने का संदेश दिया था । उनका मत था कि दूसरे को दुख देने का अर्थ था, खुद को दुखी करने के समान था ।दूसरे को दुख देखकर कोई भी व्यक्ति सुखी नहीं रह सकता । उनका जीवन सत्य और अहिंसा से ओतप्रोत था ।सत्य उनके जीवन का प्राण था ।अहिंसा उनके जीवन का उत्तम सोपान था । राजकुमार के रूप में जब सिद्धार्थ ने एक हंस के गर्दन से तीर निकालकर उसकी जान बचाई थी, इस कृत्य के माध्यम से उन्होंने अहिंसा को ही स्थापित किया था।
गौतम बुद्ध ने कहा था कि 'मनुष्य को अगर अपने जीवन में खुशियां प्राप्त करनी है, उसे अपने भूतकाल को भूल ना जना चाहिए और ना ही अपने भविष्य की चिंता करनी चाहिए। मनुष्य को केवल अपने वर्तमान पर ही ध्यान देना चाहिए।'निश्चित तौर पर बुद्ध की ये बातें कल जितनी प्रासंगिक थी। आज भी उतना ही प्रासंगिक है। आज मनुष्य चांद तक की दूरी तय कर ली है। लेकिन मन में वह शांति नहीं है । वह इसलिए नहीं है कि मनुष्य एक साथ तीनों कालों में जीता है । भूत की यादों में मनुष्य उलझा रहता है। भविष्य की चिंताएं उसको खाए जाती है। अब वर्तमान की जो खुशी उसे मिलनी चाहिए, वह हाथ से निकलती चली जा रही है । मनुष्य एक साथ तीनों कालों में रहकर खुश कैसे रह सकता है ? इसलिए जरूरी है कि मनुष्य भूतकाल की यादों को सदा के लिए भूल जाए । भविष्य की चिंता ना करें और जो वर्तमान है, उसी में जिए । यह उसके लिए और उसकी खुशी के लिए जरूरी है ।
भगवान बुद्ध ने जो दिव्य ज्ञान की खोज की थी ,आज उनके उपदेशों में दिव्य ज्ञान की अनुभूति मिल जाएगी। उन्होंने वही कहा था जो माननीय जीवन को ऊंचा उठा सकता था । उन्होंने जगत के सभी प्राणियों को नैतिक मूल्यों की शिक्षा दी थी ।गौतम बुद्ध ने आगे कहा कि 'मनुष्य हजारों लड़ाइयां जीत कर भी विजयी नहीं होता, जब तक कि वह अपने ऊपर विजय प्राप्त कर नहीं कर लेता है ।'इतनी साधारण सी बात के माध्यम से बुद्ध ने कहा कि हजारों लड़ाइयां जीत कर भी मनुष्य विजय नहीं होता जब तक कि वह स्वयं पर विजय प्राप्त ना कर लेता। स्वयं पर विजय प्राप्त करने का अर्थ है ।अपने ज्ञानेद्रियों को अपने वश में करना । मन को एकाग्र करना काम, क्रोध, मद, लोभ ,मोह जैसे पंच विकारों से दूर रखना। बुद्ध का जीवन दर्शन एक खुली किताब की तरह है । जहां मन में उठते सवालों का निराकरण है । बुद्ध ने कहा कि 'मनुष्य के अपने जीवन में मंजिल या लक्ष्य पाने से अच्छी उसकी यात्रा होनी चाहिए ।जैसे हजारों शब्दों से अच्छा वह एक शब्द है, जो शांति प्रदान करता है।'मनुष्य शांति की खोज में ना जाने कहां कहां भटक रहता है । और इस भटकाव के लिए मनुष्य स्वयं जिम्मेदार है। मनुष्य की यात्रा का संदर्भ है, मनुष्य के जीवन जीने के ढंग से है । मनुष्य का जीवन जीने का ढंग सही नहीं है तो उसकी यात्रा भी सही नहीं है ।
विजय केसरी ,
(कथाकार / स्तंभकार ),
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