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शिक्षक विद्यार्थियों के लिए लैम्प होता है-पटनायक

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 बुद्ध पूर्णिमा पर एक दिवसीय अंतर्राष्ट्रीय वेबीनार

शिक्षक विद्यार्थियों के लिए लैम्प होता है-पटनायक

बुद्धिज्म पर जल्द ही ऑनलाईन कोर्स भी-कुलपति प्रो. शुक्ला

महू। एक शिक्षक, शिक्षक ही नहीं विद्यार्थी का दोस्त, मेंटर और गार्जियन भी होता है. शिक्षक अपने विद्यार्थियों के लिए शिक्षा का लैम्प जलाता है जिससे विद्यार्थी तो रोशन होते हैं, शिक्षक भी स्वयं रोशन हो जाते हैं. यह बात आइसीसीआर के महानिदेशक श्री दिनेश पटनायक बीआर अम्बेडकर विश्वविद्यालय द्वारा आयोजित एक दिवसीय अंतर्राष्ट्रीय वेबीनार में मुख्य अतिथि के रूप में कहा. ‘विश्व बंधुत्व एवं शांति में बुद्धिज्म एवं बुद्धिस्ट शिक्षकों की भूमिका’ विषय को आगे बढ़ाते हुए श्री पटनायक ने कहा कि नेशनल एजुकेशन पॉलिसी से शिक्षा की संभावनाओं का विस्तार हुआ है. उन्होंने कहा कि बुद्धिज्म पर शोध लगभग नहीं के बराबर है. आईसीसीआर छोटी अवधि के फेलोशिप प्रोग्राम शुरू करेगा. इसके लिए विश्वविद्यालय अगर एप्रोच करते हैं तो आईसीसीआर सहयोग करेगा. निकट भविष्य में बुद्धिज्म पर अंतर्राष्ट्रीय कांफ्रेंस एवं अवार्ड शुरू करने का विचार भी उन्होंने साझा किया. बुद्ध पूर्णिमा के अवसर पर आयोजित वेबीनार में श्री पटनायक ने बुद्धिज्म के विभिन्न पक्षों पर प्रकाश डाला और कहा कि बुद्धिज्म पर गहरे अनुसंधान की आवश्यकता है. वेबीनार की शुरूआत बुद्ध वंदना से हुई. 

वेबीनार के आरंभ में कुलपति डॉ. आशा शुक्ला ने विश्वविद्यालय के बारे में विस्तार से जानकारी दी एवं विश्वविद्यालय की गतिविधियों के लिए उन्होंने मध्यप्रदेश की राज्यपाल आनंदीबेन पटेल का आभार माना. उन्होंने कहा कि उनके मार्गदर्शन में विश्वविद्यालय नवाचार करने में सफल रहा है. वर्तमान में विश्वविद्यालय में बुद्धिज्म पर पाठ्य़क्रम संचालित किया जा रहा है लेकिन निकट भविष्य में बुद्धिज्म पर ऑनलाईन पाठ्यक्रम आरंभ करने की बात कुलपति प्रोफेसर शुक्ला ने कही. प्रो. शुक्ला ने बताया कि नेशनल एजुकेशन पॉलिसी के अंतर्गत शिक्षकों की भूमिका पर विशेष रूप से एक वर्षीय अकादमिक कार्यक्रम संचालित किया जा रहा है. इस एक दिवसीय अंतर्राष्ट्रीय वेबीनार का आयोजन लार्ड बुद्धा चेयर बीआर अम्बेडकर यूर्निवसिटी ऑफ सोशल साइंस एवं भारतीय शिक्षण मंंडल, आईसीसीआर, हेरीटेज सोसायटी यूनेस्को के संयुक्त तत्वाधान में हुआ. वेबीनार के प्रारंभ में प्रोफेसर दीपक कुमार वर्मा ने कार्यक्रम की रूपरेखा से अवगत कराया. कार्यक्रम की समन्वयक पूर्व निदेशक आईसीसीआर एवं वर्तमान में विजिटिंग प्रोफेसर मनिपुर यूर्निवसिटी ऑफ कल्चर, इम्फाल प्रोफेसर नीरू मिश्रा ने विभिन्न देशों से वेबीनार में आए अतिथियों का परिचय दिया.   

वेबीनार में बुद्धिस्ट स्कूल, श्रीलंका मैतिपे विमलासारा ने कहा कि वर्तमान परिदृश्य में यह विषय सामयिक हो गया है. उनका कहना था कि बुद्ध पहले से ज्यादा सामयिक हो गए हैं आज जिन परिस्थितियों से हम गुजर रहे हैं, उस समय बुद्ध और भी सामयिक हो गए हैं. उन्होंने तार्किक शिक्षा पर जोर देेते हुए कहा कि विद्यार्थी तर्क के साथ अपने सवाल करें और जवाब पायें. किसी पर अंधविश्वास ना करें. उन्होंने कहा कि शिक्षक तर्क की कसौटी पर खरा उतर कर विद्यार्थियों को शिक्षित करें. उन्होंने शिक्षकों को पूर्वाग्रह से परे रहने की बात भी कही. उन्होंने कोरोना से उपजे संकट पर भी चर्चा की. केलानिया यूर्निवसिटी श्रीलंका के हिन्दी विभाग के अध्यक्ष प्रोफेसर उप्पल रंजीत ने बुद्ध से जुड़ी जातक कथाओं के बारे में विस्तार से चर्चा करते हुए बुद्धिज्म के विभिन्न पक्षों पर प्रकाश डाला. उन्होंने अपनी बात हिन्दी में कही। बुद्ध के परिप्रेक्ष्य में अपनी बात रखते हुए सदाचार और नैतिक शिक्षा पर प्रोफेसर उपल्ल रंजीत ने जोर दिया. ग्रेजुएट स्कूल एमसीयू थाइलैंड डॉ. फरमा शंभू ने लर्निंग फ्रॉम एक्सपीयरंस की बात कही. उनका जोर व्यवहारिक ज्ञान पर था. उनका कहना था कि करते रहो और सीखो. संस्कृत अध्ययन केन्द्र सिलपोकम यूर्निवसिटी थाइलैंड के एमडी डॉ. सोबंत मैंगमीसुश्रीती ने शिक्षक एवं विद्यार्थियों के लिए पांच गुण की व्याख्या की. उनका कहना था कि शिक्षक अपने विद्यार्थियों से स्नेह करे, उसे शिक्षित करे, जल्दी सिखाये लेकिन याद रखने लायक बनाये, बारीकियों के साथ मीठा बोले और विद्यार्थियों के मन से डर को दूर भगायें. विद्यार्थियों के लिए उन्होंने कहा कि विद्यार्थियों को शिक्षक का सम्मान करना चाहिए, जिज्ञासा होना चाहिए, कार्य की इच्छा होना चाहिए, एकाग्रता होना चाहिए तथा अपने शिक्षक के प्रति कृतज्ञ होना चाहिए. उन्होंने विश्व बंधुत्व एवं शांति के लिए बुद्ध का अनुसरण किया जाना चाहिए. अनंत नेशनल यूर्निवसिटी अहमदाबाद में यूनेस्को चेयर प्रमुख डॉ. अमरेश्वर गाला ने ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य में बुद्धिज्म का स्मरण किया. उन्होंने कहा कि बुद्धिज्म की जो बुनियाद है, उसे हमें वैश्विक स्तर पर समझना और स्वीकार करना होगा. हमारे भीतर के लालच ने हमारे समक्ष संकट उत्पन्न कर दिया है और इसका एकमात्र हल बुद्ध दर्शन है. लालच हम छोड़ नहीं सकते इसलिए हमेंं बीच का रास्ता तलाशना होगा.  

प्रोफेसर दीपक कुमार वर्मा ने अंत में अतिथियों एवं अपने सहयोगियों का आभार व्यक्त किया. वेबीनार में विशेष रूप से प्रोफेसर डीके वर्मा, डीन सोशल साइंस, श्री मदन खत्री, अखिल भारतीय शैली प्रकल्प सह-प्रमुख एवं पालक अधिकारी मध्य क्षेत्र एवं श्री अनंताशुतोष द्विवेदी, महानिदेश हरिटेज सोसायटी, पटना का सहयोग रहा.


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