देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने 14-15 अगस्त 1947 की मध्यरात्रि, जहां से पहली बार आजाद भारत के लोगों को संबोधित किया था, वह स्थान था: हमारी मौजूदा संसद का केंद्रीय कक्ष(Central Hall). उस ऐतिहासिक भाषण को नियति से मिलन(Tryst with Destiny) के नाम से जाना गया.
एक और ऐतिहासिक भाषण इसी जगह दिया गया. वह था: भारतीय संविधान के प्रारूप लेखन समिति के अध्यक्ष Dr B R Ambedkar का. भारतीय संविधान स भा में समिति के अध्यक्ष के रूप में यह उनका आखिरी भाषण था. तारीख़ थी-25 नवम्बर, 1949.
संसद के Central Hall में दिये ये दोनों भाषण भारत के आधुनिक इतिहास के अमूल्य धरोहर हैं.
इसी Central Hall में 14-15 अगस्त, 1947 की मध्यरात्रि प्रधानमंत्री नेहरू और उनके तेरह मंत्रियों को शपथ दिलाई गई थी. इनमें कांग्रेस खेमे से बाहर के दो लोग थे: Dr Ambedkar और Dr Shyama Prasad Mukherjee.
आज की हमारी निर्वाचित सरकार उस महान संसद भवन और उसके Central Hall का क्या करेगी; यह वक़्त बतायेगा लेकिन इतना तो साफ है कि संसद की नयी बिल्डिंग और समूचे Central Vista में हमारे इतिहास के उन महान अध्यायों को क्रमशः नष्ट करने की कोशिश की जायेगी.
क्या ये सब आसान है? आखिर हमारी सामूहिक स्मृतियों में जीवित उन अध्यायों को कोई कैसे मिटा पायेगा?
इतिहास को अपने माफ़िक कैसे गढ़ेंगे, कितनी सारी स्मृतियों को मिटायेंगे? आप पसंद करें या नापसंद, प्रथम प्रधानमंत्री नेहरू के उल्लेख के बगैर एक स्वतंत्र और आधुनिक भारतीय राष्ट्र-राज्य के इतिहास का सफ़र कोई कैसे शुरू करेगा?
उन्हीं नेहरू जी का आज स्मरण-दिवस है. सलाम और श्रद्धांजलि.