बात करू मैं खरी खरी....... / शिशिर सोनी
------------
मोदी सरकार के शुरुआत के 5 सालों में नोटबंदी और जीएसटी ने देश की अर्थव्यवस्था का भट्टा बैठा दिया। देश का हर आम और खास दर दर की ठोकरें खाया सो अलग। नोटबंदी के कारण शादी ब्याह, छट्ठी, मूडन सब कैंसल हुए। अपने पैसे निकालने को मोहताज कई लोगों ने एटीएम की लाइनो में दम तोडा। मगर हमने वो ऐतिहासिक भूल भुला कर उन्हें और ज्यादा सीटों और वोटों से सत्ता सौंपी।
दूसरी पारी के 2 सालों में प्रचंड जीत से सरकार मतवाली हो गई। विरोधी अगर बाहर हैं तो उनके पीछे एजेंसियां छोड़ दी गयीं। भाजपा में शामिल हो गए तो 7 खून माफ। अब तो सुप्रीम कोर्ट भी ऐसे मामलों में केंद्र की लानत मलानत कर रहा है। पर राजनीति ढीठ होती है। सभी संस्थाओं को ठेंगे पर रखने की कोशिश करती है।
नागरिकता संशोधन कानून, अनुच्छेद 370 की समाप्ति, राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर का विषय हो या फिर किसान आंदोलन, कोरोना महामारी के कारण देश की लडखड़ाती अर्थव्यवस्था के बीच चीनी सेना की सीमा पर की गई गुस्ताखी और हमारे जमीन पर कब्जा करने जैसा दुस्साहस.... हर मसले पर सरकार फिसली। अति आत्मविश्वास से लबरेज आत्ममुग्धता की शिकार हमारी मोदी सरकार अब भी खीन्से निपोड रही है।। महान विभूतियों के इतिहास से अटे पड़े इस देश को मुट्ठी भर लोग सुअर का बाड़ा समझ हांक रहे हैं।
जब विश्व कोरोना महामारी से सचेत हो रहा था हमारी सरकार "नमस्ते ट्रंप"के आयोजन में व्यस्त थी। जब हाथ से बाजी निकलती हुई दिखी तो बिना किसी तैयारी के लॉकडॉउन की घोषणा कर दी गई। हज़ारो गरीब लोगों ने पैदल रास्ते नापते हुए दम तोड़ दिये। इसे हत्या मानी जानी चाहिए! रोजगार किसी को दिया नहीं। बेरोजगारों की फौज खड़ी कर दी। बेतुके लॉकडॉन से करोड़ो बेरोजगार हो गए, सो अलग। कितनो ने मजबूरी में आत्महत्या की। देश की अर्थव्यवस्था बुरी तरह गर्त में जा घुसी।
इस बीच महान पीएम मोदी ने "आपदा में अवसर"का नारा दिया। चौतरफा लूट मच गई। अस्पतालों की वसूली के नियम कागजों तक सिमट कर रह गए। बीमारों ने घर, मकान, दुकान बेच कर लाखों अस्पतालों में स्वाहा किये। कुछ लकी थे, बचे। कुछ अनलकी थे, लाखो बिल भरने के बाद भी गुजर गए।
क्या महामारी में अस्पतालों में मची लूट पर किसी सरकार का कोई अंकुश नहीं होना चाहिए? जनता को लुटेरों के हाथ लूटने देना चाहिए? नहीं। हरगिज नहीं। मगर ऐसा हुआ। हो रहा है।
गत अगस्त महीने में जब विश्व कोरोना के टीके के लिए ऑर्डर दे रहा था हमारे महान पीएम मोदी जनवरी में वैश्विक मंच पर कोरोना से युद्ध जीत लेने का दंभ भर रहे थे। जबकि तभी हम कोरोना के दलदल में गहरे फंस रहे थे। न टीके का उचित इंतज़ाम किया गया, न ऑक्सीजन, दवा, अस्पताल का। चिता सजाने को लकड़ियाँ कम पड़ने लगीं। लोग अपनो को नदियों में फेकने को मजबूर हुए। गंगा की गोद में दफ़नाने को मजबूर हुए। दो साल के कुशासन ने देश को केवल चीत्कार दिया। हमारी सरकार की दूरदृष्टि में कमी, अहं, दंभ, अति आत्मविश्वास ने हमें कई दशक पीछे धकेल दिया।
दूसरे कार्यकाल में सीएए कानून संशोधित कर दोनों सदनों से पास कराया गया। राष्ट्रपति की मंजूरी मिले भी डेढ़ साल हो गए, मगर क्या ये कानून लागू हुआ? नहीं, उल्टे इस कानून को ठंडे बस्ते में डालने के वादे के साथ असम में भाजपा दूसरी बार सत्ता में आई। जबकि ये कानून पूरी तरह लागू होना चाहिए। धर्म के आधार पर हमारे देश का बंटवारा हुआ था। पड़ोसी देश में या विश्व भर में अगर हिंदू प्रताड़ित होता है तो भारत में उनको नागरिकता मिलनी ही चाहिए। ये भी ठीक है भारत हिंदू राष्ट्र नहीं। कई धर्मो के लोग यहाँ रहते हैं, इसलिए धर्म के आधार पर कानून में भेदभाव नहीं होने चाहिए।
अमेरिका जाकर "अबकी बार ट्रंप सरकार"जैसे नारे देना, सीमा पर चीनी सैनिकों से खूनी झड़प, हमारी सीमा पर चीन का कब्जा, केवल ये उदाहरण हमारी सरकार के कूटनीतिक विफलताओं को आईना दिखाने को काफी है।
देश में चुनाव होते रहते हैं। कभी जीतेंगे। कभी हारेंगे। मगर, जीत हार तभी होगी जब देश रहेगा। नागरिक बचेंगे।