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किसलय का मतलब सोनमाती उर्मिलेश

 बिहार के सुप्रसिद्ध और प्रतिभावान पत्रकार कृष्ण किसलय Krishna Kisalay  के निधन की अत्यंत दुखद सूचना उनके बेटे निशांत के ह्वाट्सेप संदेश से मिली. संदेश आधी रात का है, जिसे मैं अभी सुबह-सुबह ही देख सका.

उर्मिलेश


आंखों से टप-टप गिरने लगे आंसू. गला सूखने लगा और मेरे दोनों पैरों की फिल्लियों में हल्के दर्द के साथ अजीब सी सिहरन होने लगी. इधर कई वर्षो से किसलय से आमने-सामने की मुलाकात नहीं थी पर उनसे हमारा 35 साल पुराना रिश्ता उतना ही पुख़्ता और प्यारा था, जिसकी शुरुआत सन् 1986-87 के दौर में हुई थी. तब हम लोग नवभारत टाइम्स के बिहार संस्करण में काम करते थे. मै पटना में स्टाफ़ रिपोर्टर था और वह डेहरी-आन-सोन से संवाददाता के रूप में काम करते थे. 

एक बार किसी खास स्टोरी पर काम करते हुए मुझे उनके इलाके में जाना पड़ा. उन्होने दिल से स्वागत किया और घुमाया. उनकी बेहतरीन पत्रकारिता के एक दिलचस्प प्रसंग की चर्चा मेरे संस्मरणों की शीघ्र प्रकाश्य किताब मे भी दर्ज है.

कोविड-19 से उनके संक्रमित होने की सूचना मुझे विलम्ब से मिली. जिस दिन खबर मिली, मैने उनसे तत्काल संपर्क किया. उनके बेटे निशांत राज के जरिये उनकी तमाम मेडिकल रिपोर्ट भी मंगाई. मैने उसे अपने एक अत्यंत निकटस्थ डाक्टर को फॉरवर्ड किया, जो कोविड मामलों के जानकार भी हैं. डाक्टर साहब ने मुझे और उनके बेटे को बताया कि स्थानीय डाक्टर जो दवाएं चला रहे हैं, वह सब उपयुक्त हैं. हम सबको भरपूर विश्वास था कि किसलय कुछ ही दिनों में ठीक होकर सामान्य जिंदगी में वापसी करेंगे. मेरी उनसे आखिरी बातचीत 3 जून को हुई थी, जब मैंने कहा, 'भाई किसलय बिल्कुल ठीक हो जाओगे. बस, डाक्टर की सलाह से दवा और अन्य जो भी बतायें वह चलाते जाइये. दवा के अलावा खान-पान का भी ध्यान रखें. जब भी कोई समस्या महसूस हो, बेटे से कह दें, वह मुझे फोन कर लेगा. घबराना नहीं साथी, आप ठीक होकर फिर से 63 के लगेंगे(किसलय ने कहा था कि 63 की उम्र में 73 का 'फील'कर रहा हूं). जब इस महामारी से देश-समाज मुक्त होगा, माहौल सामान्य होगा तो मैं एक बार आपके डेहरी आन सोन फिर आऊंगा. हम लोग मिलेंगे और घूमेंगे-फिरेगे.' 

पर किसलय चले गये. ऐसा लग रहा है, अपना प्यारा छोटा भाई चला गया. आंखे फिर मान नहीं रही हैं. टप-टप किये जा रही हैं. इसी बीच कृष्ण किसलय के कर्मठ बेटे निशांत के बारे में भी सोच रहा हूं. उससे तो कभी मिला नहीं. पर मुझे विश्वास है, वह इस बड़े संकट के बीच अपना और परिवार का ख्याल रखेगा. हम सबका स्नेह तुम्हारे साथ है बेटे!


कुछ यादें, प्यारे भाई किसलय की: 

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आमतौर पर पत्रकारों और खासतौर पर हिदी पत्रकारों में आपसी ईर्ष्या-द्वेष कुछ ज्यादा ही रहता है. लेकिन कृष्ण किसलय इसके खूबसूरत अपवाद थे. सन् 1993-94 में मुझे Times Fellowship अवार्ड हुई. मुझसे पहले वह फेलोशिप हमारे विश्वविद्यालय दिनों के एक पुराने साथी पी साईनाथ को मिली थी. मेरे फेलोशिप पाने की खबर Times of india और NBT, दोनों अखबारों में प्रमुखता से छपी. आज भी याद है, बिहार के जिन कुछ पत्रकारों ने मुझे सुबह-सुबह फोन कर बधाई दी थी, उनमें  डेहरी-आन-सोन के पत्रकार किसलय भी शामिल थे. उन्होने फोन पर कहा: 'सर, मुझे अगले सप्ताह पटना आना भी है. मैं चाहता हूं कि आपका एक इंटरव्यू करूं! 'प्रभात खबर'के लिए भी आजकल लिखता रहता हूं. संपादक जी से पूछ लूंगा. अगर वह छापने को तैयार होंगे तो इसी यात्रा में आपका इंटरव्यू भी हो जायेगा.'तब मेरी उम्र 37 साल की थी और उनकी भी 36-37 ही रही होगी. मैने कहा: 'अरे, इसमें इंटरव्यू वाली क्या बात है? फेलोशिप मिली है, इसका उपयोग कर कुछ अच्छा काम करना है ताकि एक और किताब आ जाये! आप आइये, आपका स्वागत है. आपको मिठाई भी खिलाऊगा!'उस समय तक मेरी एक किताब-'बिहार का सच'(1991) छप चुकी थी. बिहार और हिंदी भाषी अन्य हिस्सों में उसकी चर्चा भी हुई थी. कुछ सप्ताह बाद किसलय सचमुच पटना आये और अड़ गये कि 'इंटरव्यू करेंगे. संपादक जी से बात हो गयी है, प्रभात खबर छापेगा.'मैने कहा: 'विषय क्या होगा?'उन्होंने दिमाग बना लिया था: "यही फेलोशिप का काम, बिहार और भारत में मीडिया की स्थिति आदि!"सच पूछिये तो उस समय मीडिया, उसके समाजशास्त्र और उसके अंदरूनी मसलों की मुझे खास समझदारी नहीं थी. उन दिनों मेरा ध्यान सिर्फ़ बिहार की राजनीति, कृषि संकट और ग्रामीण क्षेत्रों की हिंसा-प्रतिहिंसा जैसे कुछ ज्वलंत विषयों पर ज्यादा था. मेरे तत्कालीन लेखन का विषय उसी के इर्द-गिर्द केंद्रित था...पर कृष्ण किसलय कहां मानने वाले थे! उन्होंने इंटरव्यू किया और वह 'प्रभात खबर'रांची के 13 मार्च, 1994 के अंक में वह बड़े आकार में सचित्र छपा. 

किसलय बिहार के पत्रकार जरूर थे पर उनके पास राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य था. कामकाज के मामले में वह सिर्फ बिहार तक सीमित नहीं रहे. वह मेरठ, देहरादून और कुछ अन्य जगहों पर भी रहे. उन्होंने कई बड़े और मझोले स्तर के अखबारों के लिए काम किया. तरह-तरह के लोगों के बीच रहने और काम करने से उनका परिप्रेक्ष्य और व्यापक हुआ. पिछले कई वर्षो से वह 'सोनमाटी'नामक पत्र का संपादन और प्रकाशन कर रहे थे. 

दोस्त और छोटे भाई Krishna Kisalay का असमय जाना सिर्फ बिहार की पत्रकारिता की ही नहीं, संपूर्ण हिंदी पत्रकारिता की बड़ी क्षति है. अफ़सोस कि हम सब उस प्यारे इंसान को बचा नहीं सके. इस महामारी और हमारे समाज, ख़ासकर हिंदी भाषी क्षेत्रों में लोक स्वास्थ्य सेवा संरचना की भारी कमी के चलते मनुष्यता किस कदर लाचार हो गयी है.

सादर श्रद्धांजलि, दोस्त! 

बेटे निशांत और किसलय जी के परिवार के प्रति हमारी शोक-संवेदना.


🙏🙏🙏🙏🙏🙏


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