मीडिया के लिए पॉलिसी इस तरह की होनी चाहिए कि छोटे शहरों और कस्बों में काम करने वाला पत्रकार भी सहजता से कार्य कर सके. रजिस्ट्रेशन से लेकर एडवरटाइजमेंट की प्रक्रिया सरल होनी चाहिए. खर्चीली तो बिल्कुल भी नहीं होनी चाहिए. ऑनलाइन एवं पारदर्शी व्यवस्था होनी चाहिए. ऐसी पॉलिसी बिल्कुल नहीं होनी चाहिए जिसमें पत्रकार स्थानीय जिलाधिकारी, एसएसपी या सूचना विभाग के चक्कर काटने पर मजबूर हो जाए.
सिंगल विंडो सिस्टम होना चाहिए. पत्रकार सीधा प्रेस काउंसिल के प्रति जवाबदेह हो. जिस तरह से गूगल एड की पेमेंट सीधे अकाउंट में आती है उसी तरह सरकारी एडवरटाइजमेंट की पेमेंट भी सीधे अकाउंट में आनी चाहिए. एडवरटाइजमेंट सीधे पोर्टल संचालक के ई मेल आईडी पर भेजा जाए. एड के साथ ही एडवांस पेमेंट की व्यवस्था हो ताकि किसी को बिल पास कराने के लिए अफसरों के चक्कर न काटने पड़ें. चूंकि छोटे पत्रकार सीमित संसाधनों में कार्य करते हैं और उनकी रीच भी बहुत ज्यादा नहीं हो पाती, इसलिए एडवरटाइजमेंट के लिए व्यूज का क्राइटेरिया भी बहुत ज्यादा नहीं होना चाहिए जिससे नए पत्रकारों को भी आगे बढ़ने में सहयोग मिल सके. हर डिजिटल मीडिया संस्थान से कम से कम एक पत्रकार को मान्यता प्राप्त पत्रकार का कार्ड जरूर मिलना चाहिए. इसके बाद व्यूज के आधार पर इस संख्या को बढ़ाया जाना चाहिए.
- सादर - नीरज सिसौदिया
बरेली, उत्तर प्रदेश
नरेंद्र भंडारी:
डिजिटल मीडिया से जुड़े साथियों, आप लोग जानते ही है कि केंद्र सरकार जल्द ही डिजिटल मीडिया को लेकर एक पालिसी ला रही है। वह पालिसी किस तरह की होनी चाहिये, उस बारे में आप लोग अपने सुझाव दे। नरेंद्र भंडारी, राष्ट्रीय महासचिव, वर्किंग जर्नलिस्ट्स ऑफ इंडिया
1. डिजिटल मीडिया संस्थाओं को मान्यता मिले।
2. इनके पत्रकारों को मान्यता के साथ अन्य सुविधाएं भी मिले जो प्रिंट मीडिया के पत्रकारों को मिलता है।
3. डिजिटल मीडिया संस्थाओं को सरकारी विज्ञापन और सहायता दी जाय। छोटे शहरों के डिजिटल मीडिया संस्थाओं को यह सहायता जिला अधिकारी के ऑफिस से मिले। इसकी प्रक्रिया ज्यादा जटिल ना हो।