मेरठ परिक्षेत्र के विशेष संदर्भ में प्रथम स्वतंत्रता संग्राम’ पर वेबीनार
मेरठ का विद्रोह अंग्रेजों के लिए अप्रत्याशित था - डॉ. शर्मा
महू (इंदौर). ‘10 मई, 1857 का प्रथम स्वतंत्रता संग्राम प्रथम विद्रोह अप्रत्याशित नहीं बल्कि अंग्रेजों को निकालने के लिए सुनियोजित तरीके से किया गया था. हां, अंग्रेजों के लिए जरूर यह अप्रत्याशित विद्रोह था. यह विद्रोह भारतीय सिपाहियों के साथ आम आदमी का था, ग्रामीणों का, मजदूरों और महिलाओं का था.’ यह बात चौधरी चरणसिंह विश्वविद्यालय के एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. कृष्णकांत शर्मा ने कही. डॉ. शर्मा आज डॉ. बी.आर. अम्बेडकर सामाजिक विज्ञान विश्वविद्यालय महू एवं हेरिटेज सोसायटी पटना के संयुक्त तत्वावधान में आजादी का अमृत महोत्सव के अवसर पर आयोजित कार्यक्रम ‘ ‘मेरठ परिक्षेत्र के विशेष संदर्भ में प्रथम स्वतंत्रता संग्राम’ विषय पर बोल रहे थे. उन्होंने कहा इस विद्रोह से जुड़े अनेक संदर्भों का उल्लेख करते हुए इस बात को सिरे से खारिज किया कि प्रथम विद्रोह अचानक हुआ था. उन्होंने सवाल किया कि यदि ऐसा था तो कारतूस चलाने से मना करने वाले सिपाहियों को छुड़ाने, जेल जलाने, तहसील कार्यालय जलाने के लिए मेरठ और आसपास के बड़ी संख्या में ग्रामीण एकसाथ कहां से पहुंचे. उन्होंने कहा कि 10 मई का दिन क्रांति दिवस का है न कि शहीद दिवस का. उन्होंने कहा कि अंग्रेजी मानसिकता के अफसर 10 मई को पहले शहीद दिवस लिखा करते थे लेकिन लगातार विरोध के बाद क्रांति दिवस लिखा जाने लगा. डॉ. शर्मा ने कहा कि इस प्रथम विद्रोह में सबसे पहले मारे जाने वाले अंग्रेजी अफसर का नाम था कर्नल फिनिश. इस विद्रोह के बाद अंग्रेजी शासन दहशत में आ गई थी.
वेबीनार को संबोधित करते हुए डॉ. शर्मा ने अनेक दृष्टांत सुनाये जिसमें यह बात तथ्यों के साथ स्थापित होती है कि मेरठ में 10 मई को हुआ विद्रोह सुनियोजित था. वे बताते हैं कि सदर बाजार के पास ढोलकी मोहल्ला की नृत्यांगनाओं ने वहां से गुजरते हुए भारतीय सिपाहियों पर चूडिय़ां फेंकी और ताने कसे. इसके बाद जो चिंगार फूटी जिसका विवरण भारतीय स्वतंत्रता इतिहास में दर्ज है. उन्होंने कहा कि 90 भारतीय सैनिकों में 85 ने चर्बीयुक्त कारतूस को चलाने से मना कर दिया था. इन जांबाज सिपाहियों का कोर्टमार्शल कर जेल में बंद कर दिया गया था. उन्होंने स्लाइड के माध्यम से अनेक अनछुये संदर्भों से परिचित कराया. इसके पूर्व गर्वमेंट म्यूजियम मेरठ के क्यूरेटर श्री पत्रू कुमार ने विस्तार से संग्रहालय के बारे में जानकारी दी. उन्होंने कहा कि यहां स्वाधीनता संग्राम के दौरान आसपास की घटनाओं का उल्लेख नहीं मिलता है.
वेबीनार के अध्यक्ष एवं डीन प्रो. डी.के. वर्मा ने कहा कि इतिहास का लेखन वैज्ञानिक और तार्किक ढंग से न लिखकर, लिखवाया गया. अमृत महोत्सव के अवसर पर इतिहास के पुर्नलेखन की आवश्यकता को बताते हुए अनेक किताबों का संदर्भ दिया. उन्होंने कहा कि एक अवसर मिला है कि हम इतिहास में हुई गलतियों को सुधार कर लें. 1857 के विद्रोह के बारे में उन्होंने कहा कि हमें समझना होगा. हमें कहना होगा कि यह क्रांति का शंखनाद था. उन्होंने कहा हमें भारतीय सनातन संस्कृति को मजबूत करना है.
वेबीनार के आरंभ में हेरिटेज सोयायटी के महाननिदेशक श्री अनंताशुतोष द्विवेदी ने कार्यक्रम की संकल्पना को प्रस्तुत करते हुए अतिथियों का स्वागत किया. वेबीनार का संचालन हेरिटेज सोयायटी की डॉ. रत्ना सिंह ने किया. कार्यक्रम का संयोजन एवं आभार प्रदर्शन डॉ. अजय दुबे ने किया. कुलपति प्रोफेसर आशा शुक्ला के मार्गदर्शन में यह सातवीं साप्ताहिक संगोष्ठी थी. इस संगोष्ठी के आयोजन में कुलसचिव श्री अजय वर्मा के साथ विश्वविद्यालय परिवार का सहयोग रहा.