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आईआईएमसी DG प्रो संजय द्विवेदी से बातचीत

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 प्रभासाक्षी के साथ बात करते हुए बोले IIMC के महानिदेशक, सफलता की सीढ़ी है सकारात्मकता

प्रभासाक्षी के साथ बात करते हुए आईआईएमसी के महानिदेशक ने कहा कि शिक्षा के क्षेत्र में डिजिटलाइजेशन हो रहा है। अब हमें डिजिटिल माध्यमों पर ज्यादा विश्वास करना पड़ेगा। जब हालात सामान्य होंगे, तो सामान्य कक्षाएं भी होगी। लेकिन अभी हमें ई-माध्यमों और ई-कंटेट का इस्तेमाल करते हुए विद्यार्थियों का मनोबल बनाए रखने का काम करना होगा

आईआईएमसी के महानिदेशक प्रो. संजय द्विवेदी से प्रभासाक्षी के संपादक नीरज दुबे की खास बातचीत
भारतीय जन संचार संस्थान के महानिदेशक प्रो. संजय द्विवेदी देश के प्रख्यात पत्रकार, संपादक, लेखक, मीडिया प्राध्यापक और अकादमिक प्रबंधक हैं। देश के प्रतिष्ठित मीडिया संगठनों में वे महत्वपूर्ण जिम्मेदारियों का निर्वहन कर चुके हैं। प्रो. द्विवेदी माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय, भोपाल के प्रभारी कुलपति भी रहे हैं। हाल ही में उन्होंने आईआईएमसी में अपने कार्यकाल का पहला वर्ष सफलतापूर्वक संपन्न किया है। प्रस्तुत है इस अवसर पर उनसे हुई बातचीत के प्रमुख अंश। 
आईआईएमसी का पहले वर्ष का अनुभव कैसा रहा?  
अगर एक शब्द में कहूं तो ‘शानदार’। इस एक वर्ष के सफर में भारतीय जन संचार संस्थान के समस्त प्राध्यापकों, अधिकारियों एवं कर्मचारियों ने मुझ पर जो विश्वास जताया है, उसके लिए मैं सभी का धन्यवाद करता हूं। ये पूरी टीम की मेहनत का परिणाम है कि देश की प्रतिष्ठित पत्रिका इंडिया टुडे के ‘बेस्ट कॉलेज सर्वे’ में भारतीय जन संचार संस्थान को पत्रकारिता एवं जनसंचार के क्षेत्र में देश का सर्वश्रेष्ठ कॉलेज घोषित किया गया है। संस्थान के चेयरमैन श्री अमित खरे के मार्गदर्शन और सहयोग से आईआईएमसी अकादमिक गुणवत्ता के मानकों को स्थापित करने में सफल रहा है। 
इस एक वर्ष में आपकी क्या उपलब्धियां रहीं?
अपने कार्यकाल की शुरुआत में ही हमने आईआईएमसी में 7 नए प्रोफेसरों की नियुक्ति की। सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय द्वारा स्वच्छता पखवाड़ा-2020 के तहत मंत्रालय से संबंधित संस्थाओं को स्वच्छता के लिए सम्मानित किया गया, जिसमें पहला स्थान भारतीय जन संचार संस्थान को प्राप्त हुआ।  कोविड के कारण हम लोग भी चिंतित थे। लेकिन हमने आपदा के इस समय को अवसर में बदला और डिजिटल माध्यमों से पूरा शैक्षणिक सत्र संचालित किया। आईआईएमसी के इतिहास में पहली बार नेशलल टेस्टिंग एजेंसी के माध्यम से ऑनलाइन प्रवेश परीक्षा आयोजित की गई। नवागत विद्यार्थियों का ओरियंटेशन प्रोग्राम भी ऑनलाइन आयोजित किया गया। इस कार्यक्रम में तत्कालीन केंद्रीय सूचना एवं प्रसारण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर, प्रसिद्ध फिल्म निर्माता एवं निर्देशक सुभाष घई, विदेश राज्यमंत्री वी. मुरलीधरन एवं तत्कालीन केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री डॉ. हर्षवर्धन सहित देश के प्रख्यात पत्रकारों एवं शिक्षाविदों ने हिस्सा लिया। ऑनलाइन कक्षाओं के माध्यम से हमने पूरा सत्र सफलतापूर्वक संचालित किया है।
आईआईएमसी ने देश के प्रख्यात विद्वानों से विद्यार्थियों का संवाद कराने के लिए ‘शुक्रवार संवाद’ नामक कार्यक्रम की शुरुआत की है। इस कार्यक्रम के माध्यम से केंद्रीय महिला एवं बाल विकास मंत्री  स्मृति ईरानी, केंद्रीय जल शक्ति मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत, पद्मश्री से अलंकृत लोक गायिका  मालिनी अवस्थी, पूर्व मुख्य निर्वाचन आयुक्त डॉ. एस. वाई. कुरैशी एवं इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र के सदस्य सचिव डॉ. सच्चिदानंद जोशी सहित लगभग 18 हस्तियां विद्यार्थियों का मार्गदर्शन कर चुकी हैं।

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भारत में कोविड 19 महामारी की पश्चिमी मीडिया द्वारा की गई कवरेज पर आईआईएमसी ने एक सर्वेक्षण किया और इस विषय पर विमर्श का आयोजन भी किया। इस कार्यक्रम में देश के प्रसिद्ध  पत्रकारों एवं बुद्धिजीवियों ने भाग लिया। इसके अलावा इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र, नई दिल्ली, महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय, वर्धा एवं न्यूकासल यूनिवर्सिटी, लंदन के साथ मिलकर हमने कई महत्वपूर्ण विषयों पर पिछले एक वर्ष में विमर्श का आयोजन किया है।
इसके अलावा भारतीय जन संचार संस्थान ने अपने पुस्तकालय का नाम भारत में हिंदी पत्रकारिता की शुरुआत करने वाले पं. युगल किशोर शुक्ल के नाम पर रखा है। आईआईएमसी का यह पुस्तकालय हिंदी पत्रकारिता के प्रवर्तक पं. शुक्ल के नाम पर देश का पहला स्मारक है। इसके अलावा हमने सरकारी कामकाज में हिंदी को बढ़ावा देने के लिए इस वर्ष ‘राजभाषा सम्मलेन’ का आयोजन भी किया।

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आपने पिछले एक वर्ष में कई विश्वविद्यालयों के साथ करार भी किया है
हमने महात्मा गांधी केंद्रीय विश्वविद्यालय, बिहार और यूनिवर्सिटी ऑफ जर्नलिज्म एंड मास कम्युनिकेशंस ऑफ उज़्बेकिस्तान के साथ एमओयू किया है। इसका उद्देश्य पत्रकारिता और जनसंचार शिक्षा को प्रोत्साहन देना एवं मौलिक, शैक्षणिक एवं व्यावहारिक अनुसंधान के क्षेत्रों को परिभाषित करना है। इस समझौते के माध्यम से हम टीवी, प्रिंट मीडिया, डिजिटल मीडिया, जनसंपर्क, मीडिया भाषा विज्ञान और विदेशी भाषाओं जैसे विषय पर शोध को बढ़ावा देना चाहते हैं। यह समझौता अनुसंधान और शैक्षिक डेटा के आदान-प्रदान को भी प्रोत्साहित करेगा और संयुक्त कार्यक्रमों को आयोजित करने के अवसरों का भी जरिया बनेगा। आईआईएमसी का उद्देश्य आज की जरुरतों के अनुसार ऐसा मीडिया पाठ्यक्रम तैयार करना है, जो छात्रों के लिए रोजगापरक हो। इस दिशा में हम अन्य विश्वविद्यालयों के साथ मिलकर कार्य करने के लिए अग्रसर हैं। इसके साथ ही संस्थान का उद्देश्य छात्रों और संकाय सदस्यों को वैश्विक संपर्क प्रदान करना भी है। 
आईआईएमसी ने अपनी दो शोध पत्रिकाओं को दोबारा रिलांच किया है। इसके बारे में आप क्या कहेंगे?
भारतीय जन संचार संस्थान की प्रतिष्ठित शोध पत्रिकाओं ‘कम्युनिकेटर’ और ‘संचार माध्यम’ को हमने रिलांच किया है। ‘कम्युनिकेटर’ का प्रकाशन वर्ष 1965 से और ‘संचार माध्यम’ का प्रकाशन वर्ष 1980 से किया जा रहा है। यूजीसी-केयर लिस्ट में शामिल इन शोध पत्रिकाओं में संचार, मीडिया और पत्रकारिता से संबंधित सभी प्रकार के विषयों पर अकादमिक शोध और विश्लेषण प्रकाशित किये जाते हैं। जनसंचार और पत्रकारिता पर प्रकाशित पुस्तकों के अलावा सामाजिक कार्य, एंथ्रोपोलोजी, कला आदि पर प्रकाशित पुस्तकों की समीक्षा भी पत्रिकाओं में प्रकाशित की जाती है। इसके अलावा ऐसे तथ्यपूर्ण शोध-पत्र भी शामिल किये जाते हैं, जिनका संबंध किसी नई तकनीक के विकास से है। भारतीय जन संचार संस्थान के प्रकाशन विभाग द्वारा ‘कम्युनिकेटर’ का प्रकाशन वर्ष में चार बार और ‘संचार माध्यम’ का प्रकाशन दो बार किया जाता है।   
प्रकाशन के क्षेत्र में आईआईएमसी और क्या नया करने जा रहा है?
‘संचार सृजन’ के नाम से हम समसामयिक विषयों पर त्रैमासिक पत्रिका का प्रकाशन शुरू करने जा रहे हैं। राजभाषा हिंदी को बढ़ावा देने के लिए ‘राजभाषा विमर्श’ नामक पत्रिका प्रकाशित करने की हमारी योजना है। आईआईएमसी से जुड़ी एक ‘कॉफी टेबल बुक’ का प्रकाशन भी जल्द किया जाएगा। इसके अलावा अगले दो वर्षों में मीडिया शिक्षा से जुड़ी लगभग 40 पुस्तकों का प्रकाशन हिंदी एवं अन्य क्षेत्रीय भाषाओं में करने की भी हमारी योजना है।  
सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर आईआईएमसी अब काफी एक्टिव दिख रहा है। इसके लिए क्या आपने कोई खास योजना बनाई है?
सोशल मीडिया आज रोटी, कपड़ा और मकान की तरह हमारी ज़िंदगी का एक अहम हिस्सा बन चुका है। फेसबुक, ट्विटर, यूट्यूब जैसे ऑनलाइन सोशल प्लेटफॉर्म्स के बिना आज जीवन की कल्पना करना बेमानी है। आईआईएमसी ने भी समय के साथ अपने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स में बदलाव किए हैं। कोविड काल में फोटो और वीडियो के माध्यम से हमने लोगों को जागरुक करने का कार्य किया है। आईआईएमसी द्वारा संचालित 'अपना रेडियो'पर भी हमने कोरोना से जुड़े कार्यक्रमों का प्रसारण किया है। संस्थान में हो रही प्रत्येक गतिविधि की जानकारी आप सोशल मीडिया हैंडल्स से ले सकते हैं।  
कोरोना काल में आपके हिसाब से शिक्षा के क्षेत्र में किस तरह की प्लानिंग की जरुरत है?
शिक्षा के क्षेत्र में डिजिटलाइजेशन हो रहा है। अब हमें डिजिटिल माध्यमों पर ज्यादा विश्वास करना पड़ेगा। जब हालात सामान्य होंगे, तो सामान्य कक्षाएं भी होगी। लेकिन अभी हमें ई-माध्यमों और ई-कंटेट का इस्तेमाल करते हुए विद्यार्थियों का मनोबल बनाए रखने का काम करना होगा और कक्षाओं को जारी रखते हुए बच्चों से सतत संपर्क और संवाद बनाए रखना होगा।
आईआईएमसी के छात्रों को आप क्या सलाह देना चाहेंगे?
मेरा एक ही मंत्र है। युवाओं को मेहनत से कभी पीछे नहीं रहना चाहिए। अपनी क्रिएटिविटी, आईडियाज, लेखन की शक्ति से अपने व्यक्तित्व को को मांजते हुए चलिए। हर दिन हमें कुछ सीखना है, ये भाव लेकर चलेंगे, तो सफलता आपके कदम चूमेंगी।


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