पूर्व केंद्रीय मंत्री सुषमा स्वराज जी की पुण्यतिथि पर श्रद्धांजलि स्वरूप चंद पंक्तियां :-
"सुषमा जी का संपूर्ण जीवन राष्ट्र को समर्पित रहा"
प्रखर हिंदू धर्म की ध्वजवाहिका भाजपा की शीर्ष नेत्री
व पूर्व विदेश मंत्री सुषमा स्वराज का संपूर्ण जीवन राष्ट्र व भारतीय राजनीति को समर्पित रहा । जब संपूर्ण देश जम्मू कश्मीर से धारा 370 और 35a हटाए जाने की खुशियों में डूबा हुआ था , तभी यह खबर आई कि जन जन की लोक नेत्री सुषमा जी अब इस दुनिया में नहीं रहीं । यह समाचार सभी देशवासियों को शोकाकुल कर दिया। सुषमा जी से विरोधी विचार रखने वाले नेतागण भी उनके निधन से मर्माहत और शोकाकुल नजर आ रहे हैं। सुषमा जी इस धरा पर मात्र 67 वर्षों तक रहीं, जिसमें उन्होंने अपने जीवन का 42 वर्ष राष्ट्र व भारतीय राजनीति को समर्पित कर दिया। उनका स्वभाव बचपन से ही बहुत सहज सरल रहा । उनका यही स्वभाव जीवन के अंतिम क्षणों तक बना रहा। सत्ता की कुर्सी ने भी सुषमा जी के व्यवहार पर कोई प्रभाव नहीं डाल पाय।
वह अपने विरोधियों की बातें भी बहुत धैर्य के साथ सुनतीः जब वह जवाब देती तो विरोधी भी निरुत्तर हो जाते। भारत की एकता और अखंडता सुरक्षा और राष्ट्र की सेवा आदि विषयों पर अपनी बातों को बहुत ही निपुणता के साथ रखती । उन पर बाल काल से ही सरस्वती जी की विशेष कृपा रहीं। उनका प्रतिउत्तर सुनकर सामने वाला कितना बड़ा भी ज्ञानी क्यों ना हो एक बार तो हतप्रभ रह जाता। पाठशाला काल से ही सुषमा जी स्कूल में होने वाले कार्यक्रमों में धाराप्रवाह बोलकर सबों का ध्यान अपनी ओर आकर्षित कर लेती। छोटी उम्र में ही उनकी समझ तो बडों जैसी थी । उनके शिक्षक गण भी सुषमा जी की वाक कला से प्रभावित रहते । बाल काल से सुषमा जी के इन्हीं गुणों को देखकर शिक्षक गण कहते कि बड़ा होकर कुछ बडा करेगी । आगे चलकर उनकी बातें सच साबित हुई ।
सुषमा जी मैं छात्र जीवन से ही नेतृत्व करने के गुण विद्यमान थे। उन्होंने छोटी उम्र में ही देश सेवा का संकल्प ले लिया था। ऐसा प्रतीत होता है। एनसीसी के कैडेट के रूप में उन्होंने बेहतर प्रदर्शन कर सर्वश्रेष्ठ कैडेट का पुरस्कार भी प्राप्त किया । सुषमा जी के पिता हरदेव शर्मा राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के एक प्रमुख सदस्य रहे । बाल काल से ही सुषमा जी को अपने पिता द्वारा राष्ट्र सेवा की शिक्षा मिली । उनकी माता लक्ष्मी देवी एक विशुद्ध ग्रेनी के साथ भारतीय तीज त्यौहारों को बहुत ही श्रद्धा से मनाने वाली विदुषी महिला थी । सुषमा जी को तीज त्यौहारों के प्रति जो इतना लगाव रहा। यह उनकी माता की शिक्षा का ही प्रभाव था। स्कूल की पढ़ाई पूरी कर जो सुषमा जी कॉलेज की पढ़ाई से जुड़ी तो उनका समाज सेवा की ओर विशेष झुकाव हुआ । छात्र जीवन से ही सुषमा जी के पास मदद के लिए कई लोग आते रहते थे । सुषमा जी उन सबों की समस्याओं को दूर करने के लिए हर संभव प्रयास करती। उन्होंने अंबाला के सनातन धर्म कॉलेज से संस्कृत और राजनीतिक विज्ञान में स्नातक किया ।इसके बाद उन्होंने पंजाब विश्वविद्यालय चंडीगढ़ से विधि की पढ़ाई पूरी की । 1973 से वह एक अधिवक्ता के रूप में सर्वोच्च न्यायालय से जुड़ी। यहां अपनी दक्षता, निपुणता और कार्य के प्रति ईमानदार रहने के कारण सुषमा जल्द ही लोकप्रिय हो गई। उनके पास विचार के लिए नए-नए मुकदमें आने लगे । बरसो इस वकालत के पेशे में समय लगा देने के बावजूद अधिवक्ताओं का स्थान नहीं प्राप्त कर पाते जैसा कि सुषमा जी को हासिल हो पाया। 1975 में सुषमा स्वराज ने अपने सहकर्मी स्वराज कौशल से विवाह किया। इसके साथ ही दोनों जन समाज सेवा के काम में जुड़े रहे। विधि सबंधी जानकारियां जरूरतमंदों को मुफ्त भी दिया करते। लेकिन सुषमा जी वकालत की सेवा से ज्यादा दिनों तक स्वयं को जोड़ नहीं पाई।
1970 के लगभग सुषमा जी अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद से जुड़ गई थी। उनकी गतिविधियों से लगता था कि वह शीघ्र राजनीति में जाएंगी । उन्होंने परिषद से जुड़कर परिषद के कार्यों को काफी आगे बढ़ाया । सुषमा जी का नाम प्रांत और केंद्र के नेताओं तक पहुंचने लगा । वह जो कहती , उस बात को पूरी शिद्दत के साथ निभाती। राष्ट्रवाद के प्रति सुषमा जी का दृष्टिकोण छात्र जीवन से स्पष्ट रहा है । देश की एकता अखंडता के मुद्दे पर सुषमा जी कभी भी समझौता वादी मूड व स्थिति में ना होती ।आगे चलकर वह सक्रिय राजनीति में शामिल हुई तो उनका दृष्टिकोण ऊसी तरह रहा । सक्रिय राजनीति में प्रवेश करने पर उनका और उनके पति स्वराज कौशल का समाजवादी नेता जॉर्ज फर्नांडिस के यहां मुकदमा संबंधी कार्यों के लिए आना जाना होता रहा। तब लोकनायक जयप्रकाश नारायण के नेतृत्व में देशभर में इंदिरा गांधी की सत्ता के खिलाफ जोरदार संघर्ष चल रहा था । जार्ज ,जेपी के इस संघर्ष को गति प्रदान कर रहे थे । यह सब देखकर समझ बूझकर सुषमा ने मन बना लिया कि जेपी के इस सत्ता परिवर्तन के खिलाफ संघर्ष में सहयोग करेगी । वह संघर्ष में कूद पड़ी।।
चूंकि सुषमा स्वराज शादीशुदा और स्वराज परिवार की बहू रही। इस तरह उनका संघर्ष में कूद जाना, परिवार वालों की परेशानियां बढ़ना एक स्वभाविक प्रक्रिया है। उन्होंने इस परिवारिक परेशानी का सामना बहुत ही सूझबूझ और शालीनता के साथ किया । एक बहु, पत्नी का जो दायित्व है, उसका निर्वहन उन्होंने पूरी निष्ठा से किया। जेपी आंदोलन की एक कार्यकर्ता के रूप में भी उन्होंने बढ़-चढ़कर हिस्सा भी लिया। दोनों किरदारों को उन्होंने बखूबी शालीनता और सहजता से निभाया । उन्होंने कार्य की अधिकता की कभी भी किसी से भी कोई शिकायत नहीं की। वह जिस किरदार में होती बस, उसी का होती। सुषमा का यह विलक्षण गुण देख समाजवादी नेता जार्ज फर्नांडीस जयप्रकाश नारायण सहित के कई बड़े राष्ट्रीय नेता उनकी तारीफ करते नहीं थकते।
आपातकाल के बाद 1977 में हुए चुनाव में सुषमा स्वराज हरियाणा विधानसभा के लिए चुनी गई और सबसे कम उम्र की कैबिनेट मंत्री बनने का उन्हें गौरव प्राप्त हुआ । हरियाणा की राजनीति को उन्होंने एक नई दिशा दी । मंत्री रहते हुए उन्होंने जनता से कभी दूरी नहीं बनाई । वह जनता की समस्याओं को दूर करने में दिन-रात जुड़ी रहती। सुषमा जी के कार्यों की सराहना देश भर में होने लगी। हरियाणा राज्य सरकार में उन्होंने 1977 से 1979 तक 8 पदों पर संभाला। रात रात भर जागकर वह फाइलों को निपटाती और फाइलों पर आदेश देती । देखने में सुषमा जी सहज जरूर लगती, अगर कोई अधिकारी समय पर काम पूरा नहीं करते तो वह उनसे सख्ती से निपटती थी । जनता के किसी भी काम के साथ सुषमा जी कोई समझौता नहीं करती । देखते ही देखते सुषमा केंद्र की राजनीति में दस्तक दे दी । 1990 में सुषमा जी राज्यसभा की सदस्य के रूप में निर्वाचित हुई। उन्हें, अटल बिहारी वाजपेई के नेतृत्व में 13 दिन की सरकार के दौरान सुषमा स्वराज ने सूचना प्रसारण की केंद्रीय कैबिनेट मंत्री के रूप में लोकसभा का लाइव प्रसारण का क्रांतिकारी कदम उठा कर इतिहास रच दिया । उन्हें 13 अक्टूबर से 3 दिसंबर तक दिल्ली की प्रथम मुख्यमंत्री बनने का गौरव प्राप्त हुआ ।
राजनीति में मिली जवाबदेही का निर्वहन करते हुए उन्हें पुत्री धन की प्राप्ति हुई । बतौर मां के रूप में भी सुषमा जी शत-प्रतिशत सफल रहीं। उन्होंने अपनी बेटी को उच्च शिक्षा के साथ बेहतर संस्कार प्रदान किया। वह रिश्तो को बहुत ही अच्छे ढंग से जीना और निभाना जानती थी। पारिवारिक रिश्तो के साथ सामाजिक रिश्तो को भी पूरी निष्ठा के साथ निभाती। पांचजन्य के पूर्व संपादक तरुण विजय ने अपने संस्मरण में लिखा है कि"रक्षाबंधन में किसी कारण से उनकी बहन की राखी पहुंच नहीं पाई। यह समाचार जब सुषमा जी के पास पहुंची तो उन्होंने तरुण विजय को फोन कर खुद से राखी बांधने की इच्छा जताई और राखी बांधी। बात तो बिल्कुल छोटी और साधारण लगती है , किंतु जिस मुकाम पर सुषमा जी पहुंच गई थी और व्यस्त दिनचर्या के बावजूद उश उनके मन की निश्छलता को समझा जा सकता है। विदेश मंत्री के रूप में उन्होंने जो कार्य किया सदा याद किया जाता रहेगा। विदेशों में फंसे भारतीय मूल के लोगों को सकुशल देश वापसी के लिए सुषमा जी ने जो तत्परता दिखाई , वह अपने आप में मिसाल है । पाकिस्तान के जेल में बंद कुलभूषण की रिहाई के लिए अंतरराष्ट्रीय कोर्ट में मामला ले जाना और विजय होना। इसका श्रेय सुषमा स्वराज को जाता है।
दिन रात काम करते हुए 52 बरस की उम्र में सुषमा जी किडनी रोग से ग्रसित हो गई। किडनी ट्रांसप्लांट के बाद वह पुनः सक्रिय हुईं। सुषमा जी जानती थी कि उसके जीवन के दिन ज्यादा दिनों तक नहीं है। डॉक्टरों ने ज्यादा काम ना करने की सलाह दी थी। इसके बावजूद दिन रात काम में डूबी रहती। उन्होंने, भारत कश्मीर का अभिन्न अंग है , की बात को विश्व मंच पर रखकर संपूर्ण देशवासियों का मस्तक ऊंचा किया। जब यह सपना साकार हुआ तो सुषमा जी ने ट्वीट किया कि "इसी दिन की प्रतीक्षा कर रही थी"। इस ट्वीट के कुछ घंटे बाद वह सदा सदा के लिए आंखें मूंद ली। इस तरह एक नेता सदियों बाद पैदा लेते हैं। अपने जीवन के अंतिम क्षणों में जब वह खुद जीवन मौत से संघर्ष कर रही थी, तब उन्होंने कुलभूषण को न्याय दिलाने के लिए वकील को अपने घर पर बातचीत करने के लिए बुलाई थी। सुषमा स्वराज की जीवन यात्रा भारतीयों को प्रेरणा देता रहेगा।