Quantcast
Channel: पत्रकारिता / जनसंचार
Viewing all articles
Browse latest Browse all 3437

विस्तारवाद पर बुद्धिमत्ता की विजय!? ऋषभदेव शर्मा

$
0
0

 डेली_हिंदी_मिलाप/ अंततः ज़िद और विस्तारवाद पर बुद्धि


मत्ता भारी पड़ी और पूर्वी लद्दाख के गोगरा में भारत और चीन दोनों की सेनाएँ पीछे हट गई हैं। सीमा पर खड़े किए गए अस्थायी ढाँचे भी हटा लिए गए हैं। इससे पहले दोनों देशों के बीच सीमा विवाद को लेकर 12 दौर की बातचीत चली। सयाने बता रहे हैं कि दोनों पक्षों की 12 वीं बैठक पूर्वी लद्दाख के चुशुल मोल्‍डो मीटिंग प्‍वाइंट पर हुई। इसमें  सीमा पर तनाव कम करने को लेकर विचारों का गहन और स्‍पष्‍ट आदान-प्रदान हुआ, जिसमें दोनों पक्ष गोगरा इलाके  से पीछे हटने को लेकर सहमत हुए। सयाने भारत और चीन की इस आपसी समझ को  बहुत बड़ी उपलब्धि मान रहे हैं। वरना यह सोचने वाले भी कम न थे कि सेनाएँ भले ही बंकरों में लौट जाएँ,  दोनों तरफ बनाए अस्थायी निर्माण तो विवाद के स्मारक बन खड़े ही रहेंगे!


आपसी सहमति पर पहुँचने में इतना ज़्यादा वक़्त लगने के लिए दोनों देश एक दूसरे को दोषी ठहरा सकते हैं। लेकिन सच यह है कि भारत और चीन के बीच  अविश्वास की इतनी बड़ी दीवार खड़ी हो चुकी है कि किसी छोटे से मुद्दे पर भी सहमति बनना आसान नहीं रह गया है। इसलिए अगर सीमा विवाद पर यह सहमति बन सकी है, तो दोनों ओर के राजनैतिक और सामरिक वार्ताकार बधाई के पात्र हैं। समझौते के अनुसार, दोनों पक्षों ने चरणबद्ध, समन्वित और सत्यापित तरीके से इस क्षेत्र में अग्रिम तैनाती बंद कर दी है। अर्थात अब दोनों पक्षों के सैनिक अपने-अपने स्थायी ठिकानों में हैं। बताया गया है कि  यह समझौता सुनिश्चित करता है कि दोनों पक्षों द्वारा इस क्षेत्र में वास्तविक नियंत्रण रेखा का कड़ाई से पालन और सम्मान किया जाएगा। दोनों पक्षों ने वार्ता को आगे बढ़ाने और पश्चिमी क्षेत्र में वास्तविक नियंत्रण रेखा के साथ शेष मुद्दों को हल करने की भी प्रतिबद्धता व्यक्त की है।


याद रहे कि पैंगोंग झील  इलाके से चीन और भारत की सेनाएँ पहले ही  पीछे हट चुकी हैं। उम्मीद की जानी चाहिए कि दोनों देश युद्ध के स्थान पर बुद्ध को अपना कर सीमा पर शांति बनाए रखेंगे। समझा जाना चाहिए कि मई 2020 में चीन के सैनिकों के भारत की सीमा के अतिक्रमण से शुरू हुआ यह विवाद अब थम गया है तथा अन्यत्र भी दोनों देशों के बीच सरहद को लेकर जो मतभेद हैं, उन्हें भी सुलझाने में दोनों पड़ोसी एक दूसरे को भरोसे में लेकर सकारात्मक पहल करेंगे। लेकिन खटका इस बात का है कि क्या  चीन कभी भारत की संप्रभुता के प्रति असम्मान दिखाने और वादाखिलाफी करने की अपनी आदत से बाज आ सकेगा? सयाने बता रहे हैं कि अब भी वास्तविक नियंत्रण रेखा पर कम से कम चार जगहों पर दोनों देशों की सेनाएँ आमने-सामने हैं। उनमें देपसांग और हॉट स्प्रिंग को ज्यादा संवेदनशील माना जाता है। चीन ने उन क्षेत्रों से अपनी सेना हटाने से मना कर दिया है। मगर गोगरा से सेना हटाने के ताजा फैसले से उम्मीद बनी है कि उन बिंदुओं पर भी सकारात्मक नतीजे सामने आएँगे।


अंततः यह भी कि ऐसा नहीं है कि चीन नहीं जानता कि आज की दुनिया में किसी देश की ताकत का पैमाना अर्थव्यवस्था की मजबूती है, भूभाग का विस्तार नहीं। लेकिन ऐसा प्रतीत होता है कि वह हमें सीमा और भूभाग के विवादों में फँसा कर हमारी आर्थिक प्रगति को अवरुद्ध करना चाहता है। दूसरे पड़ोसियों को भी इसीलिए वह तनाव में रखता है। इस तरह वह बैश्विक बाजार का एकछत्र बादशाह बनना चाहता है! 000


Viewing all articles
Browse latest Browse all 3437

Trending Articles



<script src="https://jsc.adskeeper.com/r/s/rssing.com.1596347.js" async> </script>