*आज ही के दिन पटना सचिवालय पर तिरंगा फहराने के दौरान अंग्रेजों की गोली अपने सीने पर खाकर शहीद हुए थे *19 वर्षीय* कायस्थ रत्न अमर शहीद *कुमार जगतपति।*
अमर शहीद क्रांतिकारी कुमार जगतपति का जन्म मई, 1923 में बिहार के औरंगाबाद जिले के प्रखंड-ओबरा, ग्राम-खराटी के कायस्थ परिवार में हुआ था।
इनके पिता सुखराज बहादुर बहुत बड़े जमींदार थे । शहीद जगतपति कुमार अपने 3 भाइयों में *सबसे छोटे थे*।
*बड़े भाई* पिता के काम मे हाथ बटाते थे और
*दूसरे भाई* असम हाइकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश रहे एवं असम के राज्यपाल भी रहे।
*तीसरे नम्बर पर* कुमार जगतपति थे जो पटना बी एन कॉलेज के साइंस के विद्यार्थी थे।
भारतीय स्वाधीनता संग्राम में 11 अगस्त 1942 को विषय 5वां स्थान प्राप्त है।
स्वाधीनता संग्राम की लड़ाई में बिहार प्रान्त भी पीछे नही रहा।
इसी दौरान पटना में सभा बैठी और तय किया गया कि 11 अगस्त 1942 को पटना सचिवालय से यूनियन जैक झंडा उतारकर तिरंगा फहराया जाएगा।
प्रातः काल से ही टोली बनाकर वंदे मातरम और इंकलाब जिंदाबाद के नारों के साथ पटना सचिवालय की तरफ चल पड़े ।
सचिवालय पंहुचकर सात युवक हाथ मे तिरंगा झंडा लिए आगे बढ़े ब्रिटिश झंडा उतारकर फिर तिरंगा झंडा फहराया गया।
वंदे मातरम के उद्घोष के साथ सारा वातावरण ओत-प्रोत हो गया। फिर अचानक से अंग्रेज जिला अधिकारी डब्ल्यू जी आर्चर ने सभी क्रांतिकारियों पर अंधाधुंध गोलियां चलवा दी।
एक एक कर सात सपूत शहीद हो गए उन्ही सात शहीदों में शामिल थे कुमार जगतपति।
अंग्रेजो की गोली कुमार जगतपति के पैरों में जाकर लगी फिर वे गिर पड़े और पुनः उठ कर खड़े हुए और सीना खोलकर सामने करते हुए कहा कि
"अगर गोली मारनी है तो सीने पर मारो, पैरों पर क्यों मारते हो?"
और फिर गोली सीने को चीरते हुए चली गई और वे वहीं शहीद हो गए।
स्वतंत्रता आंदोलन के कई सेनानियों या उनके परिजनों ने आजाद भारत मे सरकार से लाभ लिया है किंतु शहीद जगतपति के परिवार सा उदाहरण विरले ही मिलता है, जिनके परिजनों ने सरकारी लाभ लेने से इंकार कर दिया।
इनके परिजनों ने अपनी ही जमीन पर 1976 में स्मारक तक बनवाया जो आज बिहार सरकार की उदासीनता के कारण अपनी पहचान खो रहा है।
इनकी माँ ने सरकार द्वारा प्रस्तावित पेंशन सहित तमाम सुविधाओं को लेने से इंकार कर दिया और कहा कि "मेरा बेटा देश के लिए शहीद हुआ है किसी लाभ के लिए नही"।
*कायस्थ कुलगौरव* शहीद कुमार जगतपति की स्मृति में पटना सचिवालय के पूर्वी गेट पर शहीद स्मारक की स्थापना की गई है।
स्मारक की कांस्य प्रतिमाओं में चौथी प्रतिमा शहीद जगतपति कुमार की है।
शहीद जगतपति कुमार का घर भी अब खंडहर में तब्दील हो चुका है।
जातीय समीकरण को देखते हुए ना पूर्व में भारत सरकार और ना ही अब बिहार सरकार ने इनपर ध्यान देना भी उचित समझा।
शहीद जगतपति के वंशज अब देश के विभिन्न हिस्सों में बस चुके है।
आज इन महान आत्मा अमर शहीद जगतपति जी के बलिदान दिवस पर सादर नमन एवं श्रद्धांजलि।