साउथ दिल्ली में लाजपत नगर से आगे बढ़ते ही आप एंड्रयूज गंज में पहुंचेंगे। इधर आपको मिलेगा केन्द्रीय विद्लाय,एंड्रयूज गंज। गुस्ताखी माफ, अगर आपको नहीं पता तो बता दें दीनबंधु सी.एफ.एंड्रयूज के नाम पर एंड्रयूज गंज है। वे गांधी जी के मित्र थे और सेंट स्टीफंस कॉलेज में इंग्लिश पढ़ाते थे। वे अपने कॉलेज के संभवत: पहले विदेशी शिक्षक थे। उसके बाद पर्सिवल स्पियर और फिर डेविड बेकर इधर दशकों तक पढ़ाते रहे। ये दोनों इतिहास पढ़ाते थे। बेकर साहब का पिछले दिनों निधन हो गया।
एंड्रयूज ने 1904 से 1914 तक सेंट स्टीफंस कॉलेज में पढ़ाया। उन्होंने अपने को यहां शिक्षक तक सीमित नहीं रखा। उन्हीं के प्रयासों से ही गांधी जी पहली बार 12 अप्रैल-15 अप्रैल, 1915 को दिल्ली आए और सेंट स्टीफंस कॉलेज में रूके थे। तब सेंट स्टीफंस कॉलेज कश्मीरी गेट पर था। उस बिल्डिंग में अब दिल्ली चुनाव आयोग का दफ्तर चलता है।
एंड्रयूज और गांधी जी दक्षिण अफ्रीका में मिल चुके थे। उन्होंने सेंट स्टीफंस कॉलेज के प्रिंसिपल सुशील कुमार रुद्रा से कहा था कि वे बापू को कॉलेज में आमंत्रित करें। रुद्रा साहब ने तब बापू को खत लिखा। फिर बापू दिल्ली में आए तो सेंट स्टीफंस कॉलेज में ही ठहरे। रुद्रा साहब का नाम फतेहपुरी की 150 साल पुरानी चर्च में भी लिखा हुआ है।
एन्ड्रयूज ने ब्रिटिश नागरिक होते हुए भी जलियांवाला बाग कांड के लिए ब्रिटिश सरकार को जिम्मेदार माना था। वे गुरुदेव टैगोर के भी करीबी रहे। शांति निकेतन में 'हिंदी भवन'की स्थापना उनके आश्रम में हुई थी। उन्होंने 16 जनवरी 1938 को शांति निकेतन में 'हिंदी भवन'की नींव रखी। 31 जनवरी 1939 को 'हिंदी भवन'का उद्घाटन पं० जवाहरलाल नेहरू ने किया था। वे तब वहां पर गुरुदेव टेगौर के साथ मौजूद थे। गुरुदेव की कूची से बना एन्ड्रयूज का एक चित्र सेंट स्टीफंस कॉलेज के प्रिंसिपल के कक्ष में लगा हुआ है। उनकी परम्परा को सेंट स्टीफंस कॉलेज में आगे लेकर गए इतिहासकार पर्सिवल स्पियर। वे इधर 1924-1940 तक पढ़ाते रहे। मतलब ये है कि वे भी कश्मीरी गेट की बिल्डिंग में ही रहे।
सेंट स्टीफंस कॉलेज अपनी मौजूदा बिल्डिंग में 1941 में शिफ्ट हुआ था। स्पियर साहब ने भारत के इतिहास पर अनेक महत्वपूर्ण किताबें लिखीं। वे विशुद्ध अध्यापक और रिसर्चर थे। वे भारत के स्वाधीनता आंदोलन को करीब से देख रहे थे। पर वे उसके साथ या विरोध में खड़े नहीं थे। सेंट स्टीफंस कॉलेज छोड़ने के बाद वे ब्रिटिश सरकार के भारत मामलों के उप सचिव बन गए थे।
उन्होंने भारत को छोड़ने के बाद इंडिया, पाकिस्तान एंड दि वेस्ट (1949),ट्वाइलाइट आफ दि मुगल्स (1951),दि हिस्ट्री आफ इंडिया (1966)समेत कई महत्वपूर्ण किताबें लिखीं। इन सबका अब भी महत्व बना हुआ। गालिब के दौर की दिल्ली? पर्सिवल स्पियर ने लिखा है कि दिल्ली सन 1781-82 के दौरान भयंकर भूखमरी के दौर से गुजरी थी। दिल्ली वाले दाने-दाने को मोहताज हो गए थे।
स्पीयर लिखते है-“ उस भूखमरी के कारण दिल्ली के गांवों में सैकड़ों लोगों की जानें चली गईं थीं। उस आपदा का असर यहां के जीवन पर लंबे समय तक रहा।” पर्सिवल स्पियर को दिल्ली के सैकड़ों गांवों के समाज और जीवन की गहरी समझ थी। एन्ड्रयूज और स्पीयर की परंपरा के अंतिम समृद्ध हस्ताक्षर डेविड बेकर के निधन से सेंट स्टीफंस कॉलेज और दिल्ली यूनिवर्सिटी ने अपने एक गुरुओं के गुरु खो दिया है।
बेकर का संबंध आस्ट्रेलिया से था। वे 1960 के दशक में रिसर्च के लिए भारत आए और फिर आधी सदी से अधिक समय तक यहां इतिहास पढ़ाते रहे। पाकिस्तान के राष्ट्रपति जिया उल हक 1981 में सेंट स्टीफंस कॉलेज आए थे। वे सेंट स्टीफंस कॉलेज में 1941 से 1945 तक पढ़े थे। वे तब राजधानी में निर्गुट सम्मेलन में भाग लेने आए थे। तब वे कुछ समय चुराकर अपने पुराने कॉलेज आ गए थे। जिया को तब सेंट स्टीफंस कॉलेज परिसर में प्रो. मोहम्मद अमीन और बेकर साहब ने घुमाया था। वे बताते थे कि जिया उल हक ने कॉलेज में अपने हॉस्टल के कमरे को देखा। वे प्रिंसिपल रूम में भी गए। पुराने अध्यापकों के बारे में पूछा। वे कुछ पलों तक कॉलेज कैंटीन में नींबू पानी बेचने वाले वाले सुखिया से गले मिलते रहे थे।
डेविड बेकर को देखकर अहसास होता था कि आप किसी संत से मिल रहे रहे हैं। वे हजारों स्टुडेंट्स के मेनटर और मार्गदर्शक रहे। वे दिन-रात कॉलेज में विद्यार्थियों के बीच में ही रहते थे। वे अपने जीवनकाल में ही लीजेंड बन गए थे।
नवभारत टाइम्स, 26 अगस्त, 2021 को छपे लेख के अंश।
Pictures: CF Andrews and David Baker