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चेन,चीनी और पहाड़गंज / विवेक शुक्ला

विवेक शुक्ला

/ आप चाहें तो रामाकृष्ण आश्रम मेट्रो स्टेशन से पहाड़गंज के मेन बाजार में जाएं या फिर नई दिल्ली रेलवे स्टेशन की तरफ से, आपको डॉ चेन के डेंटल क्लिनिक में पहुंचने में वक्त आठ-दस मिनट ही लगेंगे। अब इधर क्लिनिक के बाहर कोई भी शख्स खड़ा नहीं मिलता। ये कुछ समय पहले तक नहीं होता था। डॉ चेन का क्लीनिक गुजरे दशकों से पहाड़गंज के सबसे खास लैंडमॉर्क के रूप में उभरा था। 


अब इधर उदासी छाई है। वजह यह है कि डॉ चेन नहीं रहे। उनका कुछ समय पहले निधन हो गया। उनके पिता डॉ चेन सीनियर ने 1920 में पहाड़गंज के मेन बाजार में मस्जिद के पास डेंटल क्लीनिक शुरू किया था। उनके पास देखते-देखते सारी दिल्ली से दांतों की तकलीफों से जूझ रहे रोगी आने लगे। उस समय दिल्ली छोटी सी तो थी। वे 1990 तक रहे। उनके बाद, उनके पुत्र ने अपने पिता की जगह ले ली। वे भी विख्यात हुए डॉ चेन के नाम से ही। वे भी सस्ता और टिकाऊ इलाज करने लगे। वह कोई बहुत मनहूस दिन होता होगा जब वे रोज करीब 150-200 रोगियों को ना देखते हों। 


डॉ चेन से मिलना और बतियाना भी किसी अनुभव से कम नहीं होता था। वे जब बीच-बीच में अपने किसी स्टाफ से कहते थे- ‘अबे, दो चाय पकड़ लियो’ या ‘कहां जा रिया बे’ तो लगता था कि एक चीनी मूल का शख्स कितना दिल्लीवाला हो गया है। 


पूछने पर बताते थे कि उनके पिता चीन के कैंटोन शहर से बारास्ता कोलकाता दिल्ली आए थे। कुतुब रोड में रहने लगे। यहां ही सारी जिंदगी गुजार दी। इसलिए इधर की ही जुबान बोलने लगे। वे बीच-बीच में इंग्लिश,पंजाबी और चाइनीज भी बोलते थे। दरअसल पिता-पुत्र के पास दिल्ली इसलिए आती रही क्योंकि उन्होंने अपनी फीस को इतना ही रखा ताकि किसी को फीस देने में दर्द ना हो। डॉ चेन अंत तक अपने रोगियों से सिर्फ 50 रुपए कंसलटेंसी के लेते थे। वे दांतों की फीलिंग का काम 500 रुपए में कर देते थे। लालच से बहुत दूर थे।


 उनके हाथ में जादू था। जिसका एक बार इलाज कर दिया तो फिर उसे वह तकलीफ नहीं हुई। वे दर्द को जड़ से खत्म कर देते थे। उन्होंने कभी पहाड़गंज छोड़कर राजधानी के किसी अन्य भाग में जाकर अपना क्लीनिक शुरू करने के बारे में सोचा भी नहीं। कहते थे कि ‘पहाड़गंज जितनी सामाजिकता और भाईचारा कहां मिलेगी। इधर सभी तो अपने हैं। पहाड़गंज को तो तब  ही छोड़ेंगे जब दूसरी दुनिया जाना होगा।’ यही हुआ।


मदनलाल खुराना दिल्ली के मुख्यमंत्री बनने के बाद भी अपने दांतों का इलाज करवाने डॉ चेन के पास ही पहुंचते। उनका पिता-पुत्र दोनों ने इलाज किया था। खुराना जी पहाड़गंज वाले ही तो थे। इधर बाराटूटी के ही एक स्कूल में मास्टर जी थे। 


बेशक, डॉ चेन पिता-पुत्र की जोड़ी ने लाखों रोगियों का इलाज किया था। डॉ.चेन कभी भी भारत-चीन संबंधों पर बात नहीं करते थे। बस इतना कह देते थे कि ‘हमें चीन से क्या लेना देना। क्या हम आपसे कम हिन्दुस्तानी हैं?’ पहाड़गंज के पुराने लोग बताते हैं कि 1962 की भारत-चीन जंग के समय दिल्ली पुलिस के कुछ सिपाही डॉ चेन के क्लीनिक के बाहर निगरानी करने लगे। कुछ दिनों के बाद वे वहां से जाते हुए डॉ चेन को कहते गए कि आप तो किसी भी हिन्दुस्तानी जितने ही राष्ट्र भक्त हैं।


 बहरहाल,अभी पहाड़गंज को यकीन नहीं हो रहा है कि डॉ चेन नहीं रहे और डॉ चेन क्लीनिक बंद होने की स्थिति में है। डॉ चेन पुरानी और नई दिल्ली का चलता-फिरता इतिहास थे। वे इसके चप्पे- चप्पे से वाकिफ थे। डॉ चेन का क्लीनिक आगे चल सकता है। पर यह तब ही होगा अगर उनके पुत्र मलेशिया को छोड़कर वापस आएंगे। एक उम्मीद बची हुई है कि पहाड़गंज से डॉ चेन का रिश्ता बना रहेगा।

Vivekshukladelhi@gmail.com 

Navbharattimes ( Saddi Dilli) कॉलम में 9 सितंबर 2021 को छपे लेख के संपादित अंश. 

Pic- Dr Chen with his staff.


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