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झारखंड के ऐतिहासिक पौराणिक धरोहर / बिनोद कुमार राज विद्रोही

 बड़कागांव प्रखंड मुख्यालय से दस किलोमीटर दूर जंगल में एक गुफा एवं तीन विशालकाय पत्थर को काटकर बनाए गए तीन मंदिर-गुफा मिले हैं । इसी पहाड़ पर प्रसिद्ध बुढ़वा महादेव का मंदिर लगभग पांच सौ मीटर की ऊंचाई पर स्थित है । पहाड़ पर चढ़ने के दरमियां लगभग सौ मीटर की दूरी पर हदरी - गोदरी नामक स्थान है ,जहां विशालकाय पत्थर को काट-काटकर मंदिर का रूप दिया गया है, जबकि पत्थर को ही काट कर दोनों स्थानों में एक-एक कमरा बनाया गया है ,जिसमें उत्कीर्ण नक्काशी उस समय के स्थापत्य कला का नमूना पेश करते हैं। कमरे के अंदर शिवलिंग स्थापित है। पहाड़ के शिखर तक पहुंचने से लगभग पचास मीटर ऊंचा एवं तीस मीटर चौड़ा विशालकाय पत्थर को काट-काटकर मंदिरनुमा एक कमरे का निर्माण किया गया है,जिसकी दीवारों एवं द्वार के तीनों ओर नक्काशी बेहतरीन है। इस कमरे में भी एक शिवलिंग है । इस स्थल से लगभग चार किलोमीटर दूर एक अन्य पहाड़ स्थित है। इस पहाड़ की तलहटी से ऊपर चढ़कर ही एक अन्य गुफा तक पहुंचा जा सकता है । वहां तक जाने का रास्ता काफी दुर्गम है। गुफा तक पहुंचने के लिए लगातार लगभग दो घंटे तक पहाड़ चढ़ना पड़ता है।गुफा के बाहर का स्थान साफ-सुथरा है, जहां लगभग सौ आदमी खड़े हो सकते हैं । यह गुफा लगभग दो सौ मीटर ऊंचा एवं सौ मीटर चौड़ा विशालकाय पत्थर में बनाया गया है । इसे राजा दलेल सिंह ने बनवाया था, क्योंकि गुफा के मुख्य द्वार पर संस्कृत में पत्थरों की कटाई कर कुछ लिखा हुआ है जिसमें अंतिम पंक्ति में राजा दलेल सिंह का नाम अंकित है। गुफा में इतना अंधेरा रहता है कि बिना टॉर्च के अंदर प्रवेश नहीं किया जा सकता। गुफा का पहला कमरा मंदिर के शक्ल में लगभग बीस फीट चौड़ा तथा पन्द्रह फीट ऊंचा है। इसकी दीवारों एवं छत पर अंकित फूल वगैरह उस दौर के स्थापत्य कला का बेजोड़ नमूना है। इस कमरे के बायीं ओर एक अन्य कमरा है, पहले से छोटा, जहां पर शिवलिंग स्थापित है। इस कमरे के बाएं ओर एक अन्य बहुत छोटी सी गली है। मुख्य कमरे में धीरे-धीरे बोलने से भी आवाज काफी गूंजता है। गूंज ऐसी कि अपने ही आवाज की प्रतिध्वनियां डरावनी लगने लगती है। गुफा में जंगली जानवर होने का खतरा बना रहता है। गुफा के कुछ ही दूरी पर पांच सौ मीटर ऊपर से गिरता है एक जलप्रपात , जो आखों को काफी सुकून पहुंचाती है। मैं इन गुफाओं-जगहों पर कई बार गया हूं और हर बार वहां से लौटने का मन नहीं किया...उक्त सभी गुफाओं का निर्माण राजा दलेल सिंह के द्वारा करवाया गया था...

                आपसबों को मैं एक जानकारी और देना चाहता हूं कि राजा दलेल सिंह शिवभक्त के अलावा एक कवि भी थे। झारखंड में साहित्य लेखन की शुरुआत काव्य से हुआ और इसका सारा श्रेय जाता है उत्तर मध्य काल के राजा दलेल सिंह को । उन्होंने चार कृतियों की रचना की, जो विभिन्न पुस्तकालयों में आज भी सुरक्षित है । आचार्य शिवपूजन सहाय ने अपनी पुस्तक "हिंदी साहित्य और बिहार"(प्रथम खण्ड) के पृष्ठ संख्या-77-78 में लिखा है कि- "आप दल सिंह के नाम से प्रसिद्ध थे। आपका निवास स्थान पहले हजारीबाग का कर्णपुरा नामक स्थान था, पीछे रामगढ़ हुआ। मन्नूलाल पुस्तकालय, गया में सुरक्षित आपके ग्रंथ (राम रसार्णव के आधार पर) आप रामगढ़ के राजा थे। आप के पिता का नाम महाराज राम सिंह और गुरु का नाम राम भगता था।आप स्वयं तो उच्च कोटि के कवि थे, अनेक कवियों और साहित्यकारों के आश्रयदाता भी थे। आप के आश्रित कवियों में पदुमन दास उल्लेखनीय हैं। आपने उनसे अपने पुत्र रूद्र सिंह के लिए विष्णु शर्मा के प्रसिद्ध संस्कृत ग्रंथ हितोपदेश का हिंदी पद्यानुवाद करवाया था। आपकी चार रचनाएं उपलब्ध है - राम रसार्णव, शिव - सागर, राज रहस्य और गोविंद लीलामृत। इन रचनाओं की हस्तलिखित प्रतियां बिहार राष्ट्रभाषा परिषद, पटना के हस्तलिखित ग्रंथ अनुसंधान विभाग, मन्नूलाल पुस्तकालय, गया और नागरी प्रचारिणी सभा, काशी में सुरक्षित है । इनमें प्रथम तीन रचनाएं बड़े आकार की है। भक्ति, ज्ञान और नीति के समन्वय की अनुपम शैली आपकी रचनाओं की विशेषताएं है।"


बिनोद राज विद्रोही 

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